- सपा की नकारात्मक छवि के चलते कांग्रेस उसके साथ गठबंधन में नहीं जाना चाहती
राजेश श्रीवास्तव
लखनऊ। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन होने की संभावनाओं पर बड़ा पेंच फंस गया है। मध्य प्रदेश में दोनों दलों के बीच कोई गठबंधन न होने से समाजवादी पार्टी नाराज है और उसके नेता अखिलेश यादव ने साफ कह दिया है कि कांग्रेस नेतृत्व को यह तय करना है कि इंडिया गठबंधन राष्ट्रीय स्तर पर होगा, या प्रदेश के स्तर पर। उन्होंने कहा कि यदि मध्य प्रदेश में कांग्रेस समाजवादी पार्टी के लिए कोई सीट नहीं छोड़ती है तो उसे लोकसभा चुनावों में यूपी में गठबंधन की बात भूल जानी चाहिए। यानी लोकसभा चुनाव में दोनों दलों के बीच गठबंधन पर ग्रहण लग गया है। दरअसल कांग्रेस अड़ियल और खराब शौली के नेता अखिलेश यादव के नखरे नहीं उठाना चाहती है। अखिलेश यादव लगातार असफल नेताओं में शुमार रहे हैं। उनका 11 वर्ष का राजनीतिक सफर हर अनुभव से भरा रहा है और वह हर अनुभव में असफल रहे हैं। उनके साथ कांग्रेस, बसपा और छोटे दल सबने सहयोगी दल की भूमिका निभायी और हर एक ने मुह की खायी।
इसीलिए कांग्रेस नेता भी समाजवादी पार्टी के सामने झुकना नहीं चाहते। पार्टी के नेताओं का मानना है कि कर्नाटक-हिमाचल प्रदेश में मिली जीत के बाद कांग्रेस इस समय मजबूत स्थिति में है। इस समय चल रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कम से कम चार राज्यों में उसकी सरकार बन सकती है। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि इन चुनावों के बाद पार्टी की स्थिति राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत होगी और राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी के सामने मजबूत नेता के तौर पर उभर सकते हैं। पार्टी को इसका सीधा लाभ लोकसभा चुनावों में हो सकता है। ऐसे में कांग्रेस नेताओं का अनुमान है कि पार्टी को एक बार फिर मजबूती से खड़ा करने के लिए यह बिल्कुल सही समय है और उसे अपने दम पर आगे बढ़ना चाहिए।
ज्यादातर मानते हैं कि समाजवादी पार्टी की जिस तरह नकारात्मक छवि बनी हुई है, उसे देखते हुए कांग्रेस को उसके साथ गठबंधन में नहीं जाना चाहिए। इसके पहले भी पार्टी ने समाजवादी पार्टी से यूपी विधानसभा चुनाव में गठबंधन किया था। परिणाम हुआ कि पार्टी केवल सात सीटों पर सिमट गई। समाजवादी पार्टी का नकारात्मक प्रदर्शन और आपराधिक छवि के नेताओं के साथ दिखने का समाजवादी पार्टी का बोझ कांग्रेस पर भारी पड़ा। इन नेताओं का मानना है कि यदि पार्टी अपने दम पर लड़ी होती तो वह ज्यादा बेहतर कर सकती थी।
2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के विकल्प को सत्ता में लाने के लिए मुस्लिम मतदाताओं ने एकजुट होकर समाजवादी पार्टी का साथ दिया। लेकिन इसके बाद भी सपा भाजपा को टक्कर देने में असफल रही। इसका कारण यही रहा कि भाजपा ने समाजवादी पार्टी के शासन में हुई आपराधिक घटनाओं को मुद्दा बनाया और जनता को सुरक्षा देने का वादा किया। यह मुद्दा चल गया और समाजवादी पार्टी समाज के बड़े हिस्से के समर्थन के बाद भी कोई कमाल नहीं कर सकी। कांग्रेस नेताओं को लगता है कि सपा अभी अपनी उस छवि से बाहर नहीं निकल पाई है और उसके साथ गठबंधन में जाने से नुकसान होगा।
कांग्रेस को यह भी लगता है कि अगर आने वाले पांच विधानसभा के चुनाव में तीन से ज्यादा राज्यों में उसकी सरकार बनती हैत तो मुस्लिम वर्ग उसके साथ सपा का साथ छोड़कर खड़ा होगा। 2022 में भाजपा के सामने एक विकल्प के लिए मुसलमानों ने सपा का साथ दिया था। लेकिन इसके बाद भी सपा भाजपा को रोक पाने में असफल रही। इस कारण उनमें सपा को लेकर संदेह बढ़ा है। दूसरी ओर, लोकसभा में कांग्रेस और राहुल ने भाजपा से लड़ने में अपनी प्रतिबद्धता ज्यादा मजबूती के साथ साबित किया है। यही कारण है कि कर्नाटक से चली हवा आगे बढ़ रही है और माना जा रहा कि लोस चुनाव में मुसलमान कांग्रेस के साथ एकजुट हो सकता है। इसका लाभ उठाकर सबसे बड़े सूबे में अपने आपको मजबूत करने की कोशिश करनी चाहिए। यदि यूपी में दोनों दलों के बीच समझौता होता भी है तो उसे ज्यादा सीटों की दावेदारी करनी चाहिए।