सप्तम_माँ_कालरात्रि

बलराम कुमार मणि त्रिपाठी 

माँ दुर्गा  की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हे। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्माण्ड के सदृश्य गोल है। इनसे विद्युत के समान‌ चमकीली किरणें नि:सृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वांस प्रश्वांस से अग्नि की भंयकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ है। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती है। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में खड्ग तथा नीचे वाले हाथ में कांटा है। माँ का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है। लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली है। इसी कारण इनका नाम शुभंकरी भी है। अत: इनसे किसी प्रकार भक्तों को भयभीत होने अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है। दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इनकी उपासना से उपासक के समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है।

एकवेणी जपाकर्णपुरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यशरीरिणी॥
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिभर्यङ्करी ॥,

करालवदनां घोरां मुक्तकेशीं चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिकां दिव्यां विद्युत्मालाविभूषिताम्॥
दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघो‌र्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयं वरदाञ्चैव दक्षिणोर्ध्वाध:पाणिकाम्॥
महामेघप्रभां श्यामां तथा चैपगर्दभारूढां।
घोरदंष्टा कारालास्यां पीनोन्नतपयोधराम्॥
सुखं प्रसन्न वदनाम् स्मरेरन सरोरूहाम्।
एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिं सर्वकाम समृद्धि दाम्॥

कालरात्रि : नवरात्र के सातवें दिन की उपासना..मां कालरात्रि की है। देवी का विस्तृत और महाकालिका का स्वरुप..इसे समझ पाना आसान न हीं। काल का स्वरुप…क्लीं कारी काम रुपिण्ये..समस्त कामनाओं को पूरी करने वाली माता जब शिशु को गोद मे रख कर आंचल से ढंक देती हैं। तो आंचल की अंधेरी घनी छाया मे साधक शिशुवत पूर्ण विश्राम पाता है। सब तरह से सुरक्षित है। नीचे मां की गोद है ऊपर आंचल की छाया..मां के दोनो भुजाओं के मध्य निश्चिंत प्रमन…अहा मां का कैसा अद्भुत स्वरुप।

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