- अष्टभुजाओं में अस्त्र शस्त्र युक्ता वरदायिनि मां
- महिषासुर मर्दिनी परम तेजस्विनी देवी दुर्गा
- समस्त देवों की शक्ति भूता असुर निकंदिनी मांं
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
शुंभ निशुंभ,चंड मुंड,रक्तबीज और महिषा सुर का मर्दन करने वाली परम तेजस्विनी मां दुर्गा की समस्त देवताओं ने स्तुति की। प्रचंड दैत्यों का संहार करने वाली मां की शोभा देखते ही बनती थी। नवें दिन मां समस्त वैभव से परिपूर्ण अत्यंत शोभामयी थीं। हे मां! आप भक्तों पर कृपा बरसाने वाली अष्ट सिद्धि और नौ निधियों की दात्री हो।
देवी प्रपन्नार्ति हरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वम् त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।
माँ सिद्धिदात्री” देवी दुर्गा का नौवां स्वरुप हैं। नवमी के दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा और कन्या पूजन के साथ ही नवरात्रों का समापन होता है।
सिद्धिदात्री का स्वरुप
पुराणों के अनुसार देवी सिद्धिदात्री के चार हाथ है जिनमें वह शंख, गदा, कमल का फूल तथा चक्र धारण करे रहती हैं। यह कमल पर विराजमान रहती हैं। इनके गले में सफेद फूलों की माला तथा माथे पर तेज रहता है। इनका वाहन सिंह है। देवीपुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में देवी की शक्तियों और महिमाओं का बखान किया गया है।
सिद्धियों की स्वामिनी हैं सिद्धिदात्री
पुराणों के अनुसार देवी सिद्धिदात्री के पास अष्ट सिद्धियां हैं जिन्हें क्रमश: अणिमा,गरिमा, लघिमा,महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व कहते हैं। देवी पुराण के मुताबिक सिद्धिदात्री की उपासना करने का बाद ही शिव जी ने सिद्धियों की प्राप्ति की थी। शिव जी का आधा शरीर नर और आधा शरीर नारी का इन्हीं की कृपा से प्राप्त हुआ था। इसलिए शिव जी विश्व में अर्द्धनारीश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए थे। माना जाता है कि देवी सिद्धिदात्री की आराधना करने से लौकिक व परलौकिक समस्त शक्तियों की
प्राप्ति होती है।
माँ सिद्धिदात्री का मंत्र
सिद्धगन्धर्वयक्षाघैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
मां दुर्गा की साधना करने वाले साधक के मूलाधार,स्वाधिष्ठान,मणिपूर,अनाहद ,विशुद्ध,आज्ञा और सहस्रार चक्र जाग्रत होते हैं। नवार्णमंत्र के जप से दिव्यस्पंदन होने के साथ समस्त शक्तियां प्राप्त होजाती हैं। मां का प्यार मिलता है।