शक्ति हो सामर्थ्य हो जीवन सदा उत्साह में हो।
मातृभू के काम आए नदी के पतवार ज्यौं हो।।
विश्व मे हो शांति ,मेरा मन सदा कल्याण सोचे।
इंद्रिया हों संयमित वाणी सदा सियाराम मय हो।।1।।
हे विधाता कर्म करने में कभी आलस्य न हो।
तन सदा गतिमान होवे,बुद्धि मे कोई न भ्रम हो।।
लक्ष्य जीवन का मिले उद्योग में मन को लगाना।
शक्ति का हो चित्त मे अवतरण ऐसा भाव लाना।।2।।
पर्वतो के बीच से जैसे निकलती हैं ये नदियां।
हो बड़प्पन आचरण मे किंतु करुणामय बनाना।।
प्यास बुझ जाये धरा की लोग प्यासे रह न जायें।
चित्त पर उपकार मे रम जाय ऐसा युक्ति लाना।।3।।
नींद से जग जाउं, जीवन भक्ति मय -अनुरक्ति मय हो।
विश्व क्रीडास्थल- हृदय यह ,गोपियो सा भाव मय हो।।
बांसुरी मे तान जैसे ..समाओ प्रभु आ हृदय में।
सत्य शिव आनंद की धुन, हम सदा सानंद विचरे।।4।।
जिस प्रणव से सृष्टि सारा,वह प्रणव उर मे बसा हो।
कृष्ण की गीता का गौरव ज्ञान मेरे चित रमा हो।।
छमा छमा नाचे सदा प्रभु में समर्पित दासी मीरा।
शरद की हो पूर्णिमा तो कृष्ण की हो रास लीला।।5।।