
राजेश श्रीवास्तव
लखनऊ । जैसा कि उम्मीद थी उसी के मुातबिक भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा दांव चल दिया है। पीएम मोदी ने 22 जनवरी को राम मंदिर के भव्य लोकार्पण की मुनादी कर दी है। प्रधानमंत्री खुद अयोध्या में मौजूद रहेंगे और अपने हाथों से राम लला को मंदिर में बिराजेंगे। भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में राम मंदिर उद्घाटन को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश करेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत तक दशहरे पर ये संकेत दे चुके हैं कि लोकसभा चुनाव में भाजपा इसे केंद्र सरकार की एतिहासिक सफलता के तौर पर पेश करेगी। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले यानी 22 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी के हाथों राम मंदिर का उद्घाटन होना है। इसके पूर्व इस मुद्दे से लोगों को जोड़ने के लिए अभी से राष्ट्रीय स्तर पर कई बड़े राजनीतिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम चलाए जाने की योजना भी तैयार हो चुकी है। लेकिन अब जबकि राम मंदिर बन चुका है और यह मुद्दा काफी पुराना पड़ चुका है, क्या यह अब भी भाजपा को वोट दिला सकता है? ऐसे समय में जब विपक्ष ने जातिगत जनगणना और ओबीसी आरक्षण का मुद्दा जोरशोर से उठाना शुरू कर दिया है, यह कितना बड़ा राजनीतिक मुद्दा साबित हो सकता है?
गौरतलब है कि भाजपा की राजनीतिक यात्रा में राम मंदिर आंदोलन की एक बड़ी भूमिका रही है। 1984 में दो लोकसभा सीटों से 2019 में 303 सीटों तक पहुंचने में भाजपा ने इस मुद्दे को जबरदस्त तरीके से भुनाया और बड़ी राजनीतिक सफलता प्राप्त करने में सफल रही। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जब मुसलमान वोट हासिल करने के लिए दूसरे राजनीतिक दल उनके पक्ष में बयानबाजी कर रहे थे, विभिन्न योजनाएं बनाकर उन्हें आकर्षित कर रहे थे, भाजपा ने राम मंदिर के मुद्दे के सहारे हिदू मतदाताओं को आकर्षित करने की योजना बनाई और इसके लिए संघर्ष किया।
केंद्र सरकार को इसके लिए श्रेय देना ही पड़ेगा कि उसने बेहद सूझबूझ के साथ इस मुद्दे पर बिना कोई सांप्रदायिक तनाव पैदा किए न्यायालय की मदद से इस मामले को इसके अंतिम परिणाम तक पहुंचाया। ऐसे में भाजपा को राम मंदिर निर्माण को अपनी उपलब्धि के तौर पर बताने का अधिकार है। यह मुद्दा अब राजनीतिक तौर पर बहुत ज्यादा गर्म भले ही न रह गया हो, लेकिन उन्हें लगता है कि समाज का एक वर्ग है जिसकी संवेदनाएं अभी भी राम के साथ हैं और वह इससे आकर्षित होकर उसे वोट कर सकता है।
इस मुद्दे के राजनीतिक लाभ-हानि के आकलन से पहले यह जान लेते हैं कि राम मंदिर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्या कहा। इस वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली के द्बारका में दशहरे पर आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने अयोध्या में बन रहे राम मंदिर को सदियों की प्रतीक्षा और संघर्ष की ‘जीत’ बताया। इस अवसर पर लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अयोध्या में भगवान राम आने ही वाले हैं और अगली रामनवमी बहुत भव्य होने वाली है और इससे पूरे विश्व को संदेश जाएगा।
भगवा रंग का कुर्ता, जैकेट और साफा पहने रामलीला ग्राउंड पहुंचे प्रधानमंत्री ने कहा कि हम लोगों का सौभाग्य है कि हम राम मंदिर बनता हुआ देख पा रहे हैं। इस अवसर पर उन्होंने लोगों से जातिवाद और क्षेत्रवाद के रावण का दहन करने की बात भी कही। यह बात इस अर्थ में महत्त्वपूर्ण है कि विपक्ष ने इसी मुद्दे के सहारे भाजपा को चुनौती देने की रणनीति बनाई है।
उधर, संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी पर नागपुर में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि राम मंदिर के निर्माण से हर देशवासी को गौरव महसूस हो रहा है। उन्होंने कहा कि राम मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी को होगा, लेकिन इस अवसर पर सीमित संख्या में ही लोग अयोध्या में रह पाएंगे। ऐसे में देश के हर मंदिर पर इस दिन विशेष पूजा कार्यक्रम किए जाने चाहिए। यानी विश्व हिदू परिषद (विहिप) की अगुवाई में होने वाले इस कार्यक्रम के सहारे पूरे देश में हिदुओं को एकजुट करने की तैयारी है। हालांकि, कोई नकारात्मक अर्थ न निकले इसके प्रति सावधान मोहन भागवत ने कहा कि इस देश में लंबे समय से हिदू-मुसलमान एक साथ रहते आए हैं। इनके बीच वैमनस्य कहां से आ गया, इस पर ठंडे दिमाग से विचार करना चाहिए। उन्होंने मणिपुर हिसा में भी कुछ विदेशी और असामाजिक शक्तियों का हाथ होने की आशंका जताई।
हालांकि राम मंदिर के उद्घाटन से भाजपा से कोई नया वोटर वर्ग नहीं जुड़ेगा। जो लोग पहले ही इस मुद्दे के कारण भाजपा के परंपरागत वोटर बन चुके हैं, राम मंदिर के उद्घाटन से केवल वही प्रभावित होंगे। लेकिन इसके कारण भाजपा के वोट बैंक में कोई नया वोटर नहीं साथ आएगा। विपक्ष के जातिगत मुद्दे के सामने यह मुद्दा कितना कारगर होगा, यह कहना थोड़ा कठिन है। 1992 में विवादित ढांचे के गिरने के बाद हुए यूपी चुनाव में मुलायम सिह और कांशीराम की जुगलबंदी ने इसी मंडलवादी राजनीति के सहारे भाजपा को रोकने में सफलता हासिल की थी। ऐसे में इस समय भी भाजपा के राम मंदिर निर्माण के सामने विपक्ष का यह बड़ा दांव साबित हो सकता है। हालांकि, यह भी ध्यान रखना होगा कि इस समय विपक्ष के पास कांशीराम और मुलायम सिह जैसी विश्वसनीयता वाले जमीनी नेता मौजूद नहीं हैं। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि इसका परिणाम भी 1993 के यूपी चुनाव जैसा होगा।