जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
करवा चौथ का व्रत हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। उस दिन कार्तिक संकष्टी चतुर्थी होती है, जिसे वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। करवा चौथ के दिन सुहागन महिलाएं और विवाह योग्य युवतियां अपने जीवनसाथी की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस व्रत में चंद्रमा की पूजा करना और अर्घ्य देना जरूरी है। इसके बिना करवा चौथ का व्रत पूरा नहीं होता है।
करवा चौथ कब है?
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 31 अक्टूबर दिन मंगलवार को रात नौ बजकर 30 मिनट से प्रारंभ हो रही है। यह तिथि एक नवंबर बुधवार को रात नौ बजकर 19 मिनट पर खत्म होगी। उदयातिथि और चतुर्थी के चंद्रोदय के आधार पर करवा चौथ व्रत एक नवंबर बुधवार को रखा जाएगा। इस दिन व्रती को 13 घंटे 42 मिनट तक निर्जला व्रत रखना होगा। व्रत सुबह छह बजकर 33 मिनट से रात आठ बजकर 15 मिनट तक होगा।
करवा चौथ का पूजा मुहूर्त
जो महिलाएं एक नवंबर बुधवार को करवा चौथ का व्रत रखेंगी, उनको शाम में पूजा के लिए एक घंटा 18 मिनट का शुभ समय प्राप्त होगा। करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त शाम पांच बजकर 36 मिनट से शाम छह बजकर 54 मिनट तक है।
करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त
शाम 05 बजकर 36 मिनट से शाम 06 बजकर 54 मिनट तक है।
करवा चौथ व्रत का पारण चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद किया जाता है।
करवा चौथ पर चंद्रमा पूजन और अर्घ्य का समय क्या है?
करवा चौथ के दिन चंद्रोदय रात आठ बजकर 15 मिनट पर होगा। इस समय से आप चंद्रमा पूजन के साथ अर्घ्य दे सकते हैं। चंद्रमा को अर्घ्य देने पर व्रत पूरा होता है।
करवा चौथ का पारण समय
करवा चौथ व्रत का पारण चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद किया जाता है। पति के हाथों जल पीकर व्रत को पूरा करते हैं। एक नवंबर को रात 08:15 बजे के बाद आप कभी भी पारण कर सकती हैं।
तीन योग में है करवा चौथ
इस साल करवा चौथ पर तीन योग बन रहे हैं। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 06:33 बजे से प्रारंभ हो रहा है, जो अगले दिन प्रात: 04:36 बजे तक रहेगा। सर्वार्थ सिद्धि को शुभ योग माना जाता हैं। इसमें किए गए कार्य सफल सिद्ध होते हैं। उस दिन प्रात:काल से दोपहर दो बजकर 07 मिनट तक परिघ योग है, उसके बाद से शिव योग प्रारंभ होगा, जो अगले दिन तक रहेगा। करवा चौथ के दिन मृगशिरा नक्षत्र सुबह से लेकर अगले दिन दो नंवबर को सुबह 04:36 बजे तक है।
करवा चौथ के व्रत की कथा
करवा चौथ की कहानी है कि, देवी करवा अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के पास रहती थीं। एक दिन करवा के पति नदी में स्नान करने गए तो एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया और नदी में खिंचने लगा। मृत्यु करीब देखकर करवा के पति करवा को पुकारने लगे। करवा दौड़कर नदी के पास पहुंचीं और पति को मृत्यु के मुंह में ले जाते मगर को देखा। करवा ने तुरंत एक कच्चा धागा लेकर मगरमच्छ को एक पेड़ से बांध दिया। करवा के सतीत्व के कारण मगरमच्छा कच्चे धागे में ऐसा बंधा की टस से मस नहीं हो पा रहा था। करवा के पति और मगरमच्छ दोनों के प्राण संकट में फंसे थे।
करवा ने यमराज को पुकारा और अपने पति को जीवनदान देने और मगरमच्छ को मृत्युदंड देने के लिए कहा। यमराज ने कहा मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि अभी मगरमच्छ की आयु शेष है और तुम्हारे पति की आयु पूरी हो चुकी है। क्रोधित होकर करवा ने यमराज से कहा, अगर आपने ऐसा नहीं किया तो मैं आपको शाप दे दूंगी। सती के शाप से भयभीत होकर यमराज ने तुरंत मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को जीवनदान दिया। इसलिए करवाचौथ के व्रत में सुहागन स्त्रियां करवा माता से प्रार्थना करती हैं कि हे करवा माता जैसे आपने अपने पति को मृत्यु के मुंह से वापस निकाल लिया वैसे ही मेरे सुहाग की भी रक्षा करना। करवा माता की तरह सावित्री ने भी कच्चे धागे से अपने पति को वट वृक्ष के नीचे लपेट कर रख था। कच्चे धागे में लिपटा प्रेम और विश्वास ऐसा था कि यमराज सावित्री के पति के प्राण अपने साथ लेकर नहीं जा सके। सावित्री के पति के प्राण को यमराज को लौटाना पड़ा और सावित्री को वरदान देना पड़ा कि उनका सुहाग हमेशा बना रहेगा और लंबे समय तक दोनों साथ रहेंगे।