के. विक्रम राव
चांद पर तिरंगा फहरने के साढ़े छः दशक पूर्व, आज ही की तारीख पर (3 नवंबर 1957) दुनिया में एक हादसा हुआ था। युगांतकारी, युगांतरकारी भी। उससे अणु बम का प्रथम आविष्कारक अमेरिका इस दौड़ में पिछड़ गया था। तब सोवियत रूस ने पहले प्राणी को अंतरिक्ष में भेजा था। मास्को की गलियों में फिरती एक आवारा कुतिया को। नाम था लाइका। रूसी में अर्थ होता है भोंकनेवाली। वह ऊपर गई तो सांसें चल रही थीं। किन्तु अतितापमान से मर गई। धरती पर लौटते समय यान के विस्फोट में उसके टुकड़े हो गए। पर थी बड़ी बलिदानी। उसी की कुर्बानी का फल है कि आज चांद पर मानव चरण पड़ पाए। उन्हीं दिनों भारतीय समाचारपत्रों में रोज लाइका ही लीड खबर होती थी। सप्ताह भर तक। प्रधानमंत्री का भाषण भी गौण था।
तब सोवियत संघ के पुरोधा थे तीसरे महाबली निकिता सर्जियोविच खुश्चेव (व्लादीमीर लेनिन प्रथम थे)। दूसरे महाबली जोसेफ स्टालिन को ध्वस्त कर दिया गया था। उनकी सारी मूर्तियां तुड़वा दी गई। स्टालिनग्राद शहर का पुराना नाम वापस रखा गया। वोल्गोग्राद, नदी वोल्गा का तटीय। उसके ठीक एक माह पूर्व (4 अक्टूबर 1957) प्रथम कृत्रिम उपग्रह स्पूतनिक अंतरिक्ष में भेजा गया था। अवसर था सोवियत समाजवादी क्रांति की चालीसवीं वार्षिकी। हालांकि लाइका की याद रूस में अमर है। उसके नाम डाक टिकट और पोस्टर छपे। उसके एक स्मारक (11 अप्रैल 2018) का भी अनावरण हुआ। उसके सम्मान में मास्को में एक छोटा सा स्मारक उसी सैन्य अनुसंधान केंद्र के पास बनाया गया था। वहीं लाइका को अंतरिक्ष में जाने के लिए तैयार किया गया था। इसमें एक रॉकेट के ऊपर खड़े एक कुत्ते को चित्रित किया। वह स्तंभ “द कॉन्करर्स ऑफ स्पेस ऑफ मॉस्को” में भी दिखाई देता है। बाद में स्ट्रेइका और बेल्का नामक कुत्तों को भी (19 अगस्त 1960) में भेजा था। विश्व शांति में इन चौपायों की बड़ी किरदारी भी रही।
जब जून 1961 में (क्यूबा संकट पर) सोवियत संघ के नेता निकिता ख्रुश्चेव और अमरीकी राष्ट्रपति जॉन कैनेडी के बीच वियना में शिखर वार्ता हुई। तो दोनों नेताओं के बीच माहौल बेहद ठंडा था। इस तनाव को हल्का करने के लिए कैनेडी की पत्नी जैकलीन ने ख्रुश्चेव से कहा कि वो अंतरिक्ष से लौटी स्ट्रेइका के बच्चों में से कुछ उन्हें दे दें। ख्रुश्चेव ने स्ट्रेइका के बच्चे पुशिन्का को जैकी को तोहफे के तौर पर भेजा। इसकी सख्ती से जांच करने के बाद पुशिन्का को व्हाइट हाउस में रखा गया। हालांकि जॉन कैनेडी को कुत्ते पसंद नहीं थे। मगर उनकी पत्नी और बच्चे अक्सर पुशिन्का और दूसरे कुत्तों के साथ खेलते थे। पुशिन्का और व्हाइट हाउस के कुत्ते चार्ली के मेल से कुछ बच्चे भी हुए। जानकार कहते हैं कि पुशिन्का को तोहफे के तौर पर देने की वजह से सोवियत संघ और अमेरिका के बीच तनातनी भी कम हुई। कुछ लोग तो ये कहते हैं कि क्यूबा के मिसाइल संकट के दौरान ख्रुश्चेव और कैनेडी के बीच बातचीत का माहौल भी पुशिन्का की वजह से बना। पुशिन्का के दो बच्चे अमेरिकी बच्चों को दान में दिए गए थे। कैनेडी की हत्या के बाद 1963 में पुशिन्का को व्हाइट हाउस के माली को दे दिया गया था।
लाइका की यात्रा के बाद अंतरिक्ष से जुड़े एक रहस्य से पर्दा उठ गया था। अब साफ हो गया था कि किसी जीवित प्राणी को बाहरी अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है। वैज्ञानिकों की समझ में आ गया कि पूरी तैयारी के साथ अगर भेजा जाए तो फिर अंतरिक्ष में जिंदा रहना भी मुश्किल नहीं है। लाइका की अंतरिक्ष यात्रा की युग में भारत और सोवियत रूस की दोस्ती बड़ी प्रगाढ़ हो गई थी। वस्तुतः खुश्चेव के स्वभाव और यथार्थवादी व्यवहार से सौहार्द बढ़ा था। मसलन सोवियत बजट में शिक्षा विस्तार पर कुल व्यय का आधे से अधिक राशि आवंटित होती थी। सांसदों ने विरोध किया तो प्रधानमंत्री खुश्चेव का जवाब था : “मैं एक मजदूर का बेटा हूं। जब मैं 20 साल का हुआ तो मैंने ककहरा सीखा था। मेरे आंकलन में एक सैनिक की तुलना में एक शिक्षक पर खर्च राशि से राष्ट्र को ज्यादा लाभ होता है।
यही सोवियत नेता जब भाखड़ा नांगल बांध देखने गए तो पहला सवाल किया : “पाकिस्तान सीमा से यह कितनी दूर है।” जवाब मिला कि भारत-पाक की बाघा सरहद से सिर्फ दो सौ किलोमीटर दूर है। दूसरा सवाल इस श्रमिकपुत्र का था : “क्या यह बांध बमों के हमले से सुरक्षित है ?” जवाब था : “नहीं”। तब नेहरू सरकार को ज्ञान मिला कि यदि जंग छिड़ी तो पाकिस्तान के फेके बम से टूटे इस बांध के पानी से कनाट प्लेस (दिल्ली) बह जाएगा। सोवियत रूस की इस लाइकावाली योजना में अमीनाबाद (लखनऊ) का भी तड़का लगा था। तब भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (अविभाजित) उत्तर प्रदेश का कार्यालय श्रीराम रोड पर होता था। वहां से एक प्रेस विज्ञप्ति शहर के दैनिकों में वितरित हुई थी। लाइका के आकस्मिक देहांत पर गहरी शोक-वेदना व्यक्त की गई थी। उसकी आत्मा की शांति और उसे सद्गति देने की ईश्वर से प्रार्थना की गई थी। खबर खूब चर्चित रही। पर तीसरे दिन ही भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ने इस प्रेस नोट का खंडन किया। कहा गया कि किसी खुराफाती दिमाग की यह उपज है।
लाइका के परलोकगमन के चार वर्ष बाद ही सोवियत रूस ने विलक्षण क्रांति ला दी। प्रथम मानव अंतरिक्ष यात्री यूरी गगारिन को (12 अप्रैल 1961) अंतरिक्ष में भेजा। अन्तरिक्ष की यात्रा करने के बाद गगारिन अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित व्यक्ति बन चुके थे। उन्हें कई तरह के पदक और खिताबों से सम्मानित किया गया था। उन खिताबों में से एक पदक “हीरो ऑफ़ द सोवियत यूनियन” था। यही गगारिन साहब लखनऊ पधारे थे। भव्य स्वागत हुआ। नागरिक सम्मान दिया गया। महापौर थे डॉ. पीडी कपूर साहब। लखनऊ का स्मृति चिन्ह भेंट किया गया। मगर गगारिन एक छोर से खींचते रहे। दूसरा डॉ. कपूर कसकर पकड़े रहे। जब फोटोग्राफर का क्लिक दबा तभी महापौर ने दूसरा सिरा ढीला किया। तो ऐसा था प्रथम अंतरिक्ष यात्री का आकर्षण!