राजेश श्रीवास्तव
कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी हो सकता है लेकिन यूपी की सियासत में इससे भी बढ़कर दिखायी पड़ रहा है यहां असंभव भी संभव हो जाता है। जो जुटे थो भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए। बनाया इंडिया गठबंधन। अब वही एक-दूसरे का सिर फोडने पर आमादा है। दिलचस्प यह है कि अब गठबंधन के नेता भाजपा से नहीं आपस में लड़ रहे हैं। लंबे समय से कांग्रेस और सपा में शीतयुद्ध चल रहा है। कल तो अखिलेश ने मध्य प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान ऐसा बयान दे डाला जिससे यह तो साफ है कि उप्र में भाजपा को इन दलों से कोई चुनौती नहीं मिलने वाली है। पहले जानिये अखिलेश ने क्या कहा, अखिलेश बोले कमलनाथ के तो नाम में ही कमल है इसीलिए वह भाजपा की भाषा बोलते हैं। कांग्रेस और भाजपा में कोई अंतर नहीं है। उन्होंने कहा कि अच्छा हुआ कांग्रेस ने अभी धोखा दे दिया अगर बाद में पता चलता तो हमारा बहुत नुकसान हो जाता।
ऐसा नहीं कि सिर्फ अखिलेश ही हमलावर हैं कांग्रेस भी पीछे नहीं है वह तो सिर्फ बयान तक सीमित नहीं हैं बल्कि उसने सपा के दो ऐसे विकेट उखाड़ दिये कि सपा को कई सीटों पर पिछड़ते हुए माना जा रहा है। एक हैं इमरान मसूद जिन्हें कानुपर आदि के क्षोत्र में मुस्लिम समुदाय पर खासा पकड़ वाला माना जाता है। इमरान मसूद का नुकसान की भरपाई तो सपा अभी सोच ही रही थी कि लखीमपुर से 10 बार निर्वाचित रवि वर्मा को पार्टी ने कांग्रेस का हाथ थमा दिया। वर्मा भी आगे आने वाले समय में इस बेल्ट पर सपा को कड़ी चुनौती देंगे।
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दरअसल यह पूरा खोल इसलिए चल रहा है कि गठबंधन का पूरा फोकस उप्र में है। और यह खोल शुरू हुआ अखिलेश यादव की बयानबाजी से जब उन्होंने कहा कि यहां सीटें हम बांटेंगे। बस यही विवाद की जड़ थी। सियासत में अखिलेश जब से आये हैं तब से वह बयानों के चलते ही पिछड़ते रहे हैं। एक बार फिर इंडिया गठबंधन की टूट का सेहरा उनके ऊपर बधांने वाला है । अखिलेश के सीट शोयरिंग वाले बयान से कांग्रेस चौकन्ना हो गयी और उसे लगा कि आगे आने वाले पांच राज्यों के चुनाव में अगर अपनी पोजीशन अच्छी कर ली जाये तो यूपी में सपा को दबाने में वह कामयाब हो जायेगी। इसीलिए उसने मध्य प्रदेश में सपा को कोई सीट नहीं दी और विवाद गहराने लगा।
कांग्रेस को लगता है कि अगर वह तीन चार राज्यों में जीत लेगी तो वह यूपी में 80 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और उसे अपेक्षित सफलता भी मिलेगी। और अगर गठबंधन में भी लड़ेगी तो वह 30-40 सीटें लेने में कामयाब रहेगी। जबकि अखिलेश ने साफ कर दिया है कि वह तकरीबन 65 सीटों पर खुद चुनाव लड़ेगी और सिर्फ 15 सीटें गठबंधन को देगी जिसमें रालोद, कांग्रेस सभी सभी सहयोगी शामिल हैं। हालांकि इस बयान के बाद अखिलेश ने इससे किनारा किया लेकिन सियासी दलों को संदेश देने के लिए यह बयान सपा प्रवक्ता फखरुल हसन की ओर से जारी कराया गया और बड़ी सफाई से अखिलेश ने इससे किनारा कर लिया। ताकि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे। कांग्रेस अब इसी के चलते और फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। दरअसल बार-बार ‘धोखेबाज’ कहकर आंखें तरेर रहे सपा प्रमुख अखिलेश यादव को कांग्रेस हाईकमान गंभीरता से कोई जवाब नहीं दे रहा। प्रत्यक्ष तौर पर भले ही कांग्रेस दबाव में नजर आ रही हो, लेकिन परोक्ष में रणनीति की दूसरी कहानी आकार ले रही है। कांग्रेस के रणनीतिकार दूसरे विकल्प यानी बसपा पर भी लगातार नजर बनाए हुए हैं और उसके साथ गठबंधन की संभावनाओं के द्बार पूरी तरह खोले हुए हैं।
बसपा प्रमुख मायावती के इससे इनकार के बाद भी दोनों दलों के नेताओं को इसकी गुंजाइश इसलिए नजर आ रही है, क्योंकि भाजपा से मुकाबले के लिए एक वोटबैंक वाले दल की आवश्यकता कांग्रेस को है तो अस्तित्व के संकट से बसपा भी जूझ रही है।
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देशभर के अधिकांश विपक्षी दलों ने मिलकर INDIA नाम से गठबंधन बनाया है, लेकिन लोकसभा चुनाव-2024 के महासमर में उतरने से पहले एक-दूसरे पर ही इनके हमले तेज होते जा रहे हैं। अपने हितों को लेकर सशंकित क्षेत्रीय दल कांग्रेस को रह-रहकर किसी न किसी मुद्दे पर कोस रहे हैं। क्योंकि सबका वजूद कांग्रेस को तोड़कर ही बना है और अगर ये अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस को मजबूत करने लगेंगे तो इनका खुद का अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा। स्थिति कु छ भी हो भाजपा खुश है कि उसके भाग्य से कांग्रेस और सपा टूटे। 2024 की उसकी राह आसान हो गयी है यह तय है। भले ही सियासी दल यह कहें कि गठबंधन लोकसभा के लिए है। लेकिन अब लोकसभा चुनाव का ज्यादा समय नहीं बचा है और ऐसे में कांग्रेस और सपा एक-दूसरे को धोखोबाज, चिरकुट, बेईमान, दोनों को एक-दूसरे जैसा बता रहे हैं। तो क्या जब यह एक महीने बाद एक-दूसरे की तारीफ में कसीदे पढ़ोंगे तो जनता समझेगी नहीं कि यह जुटान दरअसल देश के लिए नहीं सत्ता के लिए है। फिलहाल समीकरणों से साफ है कि 2024 की राह में भाजपा के सामने कोई बड़ी चुनौती फिलहाल यूपी से नहीं है।
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