नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को तमिलनाडु सरकार से कहा कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को 19 या 26 नवंबर को पथ संचलन (रूट मार्च) आयोजित करने की अनुमति दे और इसके बारे में 15 नवंबर तक संगठन को अपने फैसले से अवगत कराए। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने सरकार को यह तय करने के लिए कोई विवेकाधिकार देने से इनकार कर दिया कि प्रत्येक जिले में एक या दो रैलियों की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और मुकुल रोहतगी के उन दलीलों पर भी सवाल किया कि उच्च न्यायालय अब जुलूसों की अनुमति दे रहा है।
पीठ ने कहा कि 2022 में उच्च न्यायालय ने इसी तरह का आदेश पारित किया था। इसके बाद मामला उच्चतम न्यायालय तक गया और आदेश को बरकरार रखा। सिब्बल ने कहा कि राज्य सरकार अनुमति देने को तैयार है। साथ ही, यह भी कहा कि सीज़न के दौरान नहीं, क्योंकि समुदाय द्वारा उत्सव मनाए जाते हैं और झड़पें होना तय है। उन्होंने आगे कहा, कि वे प्रत्येक जिले में तीन रैलियों की अनुमति मांग रहे हैं। हमने इस अवधि के दौरान अपने गठबंधन सहयोगियों के अनुरोध को भी खारिज कर दिया है। हम झड़प नहीं चाहते हैं। दूसरे पक्ष के अधिवक्ता माधवी दीवान ने कहा कि इस मुद्दे पर पहले ही फैसला हो चुका है और इसे दोबारा नहीं खोला जा सकता है। इसके बाद उन्होंने 19 या 26 नवंबर को पर संचलन की अनुमति मांगी।
इस पर सिब्बल ने कहा कि राज्य इस पर विचार करेगा। उन्होंने इस बात पर भी सहमति व्यक्त की कि वे अनुमति के बारे में एक सप्ताह पहले सूचित करेंगे। शीर्ष अदालत ने हालांकि स्पष्ट कर दिया राज्य सरकार प्रतिवादियों के अनुरोध के अनुसार शुरुआती और अंतिम बिंदुओं को समान रखते हुए केवल मार्ग को संशोधित कर सकती है। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि इस आदेश को उच्च न्यायालय की एकल पीठ के समक्ष रखा जा सकता है। जिसने अपने आदेशों का पालन न करने के लिए राज्य के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू कर दी है। तमिलनाडु सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि उच्च न्यायालय ने हिंसक घटनाओं के इतिहास, ऐसे पर संचलन के उद्देश्यों पर उचित विचार किए बिना, तमिलनाडु के विभिन्न क्षेत्रों में उसे आयोजित करने के लिए RSS को अनुमति देकर गलती की है। (वार्ता)