के. विक्रम राव
मद्रास हाईकोर्ट के एक जज हैं न्यायमूर्ति नंदा आनंद वेंकटेश। वर्ण से विप्र हैं, आयु 54 वर्ष। चेन्नई के अंबेडकर कॉलेज से विधि स्नातक हैं। पहली पीढ़ी के वकील रहे। अतः शुरू से मूल पक्ष, अपीलीये केस, अपराधिक पक्ष और रिट क्षेत्राधिकार के मुकदमों का उन्होंने सर्वांगीण अभ्यास किया। दीवानी और फौजदारी पक्षों में न्यायमित्र के रूप में नियुक्त भी हुए थे। कल (सोमवार, छह नवंबर 2023) चर्चा में जस्टिस वेंकटेश इसलिए आए क्योंकि भारत के प्रधान न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने खुली अदालत में कहा कि भगवान का शुक्र है कि हमारी न्याय-व्यवस्था में न्यायमूर्ति आनंद वेंकटेश जैसे न्यायाधीश हैं। सोचिए, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पास मुकदमे को एक जिले से दूसरे जिले में स्थानांतरित करने की शक्ति कैसे आ गई? इस प्रकरण में एक मौजूदा मंत्री भी शामिल था। भगवान का शुक्र है कि हमारे पास वेंकटेश जैसे जज हैं।
मद्रास हाई कोर्ट की इस याचिका में काबीना मंत्री के भ्रष्टाचार का मामला था। वर्तमान में एमके स्टालिन की द्रमुक काबीना के उच्च शिक्षा मंत्री के. पोन्मुडी और उनकी पत्नी पर बालू खनन में भ्रष्टाचार का आरोप लगा था। मुकदमा वर्ष 2002 में सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय द्वारा दर्ज किया गया था। तभी अन्नाद्रमुक राज्य में सत्ता में लौटी थी। द्रमुक को हराकर। जब पोनमुडी (1996 और 2001 के बीच) द्रमुक सरकार में मंत्री थे, तब अवैध संपत्ति उन्होंने अर्जित की थी।
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न्यायमूर्ति वेंकटेश द्वारा मंत्री को जिला जज द्वारा बरी करने वाले आदेश को निरस्त करने के निर्णय के खिलाफ दायर पोनमुडी की याचिका पर शीर्ष अदालत सुनवाई कर रही थी। खास विचारणीय प्रश्न यह भी था कि क्या हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश को एक जिले से दूसरे जिले की अदालत में कोई मुकदमा स्थानांतरित करने का अधिकार है? जुड़े हुये पहलू थे कि क्या अभियुक्त के विरुद्ध दायर दस्तावेजों का मात्र चार दिनों में निस्तारण हो सकता था? क्या 172 पुलिस गवाहों के बयान और 381 साक्ष्य दस्तावेजों का महज चार दिनों में अध्ययन किये जा सकता है? तुर्रा यह कि 226-पृष्टोंवाला निर्णय केवल अभियुक्त मंत्री और उसकी पत्नी को दोषमुक्त करने हेतु ही हो? शुरू से अंत तक स्पष्ट था कि भ्रष्ट मंत्री को बचाने में राज्य का समस्त न्यायतंत्र जुट गया था। तब जज वेंकटेश ने इस बड़ी साजिश के चक्र को तोड़ा। गत 10 अगस्त को जज वेंकटेश ने उस तरीके पर आपत्ति जताई, जिसके तहत मामले में मंत्री पोनमुडी के खिलाफ मुकदमा विल्लुपुरम जिला अदालत से वेल्लोर स्थानांतरित किया गया था। स्थानांतरण उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, अर्थात् तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश मुनीश्वरनाथ भंडारी (इलाहाबाद में थे) और न्यायमूर्ति टी राजा तथा वी भवानी सुब्बरायण द्वारा दी गई प्रशासनिक मंजूरी पर आधारित था। हालाँकि न्यायमूर्ति वेंकटेश की राय थी कि मामले में ऐसा स्थानांतरण “आपराधिक न्याय प्रणाली में हेरफेर करने और उसे नष्ट करने का एक सुविचारित प्रयास” था।
इसीलिए न्यायमूर्ति वेंकटेश ने रजिस्ट्री को पोनमुडी और उनकी पत्नी तथा मामले में सह-आरोपी पी. विशालाक्षी को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। इसको उनके सामने अब तक आए “सबसे हानिकारक मामलों” में से एक बताया। विशेष रूप से पोनमुडी को बरी करने वाले ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश एन. वसंतलीला (अब सेवानिवृत्त) ने भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अलग से अपनी एक याचिका दायर की थी। न्यायिक अधिकारी की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता (और उड़ीसा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश) डॉ. एस मुरलीधर ने कहा कि वसंतलीला का “पूरी तरह से बेदाग रिकॉर्ड” रहा है। मगर सुप्रीम कोर्ट ने नहीं माना। तमिलनाडु का यह प्रकरण उत्तर प्रदेश में व्याप्त राजनीतिक और प्रशासनिक अनाचार के संदर्भ में महत्वपूर्ण हो जाता है। खासकर संवेदनशील अदालती कार्यवाही को बाधित करने और मुकदमों को टलवाने तथा वापस कराने के संदर्भ में।
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जज वेंकटेश का उदाहरण इसलिए भी भारत में सभी विधिवेत्ताओं के लिए खास बन जाता है क्योंकि उनका निर्णय नैतिकता और शुचिता के क्षेत्र में एक मील पत्थर है। यहां वकीलों के नैतिक आचरण से जुड़ा एक गंभीर मसला भी उठा, जब प्रधान न्यायाधीश ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल तथा मुकुल रोहतगी को टोका और कहा कि जज वेंकटेश पूर्णतया सही हैं। इन दोनों वकीलों ने जस्टिस वेंकटेश द्वारा अधिकार क्षेत्र से बाहर जाने की बात कही थी। वे भ्रष्ट मंत्री और उनकी पत्नी के पैरोंकार थे। तो आचार संहिता का प्रश्न उठेगा ही कि क्या भ्रष्टाचार यूं ही खत्म हो जाएगा जब तक अनुभवी और वरिष्ठ वकील आरोपियों का साथ देते रहेंगे?