
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आवंले के पेड़ पर निवास करते हैं। इसीलिए इस पेड़ की पूजा अर्चना की जाती है।बताते हैं कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण अपनी बाल लीलाओं का त्याग करके वृंदावन को छोड़कर मथुरा चले गए थे। इस दिन कूष्मांड( कोहड़ा) मे छिद्र कर उसमे सुवर्ण रत्नादि डाव कर गुप्तदान करते हैं।
आंवला भगवान विष्णु का सबसे प्रिय फल है और आंवले के वृक्ष में सभी देवी देवताओं का निवास होता है इसलिए इसकी पूजा का प्रचलन है।आयुर्वेद के अनुसार आंवला आयु बढ़ाने वाला फल है यह अमृत के समान माना गया है इसीलिए हिन्दू धर्म में इसका ज्यादा महत्व है।
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आंवले के वृक्ष की पूजा करने से देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन व्रत रखने से संतान की प्राप्ति भी होती है।ऐसी मान्यता है कि आंवला पेड़ की पूजा कर 108 बार परिक्रमा करने से मनोकामनाएं पूरी होतीं हैं। इस दिन विष्णु सहित आंवला पेड़ की पूजा-अर्चना करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। नवमी पर किया गया दान पुण्य कई गुना अधिक लाभ दिलाता है। धर्मशास्त्र अनुसार इस दिन स्नान, दान, मंदिर या तीर्थ करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
आंवले का पूजन : आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में बैठकर पूजन कर उसकी जड़ में दूध देना चाहिए। इसके बाद पेड़ के चारों ओर कच्चा धागा बांधकर कपूर बाती या शुद्ध घी की बाती से आरती करते हुए सात बार परिक्रमा करनी चाहिए।आंवले का वृक्ष हो, वहां जाकर परिवार सहित भोजन करते हैं। पूजा-अर्चना के बाद खीर, पूड़ी, सब्जी और मिष्ठान आदि का भोग लगाया जाता है। नवमी के दिन महिलाएं भी अक्षत, पुष्प, चंदन आदि से पूजा-अर्चना कर पीला धागा लपेटकर वृक्ष की परिक्रमा करती हैं।आंवला वृक्ष का पूजा-अर्चना करके भक्तिभाव से पर्व को मनाकर आंवला पूजन के बाद पेड़ की छांव पर ब्राह्मण भोज भी कराते हैं।
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आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा खुद भी उसी वृक्ष के निकट बैठकर भोजन करें।धात्री वृक्ष (आंवला) के नीचे पूर्वाभिमुख बैठकर ‘ॐ धात्र्ये नमः’ मंत्र से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धार गिराते हुए पितरों को तर्पण करने का विधा भी है। इस दिन पितरों के शीत निवारण (ठंड) के लिए ऊनी वस्त्र व कंबल दान किया जाता है।इस दिन उज्जयिनी में कर्क तीर्थ यात्रा व नगर प्रदक्षिणा का प्रचलन भी है। वर्षों पहले आंवला नवमी पर उज्जैनवासी भूखी माता मंदिर के सामने शिप्रा तट स्थित कर्कराज मंदिर का दर्शन व परिक्रमा करते हैं।