जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
धार्मिक मान्यता के अनुसार, आंवला नवमी से ही द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। आंवला नवमी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को होती है। आंवला नवमी के दिन व्रत रखकर आंवले के पेड़ और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आंवला नवमी से आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु का वास होता है और कार्तिक पूर्णिमा तक उसमें श्रीहरि का वास रहता है। आंवला नवमी को अक्षय नवमी और कूष्मांड नवमी भी कहते हैं। आंवला नवमी के दिन व्रत और पूजा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, इसलिए यह अक्षय नवमी कहलाती है।
आंवला नवमी का पूजा मुहूर्त
21 नवंबर को आंवला नवमी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह छह बजकर 48 मिनट से दोपहर 12 बजकर सात मिनट तक है। इस दिन पूजा के लिए आपको पांच घंटे से अधिक का समय प्राप्त होगा। उस दिन का शुभ मुहूर्त या अभिजित मुहूर्त दिन में 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 28 मिनट तक है।
आंवला नवमी की तिथि
वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 21 नवंबर दिन मंगलवार को तड़के 03 बजकर 16 एएम पर शुरू हो रही है और इस तिथि का समापन 22 नवंबर दिन बुधवार को 01 बजकर 09 एएम पर होगा। उदयातिथि के आधार पर इस साल आंवला नवमी 21 नवंबर को मनाई जाएगी।
आंवला नवमी के दिन रवि योग और पंचक
इस बार आंवला नवमी वाले दिन रवि योग बन रहा है। रवि योग रात में आठ बजकर एक मिनट से बन रहा है, जो अगले दिन सुबह छह बजकर 49 मिनट तक रहेगा। वहीं पूरे दिन पंचक लगा है।
आंवला नवमी के चार महत्व
- आंवला नवमी से आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता है, इस वजह से आंवले के पेड़ की पूजा करते हैं और आंवले का भोग लगाते हैं। आंवले को ही प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं। विष्णु कृपा से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ से अमृत की बूंदें टपकती हैं, इसलिए इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने और भोजन करने की परंपरा है। ऐसा करने से सेहत अच्छी रहती है।
- आंवला नवमी को भगवान विष्णु ने कूष्मांड राक्षस का वध किया था, इसलिए इसे कूष्मांड नवमी कहते हैं। आंवला नवमी पर कूष्मांड यानि कद्दू का दान करते हैं।
- धार्मिक मान्यता के अनुसार, आंवला नवमी से ही द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था।
कैसे करें आंवला नवमी की पूजा
इस बार अक्षय नवमी 21 नवंबर मंगलवार को होगी। इस दिन प्रातःकाल जागने के बाद स्नानादि से निवृत्त होकर आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजन करके पेड़ की जड़ में दूध की धारा गिरा कर तने में चारो तरफ सूत लपेटना चाहिए। इसके बाद कपूर या घी की बाती से आरती करके 108 परिक्रमाएं करना चाहिए। आंवला नवमी के पूजन में जल, रोली, अक्षत, गुड़, बताशा, आंवला और दीपक घर से लेकर ही जाना चाहिए। ब्राह्मण और ब्राह्मणी को भोजन कराकर वस्त्र तथा दक्षिणा आदि दान देकर स्वयं भोजन करना चाहिए। एक बात जरूर ध्यान रखें कि इस दिन के भोजन में आंवला अवश्य ही होना चाहिए। इस दिन आंवले का दान करने का भी विशेष महत्व है।
आंवला नवमी व्रत की कथा
किसी समय में एक साहूकार था। वह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में नवमी के दिन आंवला के पेड़ के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराता और सोने का दान करता था। उसके लड़कों को यह सब करना अच्छा नहीं लगता था क्योंकि उन्हें लगता था कि वह धन लुटा रहे हैं। तंग आकर साहूकार दूसरे गांव में जाकर एक दुकान करने लगा। दुकान के आगे आंवले का पेड़ लगाया और उसे सींच कर बड़ा करने लगा। उसकी दुकान खूब चलने लगी और बेटों का कारोबार बंदी की स्थिति में पहुंच गया। वह सब भागकर अपने पिता के पास पहुंचे और क्षमा मांगी। तो पिता ने उन्हें क्षमा कर आंवले के वृक्ष की पूजा करने का कहा। उनका काम धंधा पहले की तरह चलने लगा।