- आज से शुरू होगी परिक्रमा, वृंदावन अयोध्या में उमड़ेगा हुजूम
लखनऊ। गोपाष्टमी से अगले दिन ही कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नौमी के नाम से मनाया जाता है, जैसा की नाम से ही स्पष्ट है इस दिन आँवले के वृक्ष की पूजा की जाती है और भगवान विष्णु का पूजन होता है। दीया व धूप जलाकर आँवले के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा की जानी चाहिए। अपनी सामर्थ्यानुसार ब्राह्मण को दान दक्षिणा दी जाती है। इस दिन भोजन में आँवले का सेवन जरुर करना चाहिए। पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए आंवला की पूजा महिलाओं द्वारा महत्वपूर्ण मानी गई हैं!
आंवला नवमी के दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था, जिसमें स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। इस दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन-गोकुल की गलियां छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था। उन्होंने अपनी बाल लीलाओं का त्याग करके कर्तव्य के पथ पर पहला कदम रखा था।
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इसी दिन से वृंदावन की परिक्रमा भी प्रारंभ होती है। आंवला नवमी का व्रत संतान और पारिवारिक सुखों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह व्रत पति-पत्नी साथ में रखें तो उन्हें इसका दोगुना शुभ फल प्राप्त होता है। स्नान आदि करके किसी आंवला वृक्ष के समीप जाएं और जड़ में शुद्ध जल अर्पित करें। फिर उसकी जड़ में कच्चा दूध डालें।
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पूजन सामग्रियों से वृक्ष की पूजा करें और उसके तने पर कच्चा सूत या मौली आठ परिक्रमा करते हुए लपेटें। कुछ जगह 108 परिक्रमा भी की जाती है। इसके बाद परिवार के सुख-समृद्धि की कामना करके वृक्ष के नीचे ही बैठकर परिवार, मित्रों सहित भोजन किया जाता है। आंवला को वेद-पुराणों में अत्यंत उपयोगी और पूजनीय कहा गया है।