- मौजूदा व्यवस्था के खिलाफ लोगों का सामूहिक विद्रोह है यह आंदोलन- दुर्गा प्रसाई आंदोलन के नेतृत्व कर्ता
उमेश चन्द्र त्रिपाठी
काठमांडू । साल 2008 में एक समझौते की शर्तों के तहत नवनिर्वाचित लोकसभा ने 240 साल पुरानी राजशाही को समाप्त कर दिया था, जिसके बाद माओवादी विद्रोह समाप्त हो गया था। इस विद्रोह में 1996 और 2006 के बीच 17,000 से अधिक लोग मारे गए थे। भारत के पड़ोसी देश नेपाल में इस समय भीषण बवाल मचा हुआ है। जहां एक तरफ दुनिया के ज्यादातर देश लोकतंत्र को बढ़ावा देने पर जोर दे रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ नेपाल में इसके ठीक उलट, राजशाही की मांग हो रही है। राजधानी काठमांडू में गुरुवार को पुलिस और प्रदर्शनकारी समूहों के बीच जमकर झड़प हुई। प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े। ज्ञात हो कि 28 मई, 2008 को नवनिर्वाचित लोकसभा ने 240 वर्ष पुरानी राजशाही को समाप्त करते हुए नेपाल को एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया था। इस ऐतिहासिक पल के 15 साल बाद अब फिर से नेपाल में राजशाही की मांग हो रही है। नेपाल के गृह मंत्रालय ने काठमांडू में पत्रकारों को बताया है कि सेना को अलर्ट मोड पर रखा गया था, लेकिन उसे इस्तेमाल करने की आवश्यकता नहीं पड़ी है।
इस आंदोलन के नेता आखिर कौन हैं दुर्गा प्रसाई?
राजशाही समर्थक प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व दुर्गा प्रसाई कर रहे हैं। दुर्गा प्रसाई एक उद्यमी और पूर्व माओवादी कार्यकर्ता हैं। वे केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी यूनिफाइड मार्क्सवादी लेनिनवादी (CPN-UML ) की केंद्रीय समिति के सदस्य भी रह चुके हैं। अब वे खुद कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ मुखर हैं। CPN-UML की युवा शाखा (युवासंघ) के सदस्यों और दुर्गा प्रसाई के समर्थकों के बीच गुरुवार को काठमांडू के बल्खू में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान जमकर झड़प हुई। मोटरसाइकिल रैली के दौरान बल्खू पहुंचने के बाद प्रसाई के समर्थकों ने यूएमएल कैडरों पर पथराव किया। प्रदर्शनकारियों द्वारा इस्तेमाल किए गए वाहनों और सड़क के किनारे पार्क किए गए वाहनों को भी प्रसाई समर्थकों ने क्षतिग्रस्त कर दिया। अपने ‘राष्ट्र, राष्ट्रीयता, धर्म-संस्कृति और नागरिक बचाव अभियान’ के तहत लोगों को संगठित कर रहे प्रसाई ने शासन को उखाड़ फेंकने और राजशाही और हिंदू साम्राज्य को बहाल करने की चेतावनी दी है। यूएमएल और प्रसाई अलग-अलग काठमांडू-केंद्रित प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल उर्फ प्रचंड को लोगों के सामने तुरंत आत्मसमर्पण कर देना चाहिए।
युवा संघ ने तिनकुने में एक अलग रैली की, जहां इसके लिए जगह आवंटित की गई थी। संगठन के पूर्व प्रमुख और ओली के करीबी विश्वासपात्र महेश बस्नेत ने चेतावनी दी कि वे दुर्गा प्रसाई जैसे लोगों को अराजक स्थिति पैदा नहीं करने देंगे। बाद में दिन में, प्रसाई ने कहा कि यह आंदोलन “मौजूदा व्यवस्था के खिलाफ लोगों का सामूहिक विद्रोह” है। उन्होंने प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल से यह भी कहा कि अगला “लोगों के सामने आत्मसमर्पण करें और देश को किस तरह की लेख राजनीतिक व्यवस्था अपनानी चाहिए, इस बारे में उनकी इच्छा व.. पालन करें”। प्रसाई इस आंदोलन को ‘देश बचाओ’ आंदोलन कह रहे हैं। उन्होंने विपक्षी नेता केपी शर्मा ओली की भी आलोचना की है। प्रसाई ने कहा, “हम राजनीतिक नेताओं की लूट-खसोट का विरोध करते हैं। बैंकों, सहकारी समितियों और वित्तीय संस्थानों ने लोगों का शोषण किया है और हम चाहते हैं कि इन संस्थानों द्वारा दिए गए 20 लाख रुपये से कम के ऋण माफ किए जाएं।” प्रसाई ने राजधानी में व्यवसायियों से 24 नवंबर से अपनी दुकानें बंद रखने के लिए भी समर्थन मांगा है।
नेपाल और राजशाही का अंत
विशेष रूप से निर्वाचित लोकसभा ने 2008 में एक समझौते की शर्तों के तहत 240 साल पुरानी राजशाही को समाप्त कर दिया था, जिससे माओवादी विद्रोह समाप्त हो गया। इस विद्रोह में 1996 और 2006 के बीच 17,000 से अधिक लोग मारे गए थे। 2008 में एक संघीय गणराज्य की स्थापना हुई। लेकिन राजशाही के अंत के बाद से नेपाल में 10 से अधिक बार सरकार बदलने से राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई है, जिससे आर्थिक विकास अवरुद्ध हो गया है और लाखों युवाओं को मुख्य रूप से मलेशिया, दक्षिण कोरिया और मध्य पूर्व अंगोला काम करने के लिए मजबूर होकर जाना पड़ा है। पूर्व माओवादी विद्रोही लेख प्रमुख पुष्प कमल दहाल अब नेपाल के प्रधानमंत्री हैं और मध्य मार्गीय नेपाली कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं।
नेपाल का नारायण हिती पैलेस का शाही नरसंहार
एक तरफ जब नेपाल माओवादी विद्रोह से जूझ रहा था उसी दौरान एक जून 2001 में राजशाही परिवार की हत्या कर दी गई थी। इसे नेपाली शाही नरसंहार के नाम से जाना जाता है। नेपाली शाही नरसंहार 1 जून 2001 को नेपाली राजशाही के तत्कालीन निवास नारायणहिती पैलेस में हुआ था। महल में शाही परिवार की एक सभा के दौरान सामूहिक गोलीबारी में राजा वीरेंद्र और रानी ऐश्वर्या सहित शाही परिवार के नौ सदस्य मारे गए थे।
सरकार द्वारा नियुक्त जांच दल ने युवराज दीपेंद्र को नरसंहार का अपराधी बताया। उस समय सिर में स्वयं गोली मारने के बाद दीपेंद्र कोमा में चले गए थे। राजा वीरेंद्र की मृत्यु के बाद दीपेंद्र को बेहोशी की हालत में नेपाल का राजा घोषित किया गया था। नरसंहार के तीन दिन बाद होश में बिना आए युवराज दीपेंद्र की अस्पताल में मृत्यु हो गई। किंग वीरेंद्र की मत्यु के बाद उनके भाई ज्ञानेंद्र को नेपाल की गद्दी सौंप दी गई। भारत और चीन के बीच स्थित हिमालय क्षेत्र के इस पर्वतीय देश नेपाल के अंतिम राजा ज्ञानेंद्र, काठमांडू में अपने परिवार के साथ एक आम नागरिक के रूप में रह रहे हैं। इस समय बड़ी संख्या में में उनके चाहने वाले उन्हें पुनः राजा बनाने के लिए पूरे देश में भ्रमण कर जनता की नब्ज टटोलने का काम कर रहे हैं और उसमें उन्हें काफी सफलता भी मिल रही है।