जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
हर महीने कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत मनाया जाता है। तदनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत 10 दिसंबर को है। यह दिन देवों के देव महादेव को समर्पित होता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत रखा जाता है। रविवार के दिन पड़ने के चलते यह रवि प्रदोष व्रत कहलाएगा। धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से साधक के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही साधक दीर्घायु होता है। अतः साधक श्रद्धा भाव से प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा करते हैं।
शुभ मुहूर्त : पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 10 दिसंबर को प्रातः काल 07 बजकर 13 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन यानी 11 दिसंबर को प्रातः काल 07 बजकर 10 मिनट पर समाप्त होगी।
प्रदोष काल : 10 दिसंबर को प्रदोष काल संध्याकाल 05 बजकर 25 मिनट पर शुरू होगा और संध्याकाल 08 बजकर 08 मिनट पर समाप्त होगा। इस समय में साधक भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा कर सकते हैं।
पूजा विधि : प्रदोष व्रत के दिन ब्रह्मा बेला में उठें और भगवान शिव और माता पार्वती को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें। घर की साफ-सफाई करें। दैनिक कार्यों से निवृत होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। इस समय आचमन कर स्वयं को शुद्ध करें और व्रत संकल्प लें। भगवान शिव को श्वेत रंग प्रिय है। अतः श्वेत रंग के वस्त्र धारण करें। अब पंचोपचार कर विधि-विधान से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। पूजा के समय शिव चालीसा और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। अंत में आरती करें। मनोवांछित फल की प्राप्ति हेतु उपवास कर सकते हैं। संध्या के समय आरती कर फलाहार करें। अगले दिन नित्य दिनों की तरह स्नान-ध्यान और पूजा कर व्रत खोलें।
रवि प्रदोष व्रत का महत्व
रवि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव का श्रृंगार और रुद्राभिषेक करने से शनि, राहु केतु जैसे ग्रहों के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही जीवन में सुख और समृद्धि बढ़ती है। स्कंद पुराण के अनुसार प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव कैलाश पर्वत पर अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं और देवी देवता उनकी वंदना करते हैं। प्रदोष व्रत के दिन सुबह सूर्य की पूजा करनी चाहिए और शाम के समय विधि-विधान से भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए।