के. विक्रम राव
शायद भाजपायी राजनेताओं का ही भाग्य रहा कि दकियानुसी हिंदूवादी अवधारणाओं को समूल तोड़ें। वर्ना उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सभी मुख्य मंत्रीजन, उनमें कई जनवादी, वामविचारक और समाजवादी हैं, इस फर्जी धार्मिक आशंका से ग्रसित रहे। मसलन लखनऊ में आदत थी कि जो मुख्यमंत्री नोएडा गया कि उसकी नौकरी गई। काषाय वस्त्रधारी हिंदू हृदय सम्राट योगी आदित्यनाथ ही थे जो सर्वप्रथम नोएडा गए। कई बार गए। ऐसा ही युग परिवर्तनकारी कदम उठाया पांच-दिन पुराने भाजपायी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जब वे गत रात्रि महाकाल के उज्जैन में रात भर रहे। दो सदियों से मिथक था कि जो भी शासनाध्यक्ष इस ज्योतिर्लिंग की नगरी में शिप्रानदी तट पर सांझ ढले रहेगा, वह पद खो देगा। नतीजन अपने 18 वर्ष के मुख्यमंत्री काल में पिछड़ी जातिवाले “लाडली बहनों के प्यारे” शिवराज सिंह चौहान को मिला कर, कोई भी 18 मुख्यमंत्री उज्जैन में किसी रात को रहे ही नहीं। इन 18 सीएम में गजब के प्रगतिशील सामंत दिग्विजय सिंह भी थे। वे मशहूर थे हर हिंदुत्ववादी बात को घृणास्पद बनाने में।
उज्जैन में रात बिताने वाली बात को इस महाकाल शहर के विद्वान ज्योतिषी और प्राचीन मंदिर के पुजारी पंडित आनंद शंकर व्यास ने इस संवाददाता को दूरभाष पर आज बताया कि : “बाबा महाकाल की अपनी एक परिधि है। इस परिधि से किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री या राजघराने से जुड़ा व्यक्ति दूर रहता है। महाकाल मंदिर पर लहराने वाली धर्मध्वजा की जहां तक छाया पड़ती है, उस परिधि तक कोई शासक रात में नहीं रुक सकता। विक्रमादित्य उज्जैन के राजा थे, तब उनका किला इसी परिधि में आता था। जब विक्रमादित्य न्याय करने जाते थे, तब राजा की कुर्सी पर महाकाल विराजित होते थे, इसलिए वे न्याय कर पाते थे।” कुछ ज्योतिषियों का कहना है कि डॉ. मोहन यादव महाकाल के कृपा-प्रसाद से ही सीएम पद तक पहुंचे हैं। ऐसे में उनके अपने ही नगर में रात्रि विश्राम करने में कोई बाधा नहीं है। वहीं अन्य ज्योतिषियों का कहना है कि डॉ. यादव को भी परंपरा का पालन करना पड़ेगा।
डॉ. यादव गत शनिवार को विकसित भारत संकल्प यात्रा के उद्घाटन समारोह में शामिल होने उज्जैन पहुंचे। बाद में उनका दशहरा मैदान में छन्नी चौक पर सात किलोमीटर लंबा ऐतिहासिक रोड-शो भी हुआ। टॉवर चौराहे पर क्रेन से लटके हनुमान ने उन्हें पुष्पमाला पहनाई। मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही यह चर्चा थी कि वे सीएम के रूप में उज्जैन में रात्रि विश्राम करेंगे या नहीं ? इतिहास की बात है। राजा महादजी सिंधिया के निधन के बाद दौलतराव सिंधिया राजधानी को उज्जैन से ग्वालियर ले जाना चाहते थे। वे 1812 में राजधानी ले भी गए, मगर धीरे से एक मंत्र फूंक गए कि यहां कोई राजा रात को नहीं रहेगा, जिससे कोई कब्जा करने नहीं आए। यह उनकी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा था। इस पर मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा : “अब हम भी कहते हैं कि राजा रात में नहीं रहेगा। अरे राजा तो बाबा महाकाल हैं, हम सब तो उनके बेटे हैं। क्यों रात में नहीं रहेंगे ? ब्रह्मांड में कोई बच नहीं सकता, अगर बाबा महाकाल ने टेढ़ी निगाह कर दी तो ? मुझे पीएम मोदी ने कहा कि बनारस मैं संभालता हूं, मोहनजी, आप तो उज्जैन संभालो। मैं मुख्यमंत्री नहीं मुख्य सेवक हूं यहां पर।
अब योगी आदित्यनाथ जी तथा डॉ. मोहन यादव ने ऐतिहासिक मजाक तो बना ही दिया उन प्रगतिशील, कथित जनवादी राजनेताओं का जो लखनऊ और भोपाल में प्रगतिशील सेक्युलर बातें तो बघारते रहे पर रहे घोंघा बसंत, लकीर के फकीर। अतः योगीजी को और डॉ. मोहन यादव को भी लाल सलाम कि एक स्वस्थ हिंदु परंपरा का निर्माण कराया। अंधविश्वास और खोखली परिपाटी को नेस्तानाबूद किया। डॉ. मोहन यादव यूं हैं तो उज्जैन के मगर उनकी पत्नी उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर की हैं। डॉ. मोहन उज्जैन दक्षिण से तीन बार भाजपा के विधायक चुने गए हैं। उनका पुश्तैनी आवास गीता कॉलोनी में है। अर्थात उज्जैन अब दूसरी राजधानी होगी।