- बेटा-बेटी के साथ दौड़ रहे मां-बाप ने दिया स्वस्थ रहने का बड़ा संदेश
- पढ़ाई के दौरान करीब 42 किमी. पैदल चल लेते थे आईजी मनोज
- मैराथन युद्ध में सिपाही का आखिरी शब्द ‘नक्की’ तब से हो रहा प्रयोग
नया लुक संवाददाता
लखनऊ। यूं तो फिट और स्वस्थ रहना हर शख्स की पहली चाहत होती है। लेकिन पूरा परिवार एक सुर में फिटनेस पर ध्यान दे और शहर में हो रहे मैराथन में दौड़ जाए तो जानकर चकित हो जाएंगे। जी हां, राजधानी का एक ऐसा ही परिवार है जो दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट हेल्थॉन हाफ मैराथन में भागा। हालांकि इस मैराथन में लखनऊ के तमाम फिट लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। परिवार के सभी सदस्यों को भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी डॉ. ब्रह्मदेव तिवारी ने मेडल पहनाकर दोबारा सम्मानित किया। गौरतलब है कि डॉ. तिवारी 2006 बैच के आईएएस अफसर हैं और वर्तमान में मेघालय राज्य के शिलांग में बतौर मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) तैनात हैं।
राजधानी लखनऊ से करीब 210 किसी बस्ती जिले के छरदही निवासी ओपी दुबे बीते दो दशक से लखनऊ में रह रहे हैं। भारत की सबसे बड़ी कॉरपोरेट कम्पनी में कार्यरत दुबे अपनी फिटनेस को लेकर शुरू से ही सजग रहे। हॉस्टल में उनके वरिष्ठ और भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी मनोज तिवारी कहते हैं कि पढ़ाई के दौरान हॉस्टल से निकलकर 42 किमी पैदल यात्रा कुछ साथियों की हो जाया करती थी। तब पूरा प्रयागराज हमलोग पैदल ही नाप आया करते थे। लेटे हुए हनुमान के दर्शन से लेकर सरस्वती घाट और फिर दारागंज सभी यात्रा पैदल ही हुआ करती थी। ओपी ने उसे पैशन बना लिया इसलिए 47 की उम्र में भी वो मैराथन में दौड़ सका। बताते चलें कि मनोज तिवारी साल 2003 बैच के आईपीएस हैं और मौजूदा समय में सिक्किम में बतौर आईजी तैनात हैं।
इस हेल्थॉन मैराथन में ओपी दुबे की पत्नी संगीता उनकी बेटी मानसी और पुत्र आस्तिक ने भाग लिया। पति-पत्नी दो किमी की रेस में शामिल थे तो बेटा-बेटी ने पांच किमी की दूरी करीब 23 मिनट में पूरी की। इस वर्ग में विजेता को यह रेस 19 मिनट में पूरा करना था। इसलिए 00 15वें स्थान पर रहे। बकौल दुबे, इस मैराथन में पत्नी समेत भाग लेने का मकसद सिर्फ इतना था कि लोग अपने बच्चों के साथ फिटनेस पर ध्यान दें। क्योंकि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क होता है।
जनेश्वर मिश्र पार्क से शुरु हुए इस मैराथन को आयोजकों ने चार कैटेगरी में बांट दिया था। दो किमी, पांच किमी, 10 किमी और 21 किमी की इस मैराथन में गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल दिए गए। प्रतियोगिता के सभी 18 विजेताओं को सम्मानित किया गया। इस दौड़ में रवि और उजाला पहले स्थान पर रहे। दोनों को 25-25 हजार का चेक देकर सम्मानित किया गया। यूपी पुलिस में कार्यरत उजाला के अनुसार हेल्थॉन में दौड़ना एक बेहद ही शानदार अनुभव रहा है। इस तरह के इवेंट आपको आगे की तैयारी करने में मदद करते है। वहीं एक अन्य धावक ने कहा कि पांच किमी वाली रेस में हिस्सा लिया था। मन में यही था कि किसी भी तरह इसे जीत हासिल करनी है। जीत मिली और मेडल पाकर बेहद खुशी हो रही है।
क्या है मैराथन इतिहास
मैराथन दौड़ का इतिहास यूनान के एथेंस से 26 मील दूर मैराथन के मैदान में यूनानी और फारसी सैनिकों के बीच युद्ध से जुड़ा हुआ है। इस जंग में महज 10 हजार यूनानी सैनिकों ने एक लाख पर्सियन सैनिकों को हरा दिया था। इस जीत की खुशखबरी देने यूनान का एक ‘फिडिपीडेस’ नामक सैनिक तब युद्धस्थल से तकरीबन 26 मील तक बिना रुके दौड़ता हुआ एथेंस पहुंचा था। वह जंग से बिल्कुल थक चुका था, फिर भी जंगलों, कटीली झाड़ियों और पहाड़ों वाले रास्ते में बिना कहीं रुके भागता ही रहा। एथेंस में प्रवेश करने तक उसके पैर लहुलुहान हो चुके थे। उसकी साँस उखड़ रही थी। उसने देशवासियों को बोला ‘निक्की’ यानी देशवासियों हम युद्ध जीत गये खुशियाँ मनाओ। उसके तुरंत बाद ही उसकी मौत हो गयी थी। तभी से किसी कार्य के पूर्ण हो जाने पर आज भी ‘नक्की’ शब्द पूरी दुनिया में कहा जाता है।
गौरतलब है कि पहला ओलम्पिक खेल यूनान में सन 1896 में शुरू हुआ था। तभी से इस रेस की दूरी 26 मील, 385 यार्ड्स वर्ष अर्थात लगभग 42.195 किलोमीटर होती है। यानी युद्ध क्षेत्र मैराथन से एथेंस की तकरीबन इतनी ही है। इस दौड़ में पुरुष तो 1896 से हिस्सा लेते आ रहे हैं, लेकिन महिलाओं की इंट्री वर्ष 1984 के लॉस एंजेलिस ओलंपिक में हुई। जहां अमरीकी धावक जोन बेनोइट ने पहला स्वर्ण पदक जीता था।