भक्ति साहित्य एवं मानव मूल्य के प्रतीक पुरुष डॉ. महेश सिंह यादव

डॉ. सञ्जय कुमार

देश में जब शिक्षा नीति ,न्यूक्लियर पावर प्लांट और श्वेत क्रांति की शुरुआत हो रही थी, जब देश अपने विकास के विभिन्न संसाधनों की ओर उन्मुख था , उसी विकास पथ पर उल्लसित सस्यश्यामला बड़ागांव -गाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश की पवित्र धरा पर एक  दिसंबर 1969 ई को डॉ.महेश सिंह यादव का जन्म हुआ था। डॉ.यादव बाल्यकाल से ही बड़े मेधावी और कुशल विद्यार्थी थे। गुरुजनों के प्रति सम्मान की भावना मण्डित थे। प्राथमिक शिक्षा अपने ग्राम के प्राथमिक विद्यालय से प्राप्त करने के उपरांत आप जनता इंटर कॉलेज दुल्लहपुर से हाईस्कूल तथा महंत रामाश्रय दास इंटरकॉलेज भुड़कूडा -गाजीपुर से इंटरमीडिएट की परीक्षा  ससम्मान अंकों के साथ उत्तीर्ण कर काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से स्नातक ,स्नातकोत्तर, पीएचडी  और बीएड की उपाधि प्राप्त कर 2001 ई. में RGNP इंटर कॉलेज ,राजा का ताजपुर ,बिजनौर उत्तर प्रदेश में हिंदी विषय के प्रवक्ता नियुक्त हो गए। इसके बाद वही कुछ दिन बाद अपने कर्तव्यनिष्ठा से कार्यवाहक प्रधानाचार्य के दायित्व का निर्वाह भी  न करने लगे। फलत:  कुशल प्रशासकीय क्षमता के कारण उत्तर प्रदेश सरकार के 2023 ई. में श्रीकृष्णा इंटर कॉलेज ,बिजनौर में स्थाई रूप से प्रधानाचार्य नियुक्त हो गए।

  यद्यपि प्रारंभ में डॉ. महेश सिंह यादव गणित के अच्छे विद्यार्थी थे लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण इंजीनियरिंग आदि की तरफ नहीं जा सके। गणित आदि विषय के साथ हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति उनमें विशेष रूचि थी।  इसलिए अपनी रुचि और मति अनुसार  उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में  स्नातक कक्षा में नामांकन कर लिया। विश्वविद्यालय के  श्रेष्ठ अध्ययन का वातावरण और महनीय  व्यक्तित्व को धारण करने वाले ऋषिकल्प शिक्षकों का सानिध्य प्राप्त कर डॉ. महेश सिंह यादव का जीवन अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने लगा। नए जीवन और सुखद भविष्य की ओर बड़ी तेजी से बढे लेकिन पहले से ही दाहिने हाथ से दिव्यांग डॉ.यादव स्नातक तृतीय वर्ष में ही असाध्य रोग ट्यूमर {कैंसर से ग्रसित हो गए।  लेकिन अपनी जिजीविसा और विद्या व्यसन के कारण स्नातकोत्तर हिंदी में पुन:नामांकन कर लिए। आश्चर्यमय उनका साहस था। कभी हार न मानने वाला आत्मबल था।  ऐसी विषम स्वास्थ्य की अवस्था में उन्हें अध्ययन की चिंता थी।

अद्मय साहस  और चुनौतियों से लड़ते रहने की एक अलग दृष्टिकोण को धारण करने वाले डॉ.महेश सिंह यादव स्नातकोत्तर की उपाधि ससम्मान अंकों के साथ प्राप्त कर लिए। धीरे-धीरे उनके स्वास्थ्य में भी सुधार होने लगा । कई बार ऑपरेशन और विद्युत किरण से सेकाई के द्वारा ईश्वर की कृपा से उस असाध्य रोग पर विजय प्राप्त कर लिए।  हिंदी भाषा और भक्ति साहित्य में विशेष लगाव होने के कारण आप ‘आधुनिक राम काव्य धारा परंपरा और आधुनिकता’ विषय पर 1998 ईस्वी में पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर लिए।  जो उस समय पूरे क्षेत्र के लिए गौरव की बात थी।  शोध कार्य के दौरान आपको काशी हिंदू विश्वविद्यालय के द्वारा विशेष प्रतिभावान छात्र के रूप में शोध वृद्धि भी प्रदान की गई थी। इसके बाद बीएड स्पेशल का कोर्स भी आपके द्वारा किया गया तत्पश्चात सरकारी सेवा में नियुक्त हुए। अध्यापन उनका पेसा नहीं था बल्कि उनका शौक था । पढाने के लिए उन्हें समय की कोई सीमा नहीं होती थी  केवल  वे अपना विषय ही नहीं पढ़ते थे उन्हें विद्यार्थी जो विषय कह देते थे वही पढाने लगते थे । जो विषय उन्हें समझ में नहीं आता था उसे पढ़कर ,सीख कर पढ़ना अपना कर्तव्य समझते थे । उनके अंदर अध्ययन की बहुत रुचि थी। वे भाषा विज्ञान ,पत्रकारिता आदि विषयों में भी  स्नातकोत्तर की  उपाधि प्राप्त किए हुए थे।  यूजीसी नेट ,स्लेट आदि परीक्षा भी उत्तीर्ण किए हुए थे।

यद्यपि डॉ.महेश सिंह यादव इंटर कॉलेज में अध्यापक थे लेकिन उनका लेखन ,अध्यापन ,उद्बोधन आदि विद्वानों की श्रेणी जैसा था।  उच्च संस्थान की भाव गरिमा से आप आलोकित थे। कई बार  किसी उच्च संस्थान में पहुंचने के लिए आपने प्रयास भी किया लेकिन सफलता नहीं मिल सकी । परंतु अपने लेखन आदि को निरंतर  आप धार देते रहे। उनका मानना था कि मनुष्य का जीवन अध्ययन के लिए मिला हुआ है इसलिए जितना संभव हो उतना अध्ययन करना चाहिए और उसे अध्ययन से  जो प्राप्त हो जाय उसी का वितरण  लोक अभ्युदय के लिए करना चाहिए। साहित्य के मर्म को समझने वाले डॉ. यादव अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किये थे जिसमें अष्टसई ,हाल-चाल, जीजा ,आधुनिक राम काव्य परंपरा ,संत शिरोमणि सुंदर दास एक मूल्यांकन ,ब्रजभाषा तथा भोजपुरी का विकास आदि प्रमुख हैं।  हिंदी तथा भारतीय संस्कृति ,जीवन मूल्य, पर्यावरण ,वैश्विक समस्या,वैदिक धर्म दर्शन तथा भक्ति साहित्य पर केंद्रित शताधिक शोध पत्रों का भी प्रकाशन विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में आपके द्वारा कराया गया है। आपका लेखन भक्ति साहित्य और मानव मूल्य की दृष्टी  से अलग पहचान रखते हैं। आपके द्वारा अष्टसई लिखि गयी है उसमें  आठ सौ हिंदी भाषा में दोहों का प्रणयन किया गया है। जो हिंदी साहित्य में रेखांकित करने योग्य कार्य है।  “जीजा” अनेक सामाजिक विषयों पर केंद्रित कहानियों का संग्रह है तथा “हाल-चाल” कविता संग्रह है जिसमें सामाजिक विषय , संदर्भ ,सामाज दर्शन,आदि विषय है। अष्टसई  गंभीर विषय से संबंधित होने के कारण उसमें अनेक मूल्य परक विषय स्वत:उपस्थित हो गये हैं।

हिन्दी दोहों से समन्वित इसमें अनेक सांस्कृतिक विषय हैं  जिसमें बाल हट के विषय पर भी लिखते हैं-बालक का बाल रुदन है रुदन रिझावत लोक। रुदन बाद किलकत शिशु किलक हरत बहु शोक।। अहंकार को वे बहुत बड़ा दोष मानते थे। इसलिए गर्व न करने का परामर्श देते हुए लिखते हैं-सदा डरो न गर्व से गर्व बनावत खर्व। गर्व किया रावण बली नाश किया खुद सर्व।  कलयुग में मनुष्य के सत्य भाषण के विषय में कहते हैं -कलयुग के संसार में नहीं कहत जन सत्य । भारी पलड़ा देखकर उसका बनत अपत्य।। विनय मनुष्य का भूषण है ,बिना शील का  मनुष्य बंदनीय, पूजनीय नहीं होता है । विनय के विषय में भी लिखते हैं  – विनय वसत उर जिसके बनता वही महान । पानी गिरत जमीन पर सिर पर है सम्मान।। भारत की पहचान के विषय में उनका मानना था कि भारत का जो पहचान है वह जन-जन का सम्मान है। उच्च नीच की भावना से रहित ही भारत की पहचान है। इस विषय में वे कहते हैं -जन-जन का सम्मान ही भारत की पहचान |इसके कारण जगतगुरु समझो हिंदुस्तान ।। मनुष्य का जीवन  दर्पण की तरह साफ होना चाहिए, निर्मल होना चाहिए।

इस विषय में वे लिखते हैं-निर्मल हृदय विवेक संग चलता जो संसार। सुखी और संपन्न रह करता  अटल प्रसार ।। इन दोहों में पथ प्रदर्शन की शक्ति है। जीवन की कठिन सच्चाइयों का ये  दोहा  बयां करते हैं । इस प्रकार हम देखते हैं कि डॉ.महेश सिंह यादव बहु प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे।  वे  जीवन की विषमताओं लडने वाले,कर्म की पूजा  करने वाले थे । सदैव धैर्य धारण करने वाले तथा अनवरत साहित्य सृजन में संलग्न रहते थे। लेकिन साहित्य का यह महारथी जीवन की समस्याओं से न हार मानाने वाला ,जीवन की सच्चाई को परखने वाला एक दिन अचानक तीन जनवरी 2023 को अपनी प्रिय साहित्य की समर भूमि और जीवन भूमि को छोड़कर हमेशा के लिए आकाश मंडल के नक्षत्रों  में शामिल हो गए।  ऐसे मह मनीषी का जीवन  भक्ति साहित्य और मानव मूल्य के  प्रतीक  के रूप में दृष्टिगोचर होता  है। आपके प्रथम पुण्यतिथि पर हम अपनी ओर से  आपको भावांजलि अर्पित करते हैं।

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