संदेश वाहक कल रूठा था,आज स्वस्थ है। उत्तरायण लगते ही प्रकृति बासंती वैभव की ओर उन्मुख हुआ। सबको मकर संक्रांति की शुभकामना। दैत्यों की रात्रि शुरु हुई देवो का दिन निकला। खरमास बीता सूर्य दक्षिण से उत्तर की दिशा मे उन्मुख हुए।
पंचदेवों के उपासक हैं, अत : उनके चरणो मे साष्टांग प्रणाम करते हुए विश्वकल्याण की शुभकामना करता हूं। मकरवाहिनी गंगा, मकरध्वज कामदेव और मकराकृत कुंडल धारी श्रीकृष्ण ने सारी दुनियां को अपनी छत्रछाया में ऐसा समेटा है कि इंसान इनकी नजरों से बच नहीं सकता।
वसंत के आगमन का संदेश वाहक सरसों के खेत मे लहलहाते पीले फूल हैं और आम के पल्लव के बीच मुसकाते बौर हैं । भारतीय परंपरायें सभी प्रकृति से जुड़ी हैं, हम सभी प्रकृति के ही कुसुम हैं। हम स्वयं को प्रभु के चरणों मै समर्पित होकर एक दूसरे के अभ्युदय की कामना करते हैं। आज नये चावल,उड़द की दाल की खिचड़ी… का दिन है। तिल का लड्डू ,दही -चिउड़ा और आपसी शुभकामना का पावन दिन। अहा! अयोध्या से शंखध्वनि भी आने लगी है। सरयू का पावन जल मुसकाने लगा है।
सूर्य भी गुरु वृहस्पति का गुरु कुल छोड़ बाहर आए और उन्होंने पुत्र की मकर राशि मे संक्रमण किया। प्रकृति को पीत परिधान मे नर्तन करने और बसंत को अपने गीत नृत्य से धरा को सुशोभित करने का आमंत्रण दे दिया। अब प्रकृति शीत बद्धता से मुक्त होगी गंधर्व और अपसराये स्वर्ग की आभा धरती पर बिखेरेंगे।