
- सिहावा पहाड़ ऊपर है श्रृंगी ऋषि और शांता का आश्रम
- श्रृंगी ऋषि का कमंडल उलटने प्रकट हुई महानंदी
हेमंत कश्यप
जगदलपुर । भगवान राम की एक बहन थी। जिनका नाम शांता था, किंतु वे कभी उनसे नहीं मिले थे। वनवास के दौरान जब भगवान राम दंडकारण पहुंचे तब पहली बार बहन शांता और जीजा श्रृंगी ऋषि से मिले। श्रृंगी वही ऋषि हैं जिनके सानिध्य में राजा दशरथ ने पुत्र कामेष्ठी यज्ञ करवाया था। लोक मान्यता है कि गंगाजल से भरा श्रृंगी ऋषि का कमंडल उलटने से जो धारा प्रवाहित हुई वही छत्तीसगढ़ के गंगा महानंदी के नाम से विख्यात हुई। यह स्थल धमतरी जिले के सिहावा पहाड़ के ऊपर है। इतिहासकारों के अनुसार महानंदी और गोदावरी नदी के मध्य का इलाका दंडकारण कहलाता है। आजादी के पहले तक सिहावा बस्तर रियासत का हिस्सा था। और यहां के सिरसिदा गांव में बस्तर राज परिवार द्वारा बनवाया गया मां दंतेश्वरी का पुराना मंदिर है।
पौराणिक कथा है कि जब भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ, तब माता कौशल्या ने उन्हें अवगत कराया था कि उनके ननिहाल कोशल राज्य अंतर्गत दंडकारण्य है और वहीं तुम्हारी बड़ी बहन शांता रहती है। उनके पति श्रृंगी ही तुम्हारे जीजा हैं। यह जानकारी मिलने और बहन से मिलने की उत्कंठा से हो प्रभु राम ,सीता और लक्ष्मण सिहावा पहुंच बहन शांता और श्रृंगी ऋषि से आशीर्वाद प्राप्त किया था। सिहावा पहाड़ के समीप का कर्णेश्वर धाम भी सैंकड़ों साल पुराने राम मंदिर के लिए विख्यात है। सिहावा को पावन नगरी माना जाता है। यहां हजारों साल पुरानी मूर्तियां मौजूद हैं। गुफा में श्रृंगी ऋषि की प्रतिमा है। पास ही महानंदी का उदगम स्थल और शांता गुफा है।
कौन थे श्रृंगी ऋषि
वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि ऋषि श्रृंगी पुत्र कामेस्ठी यज्ञ में विशेषज्ञ थे। जिन्होंने राजा दशरथ के पुत्र प्राप्ति के लिए अश्वमेध यज्ञ तथा पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया था। वह विभाण्डक ऋषि के पुत्र तथा कश्यप ऋषि के पौत्र हैं। श्रृंगी ऋषि के माथे पर सींग (संस्कृत में ऋंग) जैसा उभार होने की वजह से उनका यह नाम पड़ा था। उनका विवाह अंगदेश के राजा रोमपाद की दत्तक पुत्री शान्ता से सम्पन्न हुआ था। जो कि वास्तव में राजा दशरथ की पुत्री थीं। पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रृंगी ऋषि विभाण्डक तथा अप्सरा उर्वशी के पुत्र थे। श्रृंगी के पैदा होने के तुरन्त बाद उर्वशी स्वर्ग लौट गईं। इस धोखे से विभाण्डक इतने आहत हुए कि उन्होंने अपने पुत्र पर नारी का साया भी न पड़ने देने की ठान ली। इसी उद्देश्य से वह श्रृंगी का पालन-पोषण सघन दंडकारण्य में करने लगे। अंगराज रोमपाद ने ऋषियों तथा मंत्रियों से मंत्रणा कर युवा श्रृंगी को किसी तरह अंगदेश बुलाया तथा उनके पिता के क्रोध से बचने रोमपाद ने तुरन्त अपनी दत्तक पुत्री शान्ता का हाथ श्रृंगी को सौंप दिया था।