
-सोऽहम् की साधना
योगी मत्स्येंद्र नाथ के शिष्य योगी गोरक्षनाथ की साधना स्थली वैसे तो पूरा भारत रहा,परंतु राप्ती नदी के तट गोरखपुर को उनकी साधना स्थली माना जाता है। हठयोग के मूल तो साक्षात शिव है,उन्हें ही अलख निरंजन के नाम से पुकारा जाता है। हठयोगी गोरक्षनाथ परम सिद्ध योगी थे। हठयोग की साधना से इन्होंने परम सिद्धि पाई और सोऽहम की साधना से इन्होंने आत्म तत्व को चेतन सत्ता से जोड़ लिया था।
बताते हैं एक महिला ने योगी मत्स्येंद्र नाथ से नि: संतान होने की अपनी पीड़ा व्यक्त की। योगी ने धुनी की राख दे दी। जिसे खा लेने पर गर्भ ठहर गया वही संतान जन्म लेने पर गोरक्षनाथ कहलाया। योगी मत्स्येद्रनाथ ने उसकी मां से यह बच्चा मांग लिया और हठयोग से दीक्षित किया। योगी गोरक्षनाथ ने धुनी रमाई और सोऽहम् की साधना की। वास्तव मे यह श्वासो की साधना थी। सहज रुप मे हमारी हर सांस जौ हम ग्रहण करते है,सो की ध्वनि निकलती है और श्वांस छोड़ते है तो अहम् की ध्वनि निकलती है। इस तरह सहज श्वांस प्रश्वांस से सोऽहम् की,अर्थात निरंतर अजपाजप की साधना चलती रहती है। यही अहं ब्रह्मास्मि की साधना है।