प्राणिमात्र कर स्वारथ येहू,
राम चरण पद पंकज नेहू।
रामु सनेहु मन वचन कर्म से,
राम भगति अतिशय विवेक से।
नर तनु यहु पावन करि लेहू,
रघुपति नाम सदा जपि लेहू।
मोहि परम प्रिय हैं सिय रामू,
यह तनु सौंपि दीन्ह तिन्ह नामू।
तनु बिन भाव भजन नहिं होहीं,
वेद पाठ श्रुति ज्ञान नहिं पाहीं।
रामविमुख सुख दुःख कत नाना,
जनु कृत कर्म निरर्थक जाना ।
दोहा: कोशल पुर कृत युग कर,
आदित्य परमधाम अभिराम।
नाना भाँति जहँ अवध पुर,
सजि धजि सेवहिं श्रीराम॥
राम लला पर सत्य सनेहू,
सनातनी हरि हर कर गेहू।
प्राण प्रतिष्ठा प्रभु करि होइहि,
शिव विरंचि मिलि देहिं अशीषहि।
देव दनुज धरि मनुज शरीरा,
देख़िहहिं राम लला कर क्रीड़ा।
अवध पुरी अति पुरी सुहावनि,
उत्तर दिशि बह सरयू पावनि।
भरत भूमि सानन्द सजग अति,
राम लखन सिय सहित विराजति।
पंचशतक वरस कर जो वन वासू,
निर्जन निशि दिन छतहीन निवासू।
दोहा : दुई सहस्र चौबीस सन्,
सम्वत् दुई सहस्र अस्सी।
आदित्य श्रीराम कर गेहु यह,
निर्मित वासर सोम सहर्सी॥