ईमाम भी थे अयोध्या में! अद्भुत था प्राण प्रतिष्ठान!!

के. विक्रम राव 

कल (22 जनवरी 2024) विशाल राम मंदिर परिसर में एक अति विलक्षण नजारा पेश आया था। हजारों काषायधारी संतों की अगली पंक्ति में एक व्यक्ति विराजा था। सफेद, घनी झूलती दाढ़ी, सिर पर रेशेदार लोमचर्म वाली फर टोपी, अचकन पर शाल ओढ़े वह निराला ही दिख रहा था। नाम है डॉ. उमर अहमद इलियासी। इलियास के मायने हैं समुद्र का रक्षक-पैगंबर। उन्हीं के कुटुंब के। यह दृश्य नरेंद्र मोदी के समन्वयात्मक आचरण का प्रतीक था। कौन साहब हैं यह डॉ. इलियासीजी ? वे भारत के पाँच लाख ईमामों की एकमात्र आवाज हैं। करोड़ों भारतीय मुसलमानों के आध्यात्मिक मार्ग दर्शक हैं। डॉ. इलियासी अखिल भारतीय ईमाम संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। विश्व के तीसरे सबसे बड़े मुस्लिम आबादी वाले राष्ट्र भारत की छः लाख मस्जिदों में ईमाम सक्रिय हैं।

डॉ. इलियासी ने साधारण पेशे वाले ईमामों की कार्य प्रणाली, खासकर सेवाशर्तों में बहुत सुधार किया। जब कांग्रेस के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने छोटी मस्जिदों के लिए सरकार से वेतनमान तय किए थे, तब बड़ी मस्जिदों के धनी ईमामों ने खूब हो हल्ला किया। ईस्लाम खतरे में पड़ गया है का नारा भी बुलंद किया। पर ईमामों का संगठन संघर्ष करता रहा। डॉ. इलियासी का संगठन विश्व का सबसे बड़ा है। हाल ही में डॉ. इलियासी को भगत यूनिवर्सिटी, पंजाब द्वारा डॉक्टरेट ऑफ फिलासफी से सम्मानित किया गया है। इतिहास में पहली बार है कि किसी मस्जिद के इमाम को शिक्षा के सर्वोच्च पद से सम्मानित किया गया है। डॉ. इलियासी अंतरधार्मिक संवाद के सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसका प्रतिनिधित्व करते हैं। विश्व के अधिकांश प्रमुख निकाय इस्लाम और मुसलमानों से संबंधित मुद्दों पर मार्गदर्शन के लिए उनसे संपर्क करते हैं। वह इस्लामी न्यायशास्त्र में पारंगत हैं और प्रासंगिक हलकों में उनकी राय प्रामाणिक और भरोसेमंद मानी जाती है।

वह उन कुछ इस्लामी विद्वानों में से एक हैं जो उग्रवाद के और आतंकवाद, चाहे वह किसी भी रूप में मौजूद हो, पर बहुत स्पष्ट और मुखर रुख रखते हैं। स्वभाव से वह एक तर्कवादी हैं और सबसे उत्तेजक स्थितियों में भी तर्क और ज्ञान द्वारा निर्देशित होता है। डॉ. इमाम इलियासी धर्म की दुनिया में एक विश्वसनीय नाम हैं और इसीलिए वह भारत और विदेशों में संघर्ष समाधान में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं। फिलिस्तीन-इसराइल और अरब-इजरायल जैसे संघर्षों में उनकी सेवाएं सराहनीय हैं। अपने गतिशील नेतृत्व के माध्यम से वह दुनिया भर में मुस्लिम समुदाय का वैज्ञानिक मार्गदर्शन कर रहे हैं। उन्हें उन स्थितियों में अपना रुख अपनाने के लिए जाना जाता है, जहां ज्यादातर लोग पलायनवाद को प्राथमिकता देते हैं। उसके विश्वास उसके कार्यों का मार्गदर्शन करते हैं। वह वर्तमान कठिन व्यवस्था से निपटने वाला व्यक्ति है। शांति, अंतरधार्मिक सद्भाव और सभ्यताओं के बीच संवाद के प्रति उनकी प्रतिबद्धता से किसी को भी संदेह नहीं है। डॉ. इमाम इलियासी को शांति और सद्भाव की दिशा में योगदान के लिए सैकड़ो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं।

प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शिरकत करने पहुंचे इलियासी ने इंसानियत का संदेश दिया है : “ये बदलते भारत की तस्वीर है। मैं यहां मोहब्बत का पैगाम लेकर आया हूं।” डॉ. इलियासी ने कहा कि इबादत का तरीका, पूजा पद्धति और आस्थाएं जरूर अलग हो सकती हैं लेकिन सबसे बड़ा धर्म इंसानियत का है। उन्होंने इंसानियत को बनाए रखने का आह्वान किया। इमाम ने कहा कि हमारे लिए राष्ट्र सर्वोपरि है। उन्होंने कहा कि आज का संदेश नफरतों को खत्म करने का है। बहुत रंजिश हो गई, बहुत राजनीति हुई, अब वक्त आ गया है कि हम सब एकजुट होकर भारत को मजबूत करने का काम करें।

उन्होंने अखंड भारत बनने की कामना की। प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि हम सब मिलकर राष्ट्र को मजबूत करने का काम करेंगे। इलियासी ने कहा कि हमारा सबसे बड़ा धर्म इंसानियत का है। दर्द होता है जब जब राम को वोट से जोड़ने का प्रयास किया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय में रामसेतु पर संप्रग सरकार ने बेहूदा बयान दर्ज कराया कि राम काल्पनिक थे। नतीजे में कांग्रेस को माफी मांगनी पड़ी, जनता के सामने रोना धोना पड़ा, अदालत से बयान वापस लेना पड़ा। रामसेतु पर राजनीति शुरू से लंगडी थी। रेंग भी न पाई। हिंदू-बहुल सरकार की हलफनामे के की तुलना में तो मुसलमान साहित्यकारों के राम के मुतल्लिक उद्गार अधिक ईमानदार रहे। अल्लामा इकबाल ने कहा : “राम के वजूद पे है हिंदुस्तां को नाज।” इस इमामे हिंद पर शायर सागर निजामी ने लिखा : “दिल का त्यागी, रूह का रसिया, खुद राजा, खुद प्रजा।” मुगल सरदार रहीम और युवराज दारा शिकोह तो राम के मुरीद थे ही। ईमाम उसी श्रेणी में आते हैं।

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