नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने करोड़ों रुपये के बैंक ऋण घोटाला मामले में दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (DHFL) के पूर्व प्रमोटरों कपिल वधावन और उसके भाई धीरज की डिफ़ॉल्ट जमानत बुधवार को रद्द कर दी। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति एस सी शर्मा की पीठ ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की अपील पर सुनवाई के बाद अपने आदेश में कहा कि इस अदालत को यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि वधावन बंधुओं के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया गया और उचित समय पर संज्ञान लिया गया, लेकिन वे (वधावन बंधु) अधिकार के तौर पर वैधानिक जमानत का दावा नहीं कर सकते।
पीठ ने उच्च न्यायालय और निचली अदालत द्वारा आरोपियों को ‘डिफॉल्ट’ जमानत देने फैसले को त्रुटिपूर्ण बताते हुए कहा कि निचली अदालत वधावन बंधुओं की नियमित जमानत के मामले में नए सिरे से सुनवाई कर सकती है। CBI ने 42,871.42 करोड़ रुपये के बैंक ऋण घोटाला मामले में कपिल वधावन और उनके भाई धीरज को निचली अदालतों द्वारा दी गई। वैधानिक जमानत को चुनौती दी थी। शीर्ष अदालत में सुनवाई के दौरान CBI का पक्ष रख रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने दलील दी कि इस मामले में आरोप पत्र 90 दिनों की निर्धारित वैधानिक अवधि के भीतर दायर किया गया और फिर भी आरोपी को वैधानिक जमानत दी गई थी।
आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CRPC) के प्रावधानों के मुताबिक यदि जांच एजेंसी 60 या 90 दिनों की अवधि के भीतर किसी आपराधिक मामले में जांच के समापन पर आरोप पत्र दाखिल करने में विफल रहती है तो आपराधिक आरोपी को वैधानिक जमानत लेने की अनुमति दी जाती है। CBI ने इस मामले में मुकाम (FIR) दर्ज करने के बाद गिरफ्तारी के 88वें दिन आरोप पत्र दायर किया और निचली अदालत ने आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत दे दी और दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल मई में उस आदेश पर मुहर लगा दिया था। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली CBI की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि उन्हें जमानत देने का निर्णय ‘अच्छी दलीलों और तर्कों पर आधारित’ था। CBI का आरोप है कि DHFL, इसके तत्कालीन CMD कपिल वधावन, निदेशक धीरज और अन्य आरोपियों ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व वाले 17 बैंकों के कंसोर्टियम को 42,871.42 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी करने के लिए आपराधिक साजिश रची थी।(वार्ता)