- 21वीं सदी में मुश्किलें बढ़ीं
- एकल परिवार भी असंतुष्ट
- पति -पत्नी और बच्चे असंतुलन के शिकार
किसी पात्र में दूषित जल भरा है,तो गंगा जल डालने पर भी वह दूषित ही बना रहेगा। उस पात्र में गंगा जल की पवित्रता बनी रहे ,इसके लिए पहले पात्र मे पहले से भरा दूषित जल उलट कर गिराना पड़ेगा। फिर गंगा जल रखने पर स्वच्छता कायम रहेगी। ठीक इसी तरह मन मे पहले से कुछ भरा हो,तो सत्संग की बातें टिकती नहीं..उल्टे दोष बुद्धि के कारण,हम अच्छी बातों के भी उल्टे अर्थ निकालने लग जाते हैं। इस तरह काम खराब होजाता है। पहले से मायके से दूषित विचार और पट्टीदारी की बाते देख कर आई बेटियां ससुराल मे वही माहौल बना देती है। यदि मायके में सुलझे हुए लोग हो, अच्छा माहौल हो तो वे ससुराल मे अलगाव और एक दूसरे के प्रति स्वार्थ परता के कारण विवाद दिखता है तो वे अपने व्यवहार से मामला सुलझा लेती है।
इसलिए हमें अपने परिवार का माहौल सकारात्मक करने पर ध्यान देना चाहिए। माता -पिता बेटे बेटियों को अच्छा माहौल दें। ऐसे टीवी सीरियल भी न चलाये जायं जो फेमिली शो के नाम पर झगड़े और प्रपंच को ही बल देते हो। नमक मिर्च लगा कर अनीति और अधर्म परोसने वाले सीरियल्स कदापि न देखें। बच्चों को भी सोशल साईट पर अनर्गल रील्स न देखने दे बल्कि हमेशा वाचफुल रहें। परिवार के सदस्य छोटे पन से उनमे अच्छी आदतें बने इस पर ध्यान रखें। स्मरण रहे,पति- पत्नी के बीच हर संवाद और संयुक्त परिवार की हर गतिविधियो पर बच्चों की निगाहें होती है। आज के चालीस साल पहले से अब स्थिति और परि स्थितियां बदल चुकी हैं। मौजूदा परिस्थिति मे कैसे रहन सहन बनाना है??स्वयं प्लानिंग करें। उस पर चलें भी। हर परिस्थिति मे जीने की आदत ढालें और हर संकट मे रास्ता तलाशें और नई पीढ़ी को तलाशने दें। आप बड़े लोग मात्र सहारा दें.. जहां जरुरत हो वहीं सलाह दें। इस प्रकार सलाह दें कि उनमे रियेक्शन न हो। यही वास्तविक निगहबानी होगी। यदि प्रतिक्रिया हुई तो यह संकेत है आपकी हर बात उसे नापसंद है।
संयुक्त परिवार तेजी से एकल परिवार में बदल रहे। सहनशीलता के अभाव मे पति पत्नी मे नोक झोंक आम बात होरही है। माता पिता का साथ न रहने पर बच्चों की देखभाल कठिन होरही। यदि दोनो नौकरी पेशा है तो मेड के भरोसे छोड़ने पर अलग तरह की दिक्कतें आरही हैं। जिससे अनेक विसंगतियां पैदा होरही हैं।