लखनऊ। उत्तराखंड विधानसभा ने समान नागरिक संहिता (UCC) विधेयक पारित कर इतिहास रच दिया है। ऐसा करने वाला वह देश का पहला राज्य बन गया है। उत्तराखंड विधानसभा में दो दिन की चर्चा के बाद बुधवार शाम को UCC विधेयक ध्वनिमत से पास हो गया। अब इस बिल को राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। राज्यपाल से मंजूरी मिलते ही यह कानून बन जाएगा। विधानसभा से पारित UCC के कानून बनने के बाद हिंदू और मुस्लिमों के अधिकारों में बड़े बदलाव आएंगे। विवाह और तलाक और वसीयत के संबंध में कुछ प्रमुख बदलाव इस प्रकार होंगे।
मुस्लिमों के लिए क्या बदलाव?
UCC में पुरुषों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 और 21 वर्ष किया गया है। वर्तमान मुस्लिम कानून लड़कियों के लिए शादी की उम्र के रूप में यौवन यानी 13 वर्ष की आयु को अनुमति देता है।
मुसलमानों के लिए वसीयती उत्तराधिकार (वसीयत के माध्यम से) और निर्वसीयत उत्तराधिकार (वसीयत के अभाव में) की प्रकृति में भारी बदलाव आएगा।
UCC में वसीयत पर कोई प्रतिबंध नहीं है कि व्यक्ति अपनी संपत्ति का कितना हिस्सा किसे दे। जबकि, वर्तमान में मुस्लिम व्यक्ति वसीयत में संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा ही पसंद के व्यक्ति को दे सकता है।
UCC विधेयक में द्विविवाह या बहुविवाह की प्रथाओं को गैरकानूनी घोषित किया गया है। यह एक शर्त के साथ किया जा सकता है कि किसी भी पक्ष के पास विवाह के समय जीवित जीवनसाथी नहीं हो।
UCC इद्दत और निकाह हलाला जैसी कुछ मुस्लिम विवाह प्रथाओं का भी स्पष्ट रूप से नाम लिए बिना उन्हें अपराध घोषित करता है।
हिंदुओं के लिए क्या बदलाव?
UCC हिंदू कानून के तहत पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति के बीच अंतर को खत्म कर देता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत सहदायिक अधिकारों का UCC विधेयक में उल्लेख नहीं है।
UCC में निर्वसीयत उत्तराधिकार जब कोई व्यक्ति बिना वसीयत किए मर जाता है, के मामले में माता-पिता दोनों को पहली श्रेणी के उत्तराधिकारी के रूप में पदोन्नत किया गया है। यानी प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों में बच्चे, विधवा के साथ पिता और माता दोनों शामिल होंगे।
माता-पिता दोनों को शामिल करने का मतलब यह हो सकता है। कि किसी व्यक्ति की संपत्ति उसके माता-पिता के माध्यम से उसके बच्चों और विधवा के हिस्से में कटौती करके उसके भाई-बहनों को मिल सकती है।