लेखक : सूर्य नारायण शुक्ल
समीक्षक : बीकेमणित्रिपाठी
एक भौतिक विज्ञान के अध्येता का उपन्यासकार होना आश्चर्यजनक है। इनके प्रकाशित चौथे उपन्यास ‘संजना’ को मैने पढ़ा,एक बारगी में पढ़ गया। पुस्तक के शीर्षक की सार्थकता प्रमाणित है,क्योकि समूचा उपन्यास ‘संजना’ नाम की पात्रा के ही इर्दगिर्द घूमता है। उपन्यास में पाठको मे अगला वृत्तांत जानने की उत्सुकता अंत तक बनी रहती है। यह एक नायिका प्रधान उपन्यास है। लोक में होरही घटनाओं पर आधारित है। काफी सिनेमाई अंदाज मे उपन्यास के चरित्र मिलते हैं और घटनाये घटती हैं।
लेखक ने बुरे काम का बुरा नतीजा दिखाते हुए जहां एक तरफ कहानी के प्रमुख पात्र उमेश को कामी,फरेबी,आपराधिक प्रवृत्ति का साजिश कर्ता ,लालची और बहुरुपिया बताया। तीन तीन लड़कियो को प्रेम जाल मे फंसाने फिर उनसे मुह मोड़ लेने वाले उमेश की अंतिम परिणति उसकी ही तीसरी प्रेमिका द्वारा चौथी जगह शादी रचाते समय चाकू मार कर हत्या कर दिये जाने व स्वयं को भी चाकू मार लेने से हुआ। वहीं संजना एक चंचल प्रवृत्ति की आकर्षक दिखने वाली किशोरी है,जो उमेश के प्रेमजाल मे फंस कर बिना शादी के गर्भवती होजाती है। पिता की नाराजगी से भाग कर प्रेमी से सुरक्षा चाहती है,परंतु प्रेमी द्वारा मारे जाने के षड़यंत्र का शिकार होती है। परिस्थितियां उसे बचाती है,उसकी संतान को भी बचा लेती हैं,जो किसी नि: संतान दंपति का चिराग बनता है।
कहानी मे बार बार ट्विस्ट आता है,नाटकीय ढंग से ही अपने बच्चे को मिलती है,शिक्षिका बनती है और अंत में एक महाविद्यालय के प्रोफेसर से शादी रचाती है,अपने बेटे को भी हासिल कर लेती है। सच्चाई जान कर प्रोफेसर पहले तो संशय करता हे,फिर सच्चाई जान कर स्वीकार कर लेता है। उपन्यासकार ने सामान्यत: वही बात उठाई है जो अमूमन बेटी का बाप करता है। अर्थात सच जान कर नाराज होता है। बेटी पर हाथ उठाता है,डर कर बेटी प्रेमी के साथ भाग जाती है। फिर प्रेमी उससे जान छुड़ाने के लिए साजिश रचता है। लड़की का बाप प्रेमी को मारने की सुपारी देता है,उसे झूठे मुकदमे मे फंसाता है और किसी तरह उसे जेल भेजने की साजिश रचता है। प्रेमी भागता फिरता है,छद्म नाम रख कर छोटी मोटी नौकरी से समय व्यतीत करता है। बच जाने पर घर लौट आता है। लोक लाज का भय उसे बहुत कुछ करने और न करने को मजबूर कर देता है। युवक और युवतियों के बीच विवाह पूर्व संबंधों पर एक सबक भी है। जिसमे धोखे की संभावना पग पग पर है फिर भी अंतत: संजना और प्रोफेसर के अंतर्जातीय विवाह का ही संदेश दिया गया है। जिसमे संजना को एक पति भी मिल जाता है और अपना बेटा भी। लेखक की भाषा सरल,सुबोध और सामान्य बोलचाल के हैं। शैली रोचक है।कही कही साहित्यिक मुहावरे भी हैं जैसे “हर शुभ कार्य मे कुछ न कुछ व्यवधान जरूर आते हैं”। जब देखा सचमुच बच्चा अपना है तो ‘पांव के नीचे की जमीन खिसक गई।’ संवाद कम है पर जो है वे कथानक को जीवंत बनाते है।