डॉक्टर उमाशंकर मिश्रा
यजुर्वेद का अधिपति और शरीर के वीर्य स्थान का स्वामी शुक्र है। इसकी दो राशियॉ है वृष एंव तुला। यह ग्रह सूर्योदय के पूर्व व पश्चात देखा जा सकता है और यह सांध्य तारा नाम से प्रसिद्ध है। शुक्र वासनाओं में पूरा आसक्त करवाता है दूसरी तरफ माता के समान निःस्वार्थ प्रेम का द्योतक है। शुक्र पत्नी, भौतिक सुख, कामशास्त्र, संगीत, आभूषण, वाहन, वैभव, कविता रस, व संसार की सभी सुख देनी वाली चीजों का कारक है।
शुक्र मीन राशि में उच्च का और कन्या राशि में होने पर नीच का होता है। तुला राशि में मूल त्रिकोण का होता है। शुक्र ग्रह का जीवन में महत्वपूर्ण रोल होता है। यदि शुक्र बलवान है तो लगभग हर भौतिक सुख की प्राप्ति होती है और यदि नीच का है या कमजोर है तो शारीरिक दुर्बलता, विवाह में देरी, गुप्त सम्बन्धों से बदनामी, मूत्र सम्बन्धी बीमारियॉ होना व प्रेम के मामलों असफलता ही हाथ लगती है।
शुक्र का प्रभाव
शुक्र की दशा मेष राशि वालों अच्छी नहीं होती है। यदि कुण्डली में शुक्र छठें, आठवें, बारहवें व पाप ग्रहों से युक्त व दृष्ट हो व्यक्ति को शुक्र से सम्बन्धित कई रोगों का सामना करना पड़ता है।
अगर सप्तम भाव में बुध व शुक्र हो तो एक स्त्री होती है और सप्तमेश व द्वितीयेश शुक्र के साथ अथवा पाप ग्रहोे के साथ होकर छठे, आठवें व बारहवें भाव में स्थित हो तो एक स्त्री मर जाती है। फिर दूसरा विवाह होता है।
मिथुन लग्न हो, लग्न में बुध, शुक्र, केतु व राहु हो तथा सप्तमेश गुरू दूसरे स्थान में पाप ग्रह के साथ हो व शनि सातवें भाव को देख रहा हो तो दो विवाह होते है लेकिन दोनों स्त्रियॉ मर जाती है।
अन्य पुरूष से संसर्ग करती है,
- कन्या लग्न हो लग्न में शुक्र नीच का हो तो वह स्त्री अपने पति के अलावा अन्य पुरूष से संसर्ग करती है।
- शुक्र धन भाव में हो और सप्तमेश ग्यारहवें भाव में हो तो जातक का विवाह 19 से 22 वर्ष की अवस्था में हो जाता है।
- शुक्र पंचम भाव में और राहु चतुर्थ भाव में हो तो जातक का विवाह 31 से 33 वर्ष की उम्र में होता है।
विवाह उतना ही जल्दी होता है - ग्नेश से शुक्र जितना नजदीक होता है विवाह उतना ही जल्दी होता है।
- शुक्र व मंगल लग्न, चतुर्थ, छठें, सातवें, आठवें व बारहवें हो तो जातक का प्रेम विवाह होता है।
- शुक्र मंगल के साथ छठें भाव में हो तो मनुष्य कामी होता है। शुक्र मिथुन या तुला राशि में हो तो स्त्री-पुरूष दोनों कामी होते है।
शुक्र ग्रह से होने वाले रोग
- छठें भाव का मालिक शुक्र के साथ लग्न या अष्टम भाव में हो तो ऑख के रोग होते है।
- सिंह राशि में सूर्य को शुक्र देख रहा हो तो पाइल्स रोग हो सकता है।
- शुक्र अस्त हो, छठेें, आठवेे, बारहवेें भाव में हो तो मूत्र रोग, पथरी, वीर्य की कमी, कान रोग, शीघ्र पतन, स्वपन दोष व क्षय रोग आदि होते है।
- शुक्र व चन्द्र अपने शत्रु के साथ हो तो व्यक्ति को कम सुनाई देता है।
मंगल तथा सप्तम में गुरू
- लग्न में मंगल तथा सप्तम में गुरू व मंगल हो तो सिर में चोट-चपेट लग सकती है।
- अष्टमेश पर शुक्र की दृष्टि तथा सूर्य के साथ शनि व राहु हो तो सिर का बड़ा आपरेशन होने की आशंका रहती है।
- मेष या कर्क राशि में होने पर दॉतों में पायरिया रोग हो जाता है।
पाप ग्रहों से दृष्ट हो
- शुक्र षष्ठेश होकर लग्न में हो व पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो जातक को मुख में सूजन हो सकती है। 12वें स्थान में शुक्र, पंचम, नवम में शनि व सप्तम में सूर्य हो दन्त रोग हो सकता है।
- नीच राशि में शुक्र के साथ राहु हो तो कान में चोट लगती है एंव तृतीयेश शुक्र के साथ हो तो कम सुनाई देता है।
- दशम स्थान में शुक्र व राहु एक साथ हो तो सर्प से भय रहता है। जानवरों से भी चोट-चपेट लग सकती है।