
राजेश श्रीवास्तव
अब बस देश के लोकसभा चुनाव का शंखनाद कभी भी हो सकता है। 10 मार्च के बाद बस तारीखों का ऐलान और कार्यक्रम जारी होने की फार्मेलिटी बची है। सियासी दल तो पहले से ही चुनावी मोड में आ गये हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने वाराणसी से चुनावी जंग का आगाज कर ही दिया। तो राहुल गांधी पहले से ही न्याय यात्रा निकाल कर माहौल बनाने में जुटे हैं। देश की सबसे बड़ी सदन के लिए अगर कोई राज्य निर्णायक होता है तो वह है उत्तर प्रदेश। यहां पर भी चुनावी बिसात बिछ गयी है। एक तरफ बीजेपी जैसा पावरफुल पार्टी है तो दूसरी ओर एक बार मुंह की खा चुकी दो युवकों की जोड़ी। दो लड़कों की जोड़ी यूपी में भाजपा को कितनी चुनौती दे पायेंगी यह आने वाला वक्त बतायेगा और 2017 में यूपी के विधानसभा चुनाव में देश की जनता देख भी चुकी है। ऐसे में दोनों ने एक बार फिर से आपस में गठबंधन करके 17 सीटें कांग्रेस को देकर खुद 63 सीटें लेकर अखिलेश यादव ने 80 की 80 सीटें जीतने का ऐलान कर चुकी है। तो भाजपा भी सभी 80 सीटें जीतने का दावा ठोक चुकी है। ऐसे में यह समझने की जरूरत है कि आखिर ये लड़कों की जोड़ी भाजपा को कहां-कहां चुनौती देने की स्थिति में है।
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80 सीट वाले उत्तर प्रदेश से जहां इंडिया अलायंस यूपी में दम तोड़ता दिखाई दे रहा था, उसे नई जिदगी मिल गई है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने सीट को लेकर फंसे सारे पेच सुलझा लिए और मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान कर दिया । लोकसभा चुनाव के लिहाज से ये बहुत बड़ा सियासी डेवलपमेंट है। ये गठबंधन समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के लिए क्या मायने रखता है? यूपी में इन दोनों पार्टियों का हाथ मिलाना. बीजेपी के लिए कितनी बड़ी चुनौती है। यह समझना होगा। अवध क्षेत्र में कांग्रेस 5 सीट पर लड़ेगी। इसमें रायबरेली और अमेठी है जो कांग्रेस की पारंपरिक सीट है। इसके अलावा कानपुर भी कांग्रेस के खाते में गई है।
जहां कांग्रेस सपा से ज्यादा मजबूत है। इसी तरह सीतापुर और बाराबंकी से कांग्रेस अपने प्रत्याशी उतारेगी। अब बात करते हैं पूर्वांचल की सीटों की तो इसमें वाराणसी से कांग्रेस अपना प्रत्याशी उतारेगी। जहां से पीएम मोदी सांसद हैं। कांग्रेस आखिरी बार यहां 2004 में जीती थी। इसके अलावा प्रयागराज से भी कांग्रेस का प्रत्याशी खड़ा होगा। महाराजगंज और देवरिया के अलावा गोरखपुर जिले में पड़ने वाले बांसगांव से भी कांग्रेस का प्रत्याशी उतारने पर समाजवादी पार्टी से सहमति बन गई है। पश्चिमी यूपी की बात करें तो कांग्रेस यहां की 6 सीटों पर लड़ेगी। इसमें से पांच सीटें अभी बीजेपी के पास हैं। समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को जो सीट दी है उसमें जियाबाद, सहारनपुर, बुलंदशहर,अमरोहा,मथुरा और फतेहपुर सीकरी है। बुंदेलखंड में कांग्रेस सिर्फ एक सीट पर चुनाव लड़ेगी। ये झांसी लोकसभा सीट है। 2009 के बाद कांग्रेस ये सीट नहीं जीत सकी है, पिछले दो चुनाव में यहां से भी बीजेपी को ही जीत मिली है।
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दूसरी ओर मोदी ने वाराणसी में साफ कहा कि उत्तर प्रदेश की 80 सीटें एनडीए जीतेगा और विपक्ष को जमानत बचाना भी मुश्किल होगा। भाजपा की उम्मीदों के विपरीत जब सपा और कांग्रेस का गठबंधन धरातल पर उतर गया और राहुल के अमेठी से और प्रियंका के रायबरेली से लड़ने की गंभीर खबरें बाहर आने लगी तो प्रधानमंत्री मोदी का राहुल पर हमला करना और ‘मेरे उत्तर प्रदेश और मेरे काशी’ का जिक्र करना जरूरी हो गया। प्रधानमंत्री मोदी यह बताना चाहते थे कि वह उत्तर प्रदेश से सांसद है जबकि राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के लिए प्रवासी नेता हैं क्योंकि अब वह उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। मोदी बार-बार ‘मेरे उत्तर प्रदेश’ का जिक्र कर खुद को स्थानीय और राहुल को बाहरी बताने की कोशिश करते रहे। प्रधानमंत्री मोदी उत्तर प्रदेश की 80 की 80 सीटें जीतने का दावा करते रहे लेकिन मोदी और पूरी भाजपा भी इस बात को समझती है कि सपा और कांग्रेस के साथ आने से मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर भाजपा के लिए चुनौती तय है। भाजपा राम मंदिर से रिचार्ज है लेकिन जातिगत समीकरणों को साधने के लिए भी पूरी ताकत लगा रही है।
उत्तर प्रदेश में भाजपा अपने लिए बेहद मुश्किल सीटों में मैनपुरी, बदायूं, संभल, आजमगढ़, गाजीपुर, अमरोहा, मुरादाबाद और फिरोजाबाद को देख रही है। संभल, गाजीपुर, अमरोहा और मुरादाबाद मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण और मैनपुरी, बदायूं, आजमगढ़ और फिरोजाबाद सपा का गढ़ होने के कारण इन सीटों को भाजपा अपने लिए चुनौती मान रही है। खबर है कि भाजपा ने इन चुनौतीपूर्ण सीटों पर अखिलेश और कांग्रेस गठबंधन को पटखनी देने के लिए मायावती से पर्दे के पीछे दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। भाजपा चाहती है कि मायावती मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर दमदार मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर और अपने कोर वोटर को सपा कांग्रेस से दूर रखकर वोटों का बंटवारा करने में महती भूमिका निभाए। इससे मुश्किल सीटों पर भाजपा उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित हो सकेगी। भाजपा के सूत्र बताते हैं कि भाजपा ने इसके एवज में मायावती के भतीजे आकाश आनंद को राज्यसभा भेजने या किसी एक मुस्लिम बाहुल्य सीट से उसके चुनाव लड़ने पर समर्थन देने का भरोसा दिया है।
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मायावती भाजपा के प्रस्ताव पर कितना अमल करती है यह आने वाला समय बताएगा, लेकिन यह तय है कि भारतीय जनता पार्टी हर हाल में उत्तर प्रदेश में 78 प्लस का टारगेट लेकर चल रही है। भाजपा उत्तर प्रदेश में पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों तक मोदी सरकार और प्रदेश की योगी सरकार की योजनाओं के लाभार्थी वर्ग से सीधे संवाद करने की रणनीति पर काम कर रही है। भाजपा जानती है कि सिर्फ राम के नाम पर उत्तर प्रदेश में बेड़ा पार नहीं होगा। सबको जोड़ने के लिए राम का नाम और मोदी के काम का कॉकटेल तैयार करना होगा जिससे मुस्लिम वर्ग को छोड़कर सभी मतदाताओं को एक छतरी के नीचे लाया जा सके। भाजपा दलित समाज, अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ अति पिछड़ा वर्ग को भी जोड़ने के लिए इनसे जुड़े संगठन को और मोदी की योजनाओं के साथ इनको भाजपा से जोड़ना चाहती है।