महादेव ने चपका में बचाई थी मारकंडे की जान

चपका में मारकंडी नदी किनारे है मार्कंडेय ऋषि की धूनी और प्रतिमा

ऋषि ने की है मार्कंडेय पुराण और दुर्गा सप्तशती की रचना

हेमंत कश्यप/जगदलपुर। हज़ारों वर्षों से दंडकारण्य ऋषि मुनियों की तपोस्थली रही है। मारकंडी नदी किनारे चपका भूमि मार्कंडेय ऋषि की कर्म स्थली रही है। यहीं पर महादेव ने यमराज से उनकी रक्षा कर शतायु बनाया था। चपका में आज भी मार्कंडेय ऋषि की धूनी और उनकी पाषाण प्रतिमा है। मारकंडे वह महान ऋषि हैं जिन्होंने मार्कंडेय पुराण के अलावा दुर्गा सप्तशती जैसे महान ग्रंथों की रचना की है। जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर नेशनल हाईवे पर स्थित सोनारपाल से लगभग 3 किमी दूर चपका गांव कई प्रसंगों के लिए चर्चित है। यहां प्राकृतिक जलकुंड है। जहां का पानी भूगर्भ से निकल मारकंडी नदी में प्रवाहित होता है। आदिवासियों को सदमार्ग पर ले जाने का प्रयास करने वाले बाबा बिहारी दास का आश्रम भी यही है। कई दुर्लभ मूर्तियां हजारों साल से यहां बिखरी पड़ी हैं। भगवान जगन्नाथ और मां दुर्गा की विशाल मंदिर भी यहीं है। यहाँ भी प्रतिवर्ष रथयात्रा और महाशिवरात्रि मेला आयोजित किया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चपका महान शिवभक्त मार्कंडेय की कर्मस्थली रही है।

कौन थे मारकंडे

ऋषि मृकंदु ऋषि और उनकी पत्नी मरुदमती ने शिव की पूजा की और उनसे पुत्र का वरदान मांगा। भोलेनाथ ने उन्हें ऐसे पुत्र का चयन करने कहा जो बुद्धिमान होगा लेकिन उसकी आयु मात्र 16 वर्ष होगी। दूसरा विकल्प यह बताए कि ऐसा पुत्र भी प्राप्त कर सकते हैं, जो दीर्घायु तो होगा किंतु मंदबुध्दि वाला। ब्राह्मण दंपति ने अल्पायु किंतु कुशाग्र बुद्धि वाले बालक की कामना की। मार्कंडेय बड़े होकर शिव के बड़े भक्त हुए। अपनी मृत्यु के दिन उन्होंने शिवलिंग की पूजा जारी रखी। यम के दूत, मृत्यु के देवता उनका जीवन लेने में असमर्थ रहे। तब यम मार्कंडेय के प्राण हरने आए। उन्होंने बालक मारकंडे के गले में फंदा डाल दिया। दुर्भाग्य से वह फंदा शिवलिंग के चारों ओर कस गया। जिसके चलते क्रोधित हो उठे और यम पर आक्रमण करने प्रकट हुए उभरे। यम ने अपने कृत्य के लिए क्षमा मांगी। शिव ने कहा धर्मपरायण युवा हमेशा के लिए जीवित रहेंगे। शिवकृपा से मार्कंडेय शतायु हुए।

शिवलिंग से लिपटते हैं भक्त

मात्र 16 वर्ष की आयु में शिव को प्रसन्न करने वाले मार्कंडेय ने कालांतर में मार्कंडेय पुराण और दुर्गा सप्तशती जैसे महान ग्रंथों की रचना की। ग्राम चपका में आज भी नदी किनारे मार्कंडेय ऋषि की धूनी और मूर्ति है। आज भी चपका आने वाले भक्त भोलेनाथ से लिपटकर मारकंडे की तरह दीर्घायु और कुशाग्र बुद्धि होने की प्रार्थना करते हैं।

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