अन्नपूर्णा आई तो शिव लोक बस गया

बलराम कुमार मणि त्रिपाठी
बलराम कुमार मणि त्रिपाठी

दर दर भीख नहीं मागूंगा शिव से लूंगा
मैं तो सारा आत्मज्ञान शिव गुरु से लूंगा।।
आदि महायोगी शिव शंकर औघड़ दानी।
भक्ति, मुक्ति ,अणिमादि सिद्धि सब शिव से लूंगा।।

अन्नपूर्णा मां देती शिव के खप्पर में,
मै शिव के खप्पर से लेकर उदर भरूंगा।।
जब रुठी पार्वती कही ससुराल ले चलो।
शिव त्रिशूल पर बसे हुए काशी ले आए।

पार्वती तब हुई अन्नपूर्णा जग माता।
शिव ने खप्पर दिखा कहा भर दो भिक्षा से।
इससे उदर भरूंगा मै शमशान भूमि मे,
बसे सभी काशी के वासी, हे अन्नपूर्णा।।

स्वर्ण नगरिया बन कर काशी पूर्ण होगई।
अन्नपूर्णा आई यह संपूर्ण हो गई।।
तब से काशी शिव जी की ये सुघर भूमि है।
जन जन मे शिव -शक्ति बसे परिपूर्ण होगई।।

भैरव बन गए द्वारपाल, रक्षा की सबसे ।
गंगा तट पर विश्वनाथ का वास होगया।।
अन्नपूर्णा आई तो शमशान भूमि यह।
धरती का पावन दूजा कैलाश हो गया।।

मणिकर्णिका घाट शिव, देते है मंत्रदान नित।
ज्ञान भक्ति मंडित करते विद्या मंदिर में।।
गंगा तट पर सुर संगीत गूंजता अनुदिन।
तांडव लास्य निरंतर होता पुण्य भूमि में।।

कोई कभी न भूखा रहता इस काशी में।
ज्ञानी जानी तपोभूमि मे रमे निरंतर।।
मस्त सदा रहते काशी के रहने वाले।
अगड़ बम्म जय अगड़ बम्म की गूंज निरंतर।।

गंगा शोभित शिव मस्तक पै चंद्र विराजे।
हृदय हार है नागराज कुंडल मणि भ्राजै।।
तीन नाग यज्ञोपवीत मणिबंध मनोहर ।
शिव बाघंबर पर बैठे शिवलोक विराजे।।

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