(9 नवम्बर 1896 – 9 मार्च 1961)
प्रख्यात संपादक, जानेमाने स्वाधीनता-सेनानी और प्रथम संसद (राज्य सभा) के सदस्य (1952), श्री कोटमराजू रामा राव अपने दौर के अकेले ऐसे पत्रकार थे जो 25 से अधिक दैनिक समाचार पत्रों में कार्यशील रहे। इनमें अविभाजित भारत के लाहौर से प्रकाशित (लाला लाजपत राय का) दि पीपुल (1936), कराची का दैनिक दि सिंध आब्जर्वर (1921), मुंबई का दि टाइम्स आफ इण्डिया (1924), चेन्नई का दि स्वराज्य (1935), कोलकता का दि फ्री इंडिया (1934), नई दिल्ली का दि हिन्दुस्तान टाइम्स (1938), इलाहाबाद का दि लीडर (1920) और दि पायोनियर (1928) तथा पटना का दि सर्चलाइट दैनिक (1950) थे। किन्तु रामा राव को ऐतिहासिक ख्याति मिली जब उन्होंने जवाहरलाल नेहरू के दैनिक दि नेशनल हेरल्ड (1938-1946) का लखनऊ में सम्पादन किया। ढेर सारे अखबार बदलने पर रामा राव के एक साथी ने टिप्पणी की: “वे अपने एक जेब में संपादकीय की कापी और दूसरे में त्यागपत्र रखते थे।” स्व. रामा राव की जन्मशताब्दी के अवसर पर उपराष्ट्रपति कृष्ण कांत ने डाक टिकट जारी किया था। भारत के प्रधान नयायधीश श्री जे. एस. वर्मा ने “कानून और पत्रकारिता” पर स्मृति व्याख्यान दिया था।
चीराला (आंध्र प्रदेश) में 9 नवम्बर 1896 को जन्मे, तेलुगुभाषी रामा राव ने मद्रास विश्वविद्यालय से 1917 में अंग्रेजी साहित्य से स्नातक परीक्षा पास की और वहीं अंग्रेजी भाषा का अध्यापन भी किया। पत्रकारिता में उनका प्रवेश चेन्नई में ब्रह्मसमाज की पत्रिका दि ह्यूमेनिटी से हुआ। फिर आचार्य टी.एल. (साधू) वासवानी के दि न्यू टाइम्स (1919) में कराची में उन्होंने कार्य किया। अपने अग्रज-संपादक के. पुन्नय्या के दैनिक दि सिंध आब्जर्वर में सह-संपादक बने। चार दशक के अपने पत्रकारी जीवन में रामा राव ने दो विश्व-युद्धों के दौर की घटनाएं, गांधी-नेहरू युग का स्वाधीनता-संघर्ष और स्वात्र्योत्तर भारत में आर्थिक नियोजन, निर्गुट विदेश नीति तथा मीडिया के आधुनिकीकरण को देखा और उन पर लिखा।
महात्मा गांधी के सान्निध्य में रहकर (1942-45) रामा राव ने दो दर्जन से ज्यादा भारतीय तथा अंतर्राष्ट्रीय समाचार पत्रों के सेवाग्राम में विशेष संवाददाता के रूप में राष्ट्रीय आंदोलन की रपट भेजीं। केन्द्रीय विधान सभा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशनों तथा राजनीतिक मुकदमों और क्रिकेट टेस्ट मैचों की रिपोर्टिंग की। उन्होंने बड़ी संख्या में युवा पत्रकारों को प्रशिक्षित किया, जिनमें हैं स्व. शाम लाल (बाद में टाइम्स आफ इंडिया के प्रधान सम्पादक), एच. वाई. शारदा प्रसाद (इन्दिरा गांधी के मीडिया सलाहकार) और एम. चलपति राव जो नेशनल हेरल्ड में तेरहवें स्थान पर आये थे और बाद में सम्पादक बने।
सन् 42 में रामा राव को दि नेशनल हेरल्ड में “जेल या जंगल” शीर्षक के संपादकीय लिखने पर ब्रिटिश हुकूमत ने छह माह का कारावास और जुर्माना की सज़ा दी थी। इस संपादकीय में उन्होंने लखनऊ कैंप जेल में कांग्रेसी सत्याग्रहियों पर हुये बर्बर अत्याचार की भर्त्सना की थी। अवध चीफ़ कोर्ट के निर्णय को आधे घन्टे में रेडियो जापान ने प्रसारित कर दिया था। लखनऊ जेल के क्रांतिकारी यार्ड में रामा राव को नजरबंद रखा गया, जहां उनके पूर्व मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, आचार्य जे. बी. कृपलानी, आर. एस. पण्डित (पं. नेहरू के बहनोई) आदि कैद थे। रामा राव के जेल के साथियों में थे भगत सिंह वाले लाहौर षड्यंत्र केस के क्रांतिकारी शिव वर्मा तथा जयदेव कपूर, कम्युनिस्ट काली शंकर, विप्लवी जोगेश चटर्जी और लोहियावादी गोपाल नारायण सक्सेना।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री की यूरोप, अफ्रीका और अमेरीका यात्रा (1949) पर रामा राव दि हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप (इलाहाबाद के दि लीडर तथा पटना के दि सर्चलाइट दैनिकों) के विशेष प्रतिनिधि के नाते गये। संयुक्त राष्ट्र अमेरीका के अलावा श्री रामा राव ने ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, मिस्र, कनाडा, ब्राज़िल, ग्रीस (यूनान), स्विट्जरलैण्ड आदि देशों की यात्रा भी की।
श्री रामा राव प्रथम राज्य सभा (1952) के लिये अविभाजित मद्रास राज्य (आन्ध्र प्रान्त) से कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में निर्वाचित हुये। इनके नाम का प्रस्ताव विधायक के. कामराज तथा नीलम संजीव रेड्डी ने किया था। दोनों बाद में कांग्रेस अध्यक्ष बने थे। भारत सरकार के प्रथम सलाहकार (1956) के नाते में रामा राव ने पंच-वर्षीय योजना के प्रचार-प्रसार का संचालन किया था। कई पुस्तकों के लेखक, रामा राव ने अपनी आत्मकथा “दि पैन एज़ माई स्वोर्ड” लिखी। अखिल भारतीय समाचारपत्र संपादक सम्मेलन (आल-इण्डिया न्यूजपेपर एडिटर्स कान्फ्रेंस, 1940) के संस्थापकों में रामा राव थे। देश के सम्पादकों ने मुम्बई में 1942 में हुए अपने अधिवेशन में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के लिए रामा राव को लखनऊ जेल में कैद रहते समय ही निर्वाचित किया था। भारतीय श्रमजीवी पत्रकार महासंघ (इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स) के उपाध्यक्ष (1950) की भूमिका में उन्होंने फेडरेशन के संविधान की रचना की। श्रमजीवी पत्रकारों के देश-विदेश के अधिवेशनों में शिरकत की। प्रथम भाषाई-राज्य आंध्र के निर्माण हेतु जनान्दोलन में सक्रिय रहे।