
- लखनऊ के जाबांज जेलर के सामने फेल हो गई थी अंसारी की हेकड़ी

लखनऊ। पूर्वांचल के सबसे बड़े माफिया का इंतकाल हो गया। वो रमजान के पाक महीने में रोजे रखा था, लेकिन काल के गाल से वो बच न सका। मुख्तार अंसारी के साथ ही उत्तर प्रदेश खासकर पूर्वांचल से जरायम का एक बड़ा अध्याय समाप्त हो गया। उसका बड़ा भाई अफजाल अंसारी और सीगबत उल्ला अंसारी के बांदा पहुंचने की खबर आ रही है। खबर है कि वीडियो कैमरे की निगरानी में उसका पोस्टमार्टम होगा, तब जाकर उसकी लाश परिजनों को सौंपी जाएगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने पूरे प्रशासनिक अमले (डीजीपी प्रशांत कुमार, अपर मुख्य सचिव गृह दीपक कुमार, एडीजी लॉ एंड आर्डर अमिताभ यश) के साथ गहन विमर्श में है। उन्होंने प्रशासन को दो टूक लहजे में समझा दिया है कि किसी भी हाल में कोई अप्रिय घटना नहीं होनी चाहिए।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि मुख्तार को सलाखों के पीछे भेजने का श्रेय किसे जाता है। अगर नहीं, तो जान लीजिए वो शख्स है लखनऊ के निवासी पूर्व जेलर एसके अवस्थी। उन्होंने गाजीपुर यानी मुख्तार के घर में घुसकर उसकी नकेल कसी और उसके सारे दांव फेल कर दिए। उनके सामने मुख्तार भीगी बिल्ली बन गया और सारी हेकड़ी निकल गई थी।
माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के खिलाफ यूं तो असंख्य आपराधिक मामले लदे हुए हैं। मगर बीते 21 सितंबर को इस शख्स को तब जबरदस्त झटका लगा, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उसे जेलर एसके अवस्थी को धमकाने के इल्जाम में सात साल की सजा मुकर्रर कर दिया। साथ ही 37 हज़ार रुपये का जुर्माना भी लगाया। दरअसल साल 2003 में एसके अवस्थी लखनऊ जेल के जेलर थे। दोपहर का समय था। दो लोग मुख्तार से मिलने आए। गेट पर जो सिपाही ड्यूटी पर था, उसने उन दोनों को भीतर बुला लिया। अवस्थी को इसकी खबर मिली। वह फौरन गेट पर पहुंचे और उन्होंने दोनों को कहा कि आप लोग बाहर निकलिए। साथ ही सिपाही को जबरदस्त फटकार लगाई।
इसके बाद अपने जेल वार्ड से दौड़ा-दौड़ा मुख्तार वहां पहुंचा और उसने कहा कि आप कौन होते हैं इन लोगों को बाहर निकालने वाले? उन्होंने कहा मैं इस जेल का जेलर हूं। मुख्तार ने कहा कि आप गलत काम कर रहे हैं, ऐसा नहीं हो सकता। अवस्थी ने कहा बगैर तलाशी लिए मैं इन दोनों को अंदर नहीं जाने दूँगा। आप निश्चिंत रहे, अगर इनके पास कुछ नहीं रहेगा तो मैं आपसे बात करने दूंगा। इसी दौरान दोनों की तलाशी ली गई तो उनके पास से पिस्टल निकल आया। इधर जेल के भीतर रह रहे मुख्तार ने पिस्टल निकालकर जेलर अवस्थी पर तान दी। खैर, किसी तरह से बीच-बचाव करके मामले को शांत कराया गया।
तत्काल इसकी इत्तिला डीआईजी पीके मिश्र को दी गई। डीआईजी ने आईजी प्रदीप शुक्ला से संपर्क किया। (तब आईजी जेल के पद पर आईएएस अफ़सरों की तैनाती हुआ करती थी।) उसके बाद प्रदीप सीधे तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के घर चले गए। उन्होंने सीएम को सारी बातें बताईं। मायावती के आदेश पर जेलर अवस्थी को बॉडीगार्ड दिया गया। कोर्ट में घटना के चश्मदीद गवाह यानी जेल गेट के सिपाही और दो डिप्टी जेलर मुकर गए और मामला रफा-दफा हो गया। लेकिन साल 2017 में योगी आदित्यनाथ सत्तासीन हुए और इस केस को फिर खुलवा दिया। इसी साल सितंबर के तीसरे सप्ताह में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मुख्तार को जेलर अवस्थी को धमकाने के मामले में सात साल का दंड और 37 हज़ार रुपये का जुर्माना भी लगाया।
मजबूत जवाब से अंदर तक हिल जाता है माफिया
लखनऊ जेल में शक्ति प्रदर्शन के लिए बंदी विधायकों को कुछ दिनों के लिए रखा जाता था। जेलर एसके अवस्थी कहते हैं कि जैसे ही माफिया की हनक टूटती है, वो अंदर तक टूट जाता है। ‘नया लुक’ ने अपने विशेष अंक के लिए जेलर एसके अवस्थी से बात की थी, प्रस्तुत है उनसे बातचीत के कुछ अंश…
नया लुक: सारे माफिया ‘योगी नाम केवलम’ जप रहे हैं, क्या कारण है?
जेलर अवस्थी: सरकार जब एक्शन में आती है तो अच्छे-अच्छे के हाथ-पांव ढीले पड़ जाते हैं। माफिया सत्ता की बागडोर को हाथ में लेकर आगे बढऩे की कोशिश करता है। कई बार उसे सत्ता का संरक्षण प्राप्त होता है, तब उसके हौंसले बुलंद होते हैं। लेकिन जो परिस्थितियां आज हैं उसमें सारे माफिया कीड़े की भांति धरती पर रेंग रहे हैं।
नया लुक: मुख्तार जैसा माफिया आपकी जेल में बंद था, डर नहीं लगा?
जेलर अवस्थी: जिस दिन जेल में नौकरी करने गया, उसी दिन अहसास हो गया था कि माफिया और लुटेरों के पाला पड़ेगा। अब डर कैसा?
नया लुक: आपकी पोस्टिंग गाजीपुर भी हुई थी?
जेलर अवस्थी: जी हां, गाजीपुर जेल में हुई थी। वहां बंदी से लेकर रक्षक तक सब उसके आदमी थे। मुख्तार ने धमकी भी दी थी कि गाजीपुर ले जाकर नौकरी करना सिखाएंगे, लेकिन वहां भी सबक सिखाकर लौटा।
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