
समीक्षक: डॉ ऋषिकुमार मणि त्रिपाठी
लेखक सुरेश शुक्ल ‘शरद आलोक’
लघु कथा एक झलक
लेखक सुरेश शुक्ल ‘शरद आलोक’
साग्न स्टूडेंट टाउन से मशहूर क्लब सेवेन शहर ओस्लो के मध्य रात ग्यारह बजे आगए। डिस्कोथेक के जीवंन्त संगीत आर्केस्ट्रा सभी नि:शुल्क प्रवेश मदिरा पीकर अनजान लड़कियो के बांहो मे बाहें डाले रात भर नाचते। मै बिना मदिरा पिये रात भर नाचता रहा।
लेखक ने इन शब्दों मे संकेत किया स्टूडेंट… का जीवन.. जेब मे पैसे न होना पर जीवन का भरपूर आनंद लेने की इच्छा।.. मदिरा न पीने वाले सामान्य लड़के लड़कियो मे होती है।
*ऐसा ही एक युवक क्लब मे नाचता है,जिस लड़की के साथ नाचता है.. दोनो मे कोई लगाव नहीं.. सिर्फ भरपूर आनंद लेने की इच्छा।
उसी होटल से निकल कर अनजान सी लड़की चली जाती है। जब कि लड़का एक झलक पाने को बिह्वल.. अर्थात वर्तमान समाज का ऐसा चेहरा जिसमे गरीब भावुक लड़का बिना पैसे के सभी खुशी पाना चाहता है। पर मौज मस्ती के बाद लड़की की बेरुखी उसे जमीन पर लादेती है।*
रिश्ते की भीख: सुरेशचंद्र ‘शरद आलोक’-नार्वे से
समीक्षक: डॉ ऋषि कुमगर मणि त्रिपाठी
लेखक की पैनी दृष्टि और भावुक हृदय की अनुभूतियां लघु कथा के मर्म को पकड़ने मे सक्षम है। या कहें कि मार्मिक अंश को बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत करने मे सक्षम है।
परिस्थितियों ने भावुक हृदय युवक को भिखारिन के बच्चे की देख भाल करने की जो जिम्मेदारी उठा ली,उसी बीच उसकी मंगेतर सखीयो के साथ पहुंचती है और उसे भिखारी समझ कर सामने रखे कटोरे में पैसे डालती है। गलत फहमियां कैसे शुरु होती हैं?पर अच्छी व्यंजना है। लेखक ने जहां मंगेतर के प्यार का बखिया उधेड़ा वही संशय से समाज मे होने वाली संबंधौ की टुटन का आधार ढूंढ़ लिया। कहानी कार के शब्द शक्ति की सराहना करता हूं। युवक को रिश्ता भी भीख बनता नजर आरहा। शीर्षक जोरदार भावनात्मक संप्रेषण जबर्दस्त है।
जबान पर ताला
लेखक सुरेश चंद्र शुक्ल’शरद आलोक’
समीक्षक: डॉ ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी
लोकतंत्र रक्षक हरिया जनसमस्याओं के उठानै और सच का साथ देने के कारण जननायक बंन गया। उसने चारे की कमी से पशुओं की मौत और आवारा पशुओं के खेत मे खुला छोड़ने का विरोध किया। परंतु यह बात लोगों को बुरी लगी । इसका सच गांव मे आग लगा देगा। कहते हुए उन्होंने उसे पकड़ा और ग्राम प्रधान पर दवाब बना कर उसे जबान पर ताला लगाने को बाध्य किया। समय का फेर देखिये किसी ने राम प्रधान के घर मे आग लगा दिया और प्रधान पर हमला किया। हरिया उसे बचाने पहुंचा। न्यायालय मे हरिया सच न उगल दे,लोगों ने प्रधान के मामले मे जुबान पर ताला लगाये जाने की याद दिलाई। जो प्रधान ने ही उस पर लगाई थी।.. लेखक ने हरिया के सामने कठिन सवाल खड़ी कर दिया.?? प्रधान के अस्त्र से प्रधान को ही घेरने की साजिश। गांव के वातावरण मे ऐसी राजनीति चली आरही है.. जो देश के संसद मे भी चली जारही है। इसका संकेत करते हुए हरिया को संविधान बचाने वाला भी साबित किया,जो आज का विपक्ष कर रहा है।… विपक्ष को किस प्रकार सत्ता पक्ष घेर रहा है इसकी झलक भी इस लघु कथा मे दिखाई पड़ती है। कहानी सरल सुबोध है और वर्तमान राजनीतिक राग द्वेष को उजागर करती है। कहानी मे जबर्दस्त ट्विस्ट है।
लहर: लेखक सुरेश चंद्र शुल्क शरद आलोक
समीक्षक : डॉ ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी
लहर कहानी मे लेखक ने बताया कि कोरोना मे जन सेवा करने वाले मास्टर हजारे की लहर है। पर सत्ता पक्ष अपने प्रचार प्रसार मे सरकारी मशीनरी का जबर्दस्त उपयोग कर रही है। पुलिस प्रशासन सब सत्ता पक्ष के प्रचार प्रसार मे लगे हुए हैं। जनता चुप है कोई भाव नहीं देरही। सत्ता पक्ष अनाज ऐसे बांट रहा मानो अपने घर से देरहा हो,जब कि सब जनता के पैसे का ही है। जनता इस बात को समझती है। चुनाव के दिन घर से निकल कर वोट के माध्यम से जनता की मंशा के सच का पता लगेगा। शैली चुटीली है.. । आखिर लघु कथा का तीर लग कहां रहा है? पता लगा कि नेता हवा मे उड़ रहे है,जनता ने मन बना लिया है कि सोच समझ कर ही वोटिंंग करेगी। लघू कथा के माध्रम से तीखा व्यंग्य है।