विशेष संवाददाता
वाराणसी। हीमोफीलिया एक जन्मजात आनुवंशिक बीमारी है। जो मूलतः लड़कों में पाया जाने वाली लाइलाज बीमारी है। जनपद के हीमोफीलिया सेन्टर में लगभग 12 सौ मरीज़ पंजीकृत हैं। जिनका ईलाज काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हीमेटोलाजी विभाग द्वारा किया जाता है। उक्त बातें विश्व हीमोफीलिया दिवस पर हीमेटोलाजिस्ट प्रो.डॉ मनोज कुमार श्रीवास्तव ने पहड़िया स्थित काशी केडीकेयर में काशीवार्ता से कही। डॉ.मनोज ने कहा कि जागरूकता के अभाव में बहुत से मरीजों के उपचार में विलंब हो जाता है। जिसके चलते व्यक्ति दिव्यांग हो जाता है। यदि किसी व्यक्ति को चोट लगने पर ज्यादा देर तक रक्त का प्रवाह होता रहता है तो हीमेटोमा बन जाता है। ऐसे मरीज को हीमोफीलिया से ग्रस्त होने की संभावना ज्यादा होती है।
हीमोफीलिया के प्रकार
डॉ.मनोज ने कहा कि हीमोफीलिया तीन प्रकार की होती है। हीमोफीलिया-ए जो कि बहुत ही कामन है। यह प्रत्येक 5 हजार में से एक व्यक्ति को होता है। इसमें एक प्रकार का फैक्टर 8 जो एक प्रोटीन होता है उसकी कमी से होता है। हीमोफीलिया-बी यह फैक्टर नाइन की कमी से होता है। जो 30 हजार में एक व्यक्ति को होता है। हीमोफीलिया-सी इसे पैराहीमोफीलिया कहते हैं जो फैक्टर 11 कमी से होता है। इसके लक्षण एक लाख लोगों में से किसी एक व्यक्ति को होता है।
हीमोफीलिया के लक्षण
डॉ.मनोज ने कहा कि शरीर में काले नीले रंग के चकत्ते, जोड़े में दर्द, सूजन एवं जकड़न जो हल्के से चोट लगने पर गांठ के रूप में उभार जाता है। हीमेटोमा का बन जाना, नाक, जीभ, पेशाब के रास्ते खून का आना, लम्बे समय तक तेज दर्द, उल्टी एवं अत्याधिक थकान का महसूस होना इसके मुख्य कारण हैं।
हीमोफीलिया के मरीज क्या ना करें
डॉ.मनोज ने बताया कि हीमोफीलिया के मरीज को मांसेपेशियों में सूई नहीं लगवाना चाहिए, गरम पानी से सिकाई नहीं करनी चाहिए, नहीं तो हीमेटोमा बन जायेगा।
हीमोफीलिया के निदान एवं उपचार
डॉ.मनोज ने कहा कि हीमोफीलिया के मरीजों का एपीटीटी लेवल बढ़ा रहता है। फैक्टर एट व नाइन की कमी का होना। इसके लिए इन्जेक्शन कायोपेरसीपीटेट व फ्रेश फ्रोजन प्लाज्मा एवं फीजियोथीरेपी, जीन थीरेपी, स्टेम सेल थीरेपी हीमोफीलिया के उपचार हेतु एक नया आयाम साबित होगा। भविष्य में स्टेम सेल थेरेपी एक हीमोफीलिया के इलाज के लिए वरदान साबित होगी।