शाश्वत तिवारी
छत्तीसगढ़ के जांजगीर के एक छोटे गांव चारपारा से स्थापित हुआ “रामनामी” संप्रदाय भले ही बहुत बड़ी संख्या के अनुयायियों वाला न हो, फिर भी जो है, जितना है, वह अद्भुत है। इस संप्रदाय के लोग पूरे शरीर पर राम नाम का गोदना गोदवा कर रहते हैं। शरीर पर सफेद वस्त्र पहनते हैं, जिनपर काले अक्षरों में रामनाम लिखा होता है। वह हाथों में घुंघरू बांधते हैं और झूमते-नाचते राम-राम ही गाते रहते हैं। रामनामी संप्रदाय मानता है कि हमारा शरीर राम का मंदिर है। हमने रोम-रोम में रामनाम को सजा लिया है। 1980 के दौर में शुरू हुए इस संप्रदाय में आज की तारीख में डेढ़-दो लाख लोग शामिल हैं। शरीर पर ही रामनाम को स्थापित कर जीवन जीने वाले ये लोग अपने आप में श्रीराम की छाया हैं और सम्मान के हकदार भी, लोग उन्हें श्रीराम के नजरिए से ही देखते भी हैं।
राम का किरदार, उनका चरित्र और जीवन जीने की शैली, आम भारतीय परिवारों के लिए प्रेरणा रही है। हम किससे क्या बोलें, कैसे बोलें, कैसे रहें, उठे-बैठें ये सामान्य नैतिक शिक्षा को पाना ही राम को जानने की सफलता है। रामनाम और रामायण को लेकर मशहूर एक्टर अशोक कुमार भी कहते थे कि, रामायण एक धार्मिक ग्रंथ होने के साथ ही सांस्कृतिक दस्तावेज है। ये रंग, नस्ल, मुल्क और जाति की सीमाओं से परे हैं और इन्हें पार करके आम इंसान के दिल पर इतना गहरा प्रभाव डालती है कि, हर आदमी रोजमर्रा की जिंदगी में इसकी शिक्षा और तालीम से फायदा उठा सकता है। राम सिर्फ पूजा घरों में स्थापित किए गए पौराणिक चरित्र से कहीं अधिक हैं। हम अपनी रोजाना की जिंदगी में जितने भी रिश्ते निभाते हैं, और जैसा भी जीवन जीते हैं, उनका तौर-तरीका क्या होना चाहिए, रामायण और श्रीराम इसके सटीक उदाहरण हैं।
यही वजह है कि “श्रीराम” कहते ही वाल्मीकि के राम, तुलसी के राम का आध्यात्मिक स्वरूप सामने आता है, लेकिन जब लोक मानस में ‘राम’ को देखते हैं, तो वे जीवन का हिस्सा बन जाते हैं। वह सुख-दुख, आशीर्वाद, श्राप, उलाहना, तंज हर किसी भाव में समाहित हो जाते हैं। दरअसल, लोक के राम बोली के जरिए लोगों की दिनचर्या का हिस्सा हैं। ये हिस्सा ऐसा भाग है जो लोकमानस के भीतर पानी की धार की तरह बह रहा है। यही वजह है कि आज भी ग्रामीण परिवेश के लिए राम ही शुरुआत हैं और राम ही अंत। किसी भी आढ़त पर चले जाइए, जब तौल शुरू होगी तो किलो के पहले तौल को राम कहेंगें। उनकी गिनती राम, दुई, तीन, चार, यानी पहला अंक ‘ “राम” का नाम ही होता है। भोजन की थाली का पहला कौर राम के नाम से लिया जाता है और खाने में नमक कम होने पर रामरस (नमक) मांगा जाता है। पानी राम-राम कहकर पिया जाता है, और हर-हर गंगे के साथ राम सिया राम कहकर स्नान किया जाता है।