जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
एकादशी तिथि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व बताया गया है। हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर कामदा एकादशी व्रत किया जाता है। इस बार यह तिथि 19 अप्रैल को है। इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-व्रत करने का विधान है। मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में खुशियों का आगमन होता है। इस दिन पूजा करने के बाद भगवान को विशेष चीजों का भोग लगाना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से साधक को सौभाग्य की प्राप्ति होती है और पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है। चलिए जानते हैं कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के भोग में किन चीजों को शामिल करना फलदायी होता है।
भगवान विष्णु के भोग
भगवान विष्णु को केला प्रिय है। इसलिए आप पूजा के दौरान प्रभु को केला का भोग लगा सकते हैं। मान्यता है कि भोग में केला शामिल करने से धन से संबंधित समस्या से छुटकारा मिलता है। साथ ही कुंडली में से गुरु दोष का असर खत्म होता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु को पंचामृत का भोग जरूर लगाना चाहिए। भोग में तुलसी दल को शामिल करना चाहिए। माना जाता है कि तुलसी दल के बिना भगवान भोग स्वीकार नहीं करते हैं। इसके अलावा भोग में साबूदाने की खीर और मिठाई को शामिल कर सकते हैं। मान्यता है कि इन चीजों का भोग लगाने से प्रभु प्रसन्न होते हैं।
भोग मंत्र
त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये।
गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर ।।
क्या है वरुथिनी एकादशी की कथा
युधिष्ठिर ने पूछा : हे वासुदेव! वैशाख मास के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? कृपया उसकी महिमा बताइये। भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन् ! वैशाख कृष्णपक्ष की एकादशी ‘वरुथिनी’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह इस लोक और परलोक में भी सौभाग्य प्रदान करनेवाली है। ‘वरुथिनी’ के व्रत से सदा सुख की प्राप्ति और पाप की हानि होती है। ‘वरुथिनी’ के व्रत से ही मान्धाता तथा धुन्धुमार आदि अन्य अनेक राजा स्वर्गलोक को प्राप्त हुए हैं। जो फल दस हजार वर्षों तक तपस्या करने के बाद मनुष्य को प्राप्त होता है, वही फल इस ‘वरुथिनी एकादशी’ का व्रत रखनेमात्र से प्राप्त हो जाता है ।
नृपश्रेष्ठ ! घोड़े के दान से हाथी का दान श्रेष्ठ है। भूमिदान उससे भी बड़ा है। भूमिदान से भी अधिक महत्त्व तिलदान का है। तिलदान से बढ़कर स्वर्णदान और स्वर्णदान से बढ़कर अन्नदान है, क्योंकि देवता, पितर तथा मनुष्यों को अन्न से ही तृप्ति होती है। विद्वान पुरुषों ने कन्यादान को भी इस दान के ही समान बताया है। कन्यादान के तुल्य ही गाय का दान है, यह साक्षात् भगवान का कथन है। इन सब दानों से भी बड़ा विद्यादान है। मनुष्य ‘वरुथिनी एकादशी’ का व्रत करके विद्यादान का भी फल प्राप्त कर लेता है। जो लोग पाप से मोहित होकर कन्या के धन से जीविका चलाते हैं, वे पुण्य का क्षय होने पर यातनामक नरक में जाते हैं। अत: सर्वथा प्रयत्न करके कन्या के धन से बचना चाहिए उसे अपने काम में नहीं लाना चाहिए। जो अपनी शक्ति के अनुसार अपनी कन्या को आभूषणों से विभूषित करके पवित्र भाव से कन्या का दान करता है, उसके पुण्य की संख्या बताने में चित्रगुप्त भी असमर्थ हैं। ‘वरुथिनी एकादशी’ करके भी मनुष्य उसी के समान फल प्राप्त करता है।
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राजन् ! रात को जागरण करके जो भगवान मधुसूदन का पूजन करते हैं, वे सब पापों से मुक्त हो परम गति को प्राप्त होते हैं अत: पापभीरु मनुष्यों को पूर्ण प्रयत्न करके इस एकादशी का व्रत करना चाहिए। यमराज से डरनेवाला मनुष्य अवश्य ‘वरुथिनी एकादशी’ का व्रत करे। राजन् ! इसके पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है और मनुष्य सब पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है।
वरुथिनी एकादशी 2024 का शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का शुभारंभ 03 मई 2024 रात 11 बजकर 26 मिनट पर होगा, जिसका समापन 04 मई को संध्याकाल 08 बजकर 41 मिनट पर होगा। ऐसे में वरुथिनी एकादशी व्रत 04 मई को किया जाएगा।