नार्वे के भारतीय लेखक के दो लघु कथाओं की समीक्षा

समीक्षक: डॉ ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी

प्रेम प्रस्ताव(लघुकथा)
कथाकार-सुरेश चंद्र शुक्ल’ शरद आलोक’
समीक्षक- डॉ ऋषि कमार मणि त्रिपाठी
लेखक ने ओस्लो के एक चर्च मे मारिया के पति के अंतिम संस्कार के एक दृश्य का वर्णन किया है। किस प्रकार लोग शामिल हुए,फूलों के गुलदस्तों मे संदेश और श्रद्धांजलि देने वालो के नाम लिखे हैं। फूलों से सजे ताबूत को मित्र और परिवार वाले कब्र तक लाए और लिफ्ट द्वारा उसे नीचे दफना दिया गया।मारिया ने ताबूत पर मिट्टी डाली‌। अंतिम संस्कार बाद विदाई जलपान हुआ। मारिया ने धन्यवाद दिया अंत मे एक सहकर्मी ने गले लगाकर मारिया को सांत्वना दी और विजिटिंग कार्ड थमाया .. ताकि जब भी जरुरत हो वह उसे फोन कर ले।.. शायद उसे उसके पति ने ऐसे ही अपना प्रेम प्रस्ताव दिया था।.. उसे स्मरण हो आया।
लेखक ने अंतिम वाक्य मे सहकर्मी का मंतव्य बता दिया.. जो मातम पुर्सी के बहाने प्रेम का प्रस्ताव दे गया था
पाश्चात्य जीवन की एक कटु सच्चाई,जिसमें स्वार्थ संवेदना से ऊपर है।
भाषा सरल सुबोध पर आपदा को अवसर बनाने का उदाहरण है। अंतिम वाक्य मे जबर्दस्त
संप्रेषणीयता है।

भैंस की चोरी( लघु कथा)
कथाकार- सुरेश चंद्र शुक्ल’ शरद आलोक’
समीक्षक- डॉ ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी
‘भैंस की चोरी’ नामक लघु कथा मे लेखक ने चुनावी माहौल के असर पर एक व्यंग्य किया है। बनवारी की भैंस चोरी हुई तो वह रिपोर्ट लिखवाने गया। किसी पर शक पूछने पर… बनवारी को भैंस की चोरी मै भी किसी राजनैतिक पार्टी की साजिश लगती है। पुलिस कहीं न कहीं जीतने वाली पार्टी ..का दबाव महसूस करते हुए.. नौकरी खालेने की धमकी देते हुए भगा देता है।
बनवारी को लोकतंत्र खतरे मे नजर आने लगता है।
वर्तमान राजनीति पर प्रस्तुत कहानी में चोट की गई है। भाषा सरल है,पर थोड़े मे बहुत कुछ ध्वनित होता है। कवि बताना चाहता है.. मौजूदा समय में साधारण घटनाओं का राजनैतिक स्वरूप दिखना एक आम बात हो गई है।

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