- क्या भाजपा दूसरी बार लगा पाएगी हैट्रिक, 9० के दशक से है भाजपा का दबदबा
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव को लेकर तेजी से माहौल बनता जा रहा है और बुंदेलखंड क्षेत्र में भी हलचल तेज हो गई है. राजनीतिक दल अपने-अपने स्तर पर राजनीतिक तैयारियों में भी जुट गए हैं. बुंदेलखंड की जालौन लोकसभा सीट हाई प्रोफाइल सीटों में गिनी जाती है, क्योंकि यहां से सांसद मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) दूसरी बार यहां पर चुनावी जीत की हैट्रिक लगाने की तैयारी में जुटी है जबकि चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने चुनावी तालमेल कर प्रदेश की सियासत को गरमा दिया है. ऐसे में इस बार किसी भी दल के लिए अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित जालौन सीट पर जीत हासिल करना आसान नहीं दिख रहा और मुकाबला कांटेदार होने की उम्मीद जताई जा रही है.
माना जाता है कि जालौन जिले का वर्तमान नाम ऋषि जलवान के नाम पर रखा गया है, जो प्राचीन काल के समय यहां पर रहा करते थे, हालांकि कुछ लोग दावा करते हैं कि इसका नाम जलीम, (एक संध्याय ब्राह्मण) के नाम पर पड़ा. जालौन शहर तीन नदियों, यमुना, बेतवा और पहूज से घिरा हुआ है. इस क्षेत्र पर कभी ताकतवर शासक ययाती का राज हुआ करता था, जिसका जिक्र पुराण और महाभारत में सम्राट और एक महान विजेता के रूप में मिलता है. इस क्षेत्र का जिक्र चीनी यात्री ह्यूनसांग की किताब में भी मिलता है.
जालौन संसदीय सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए रिजर्व सीट है. इसके तहत उरई (अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सीट), कालपी, माधौगढ़, भोगनीपुर और गरौठा 5 विधानसभा सीटें आती हैं. भोगनीपुर सीट कानपुर देहात जिले में तो गरौठा सीट झांसी जिले में पड़ती है. शेष तीनों सीट जालौन जिले में पड़ती हैं. साल 2०22 में उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 5 में से 4 सीटों पर जीत मिली थी. कालपी सीट पर सपा के विनोद चतुर्वेदी को जीत मिली थी जबकि शेष चारों सीटें बीजेपी के खाते में आई थी.
साल 2०19 के लोकसभा चुनाव में जालौन संसदीय सीट के चुनावी परिणाम की बात करें तो यहां पर महज 5 उम्मीदवारों के बीच मुकाबला हुआ था. मुख्य मुकाबला बीजेपी और बसपा के प्रत्याशी के बीच ही था जिसमें बीजेपी को जीत मिली. चुनाव से पहले सपा के साथ हुए गठबंधन में बसपा को यह सीट मिली. बीजेपी के भानु प्रताप सिह वर्मा को 581,763 वोट मिले तो बसपा के अजय सिह को 423,386 वोट मिले. कांग्रेस के ब्रजलाल खाबरी तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें 89,6०6 वोट ही मिले थे.
भानु प्रताप सिह वर्मा ने 158,377 मतों के अंतर से जीत हासिल की. तब के चुनाव में जालौन संसदीय सीट पर कुल 14,7०,521 वोटर्स थे जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 8,००,59० थी तो महिला वोटर्स की संख्या 6,69,858 थी. इसमें से कुल 11,29,955 (77.7%) वोटर्स ने वोट डाले. चुनाव में गग्Tइ के पक्ष में 12,514 वोट पड़े थे.
जालौन संसदीय सीट का राजनीतिक इतिहास
जालौन संसदीय सीट के संसदीय इतिहास को देखें तो यहां पर 9० के बाद के चुनावों में बीजेपी का दबदबा दिखता रहा है. बीजेपी के भानु प्रताप सिह वर्मा एक बार फिर हैट्रिक लगाने के मूड में हैं. पिछली बार वह हैट्रिक से चूक गए थे. फिलहाल, जालौन सीट पर 1952 के चुनाव में कांग्रेस के लोटन राम सांसद चुने गए थे. फिर 1957 में लच्छीराम कांग्रेस के टिकट पर चुने गए. 1962 के चुनाव में कांग्रेस के रामसेवक ने जीत हासिल की. रामसेवक ने इसके बाद 1967 और 1971 के चुनाव में जीत हासिल करते हुए शानदार हैट्रिक लगाई.
हालांकि अगले चुनाव से पहले देश में इमरजेंसी लगा दी गई जिसका खामियाजा 1977 के चुनाव में कांग्रेस को भुगतना पड़ा और जालौन सीट पर पहली बार उसे हार का सामना करना पड़ा. लोकदल के रामचरण चुनाव जीत गए. हालांकि 198० के चुनाव में कांग्रेस ने यहां पर वापसी और लच्छी राम सांसद बने. 1984 में भी यह सीट कांग्रेस (नाथूराम) के पास ही रही. 1989 के चुनाव में यहां से जनता दल ने जीत के साथ खाता खोला और राम सेवक भाटिया सांसद चुने गए. फिर इसके बाद देश में राम लहर का असर दिखा और बीजेपी की जोरदार तरीके से एंट्री हुई. जालौन सीट पर 1991 के संसदीय चुनाव में बीजेपी के गया प्रसाद कोरी ने जीत हासिल हुए पार्टी के लिए खाता खोला. फिर 1996 और 1998 के संसदीय चुनावों में भी बीजेपी को जीत मिली और भानु प्रताप वर्मा लगातार 2 बार सांसद चुने गए. लेकिन 1999 के चुनाव में भानु प्रताप वर्मा अपना जलवा बरकरार नहीं रखा पाए और उन्हें हार मिली. फिर 2००4 के चुनाव में बीजेपी वापसी की और भानु प्रताप सिह वर्मा फिर से सांसद चुने गए. 2००9 के चुनाव में जालौन सीट सपा के खाते में जीत आई और घनश्याम अनुरागी चुनाव जीत गए.
2०14 के लोकसभा चुनाव में देश में मोदी लहर का असर हर ओर दिखाई दिया. जालौन संसदीय सीट पर भी बीजेपी को जीत मिली और भानु प्रताप सिह चौथी बार सांसद चुने गए. भानु प्रताप ने बसपा के उम्मीदवार ब्रजलाल खाबरी को 2.87 लाख मतों के अंतर से हरा दिया. 2०19 के संसदीय चुनाव में भानु प्रताप को फिर से जीत मिली और पांचवीं बार सांसद चुने गए. बाद में वह केंद्र में मोदी सरकार में मंत्री भी बनाए गए.
जालौन सीट पर जातिगत समीकरण
अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व जालौन संसदीय सीट पर जातिगत समीकरण बेहद अहम है. यहां पर करीब 45 फीसदी एससी वोटर्स रहते हैं. इनके बाद ओबीसी वोटर्स की संख्या 35 फीसदी के करीब है. जनरल कैटेगरी के शेष 2० फीसदी वोटर्स हैं. यहां पर सवा लाख से अधिक मुस्लिम वोटर्स भी हैं जो चुनाव में अहम भूमिका निभाते हैं.
जालौन संसदीय सीट पर इस बार मुकाबला कड़ा होने वाला है. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच चुनावी तालमेल हो गया है. जबकि बसपा अकेले ही चुनाव लड़ रही है. ऐसे में हैट्रिक की आस लगाए बीजेपी के लिए त्रिकोणीय मुकाबला होगा. अब देखना होगा कि किसे यहां पर जीत मिलती है.
भाजपा से सातवीं बार मैदान में ताल ठोंक रहे भानुप्रताप
बीजेपी प्रत्याशी भानुप्रताप वर्मा 1996 से हर चुनाव में जालौन लोकसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर लड़े। इन 7 चुनावों में 5 बार भानु जीते और 2 बार हारे। आठवीं बार भी बीजेपी ने एमएसएमई राज्यमंत्री भानु पर ही भरोसा जताया है। इनका मुकाबला गठबंधन में सपा के उम्मीदवार नारायण दास अहिरवार से होगा। नारायण दास करीब एक-डेढ़ साल पहले बसपा से सपा में आए थे। बसपा ने सुरेश चंद्र गौतम को प्रत्याशी बनाया है।
आंतरिक संघर्ष
बीजेपी का आंतरिक असंतोष बाहर तक आ रहा है। कालपी से सपा विधायक विनोद चतुर्वेदी के बेटे आशीष बीजेपी में शामिल हो गए हैं। आरोप है कि इससे बीजेपी कार्यकर्ताओं में नाराजगी और उदासीनता है। सदर विधायक गौरीशंकर वर्मा और जिला पंचायत अध्यक्ष घनश्याम अनुरागी भी टिकट के दावेदार थे। अनुरागी कभी सपा के कद्दावर नेता होते थे। अनुरागी ने ही 1999 और 2००4 में भानुप्रताप को हराया था। भानु की चुनौती पार्टी के असंतुष्टों को साथ लेकर चलने की होगी। उन पर काम न करवाने और जालौन में उद्योगों को बढ़ावा न देने के आरोप लगते हैं। इसी तरह सपा के नारायण दास अहिरवार के लिए भी चुनौतियां हैं। गरौठा के दीपक यादव की पत्नी मीरा का पर्चा खजुराहो लोकसभा सीट से खारिज हो गया था। इस प्रकरण ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं। सपा के शीर्ष नेता दीपक यादव से नाराज बताए जाते हैं। ऐसे में यादव और मुस्लिम बहुल सीट पर दीपक का रुख देखने लायक होगा।
पाला बदल
चुनावी सीजन में कई नेताओं ने दल बदले। ब्राह्मणों को लुभाने के लिए आशीष चतुर्वेदी बीजेपी में आए। कोंच नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ चुकीं शीतल कुशवाह बसपा से भाजपा में आ गईं। शीतल की कुशवाह, सैनी समाज में अच्छी पकड़ मानी जाती है। जाटव वोटरों पर डोरे डालने के लिए उरई के पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष विजय चौधरी भी अब भाजपाई हैं। माधौगढ़ में प्रबल प्रताप सिह सपा से बीजेपी में आ गए।
जातियों का उलझाव
जालौन लोकसभा सीट का तीन जिलों में विस्तार है। उरई (रिजर्व), माधौगढ़ और कालपी जालौन जिले में, भोगनीपुर कानपुर देहात और गरौठा विधानसभा क्षेत्र झांसी जिले में आते हैं। इन पांचों क्षेत्रों में करीब 5०% ग्उए आबादी है। इनमें सबसे ज्यादा प्रभावी कुशवाह और मौर्य है। इसके बाद पाल और कुर्मी समाज का नंबर आता है। 3०% आबादी दलित बिरादरी और 2०% मुस्लिम और वैश्य हैं। माधौगढ़ से बीजेपी को क्षत्रिय वोट मिलने की उम्मीद है। हमीरपुर-महोबा सीट से सपा ने अजेंद्र राजपूत को टिकट दिया है, इससे जालौन के लोधी वोटर प्रभावित हो सकते हैं। अकबरपुर से राजाराम पाल का टिकट भी पाल समाज को सपा की तरफ मोड़ सकता है। देश में अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में बीजेपी यूपी की सभी 8० लोकसभा सीटें जीतने का दावा कर रही है। बुंदेलखंड की चुनिदा लोकसभा सीटों में से जालौन में आजादी के बाद सबसे पहले चुनाव 1952 में हुआ था। कांग्रेस के लोटन राम लोकसभा के पहले सांसद बने थे। इसके बाद 1957 में हुए लोक सभा चुनाव में इसी परिवार के लच्छीराम ने जीत दर्ज कर कांग्रेस का दबदबा बनाया। 1962 में कांग्रेस के रामसेवक ने बाजी मारी। इसके बाद हैट्रिक लगाते हुए चौधरी राम सेवक 1967 और 1971 में भी सांसद चुने गए। इमरजेंसी के आक्रोश की आग के बाद इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा टूटा। पहली बार 1977 के चुनाव में कांग्रेस को यहां हार मिली और लोकदल ने जीत हासिल की। इसके बाद 198० और 1984 के चुनावों में यहां पर कांग्रेस ने एक बार फिर वापसी की। नाथूराम और लच्छीराम सांसद बने। 1989 में यहां जनता दल ने खाता खोला और जीत दर्ज की। आज 34 साल बीत गए और इस लोकसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी एक जीत के लिए तरस गई है। इस लोकसभा 16 बार चुनाव हुए जिसमें में 7 बार कांग्रेस को जीत मिली है।
जालौन की लोकसभा सीट का नंबर 17 है। यह सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। इसमें कालपी, उरई, माधौगढ़, भोगनीपुर, गरौठा 5 विधानसभाएं आती हैं। जालौन को ऋषि जलवान की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर साक्षरता दर 73.7 है। जनसंख्या के मामले में ये यूपी में 57वें नंबर पर आता है। यहां की आबादी 26 लाख 25 हजार 771 है। यहां पर प्रथम स्वतंत्रा संग्राम की चिगारी भी फूटी थी। किसी जमाने में यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी, फिलहाल बीजेपी का कब्जा है।
1991 के रामलहर में खुला बीजेपी का खाता
1991 के चुनाव में जनता दल के राम सेवक भाटिया से बीजेपी ने यह सीट छीन ली। बीजेपी के गया प्रसाद कोरी पहली बार सांसद बने। इसके बाद 1996 और 1998 दोनों ही चुनावों में यहां बीजेपी जीती और भानु प्रताप वर्मा सांसद बने। 1999 में यहां तख्ता पलट हुआ और बसपा के ब्रजलाल खाबरी ने भानु प्रताप वर्मा को हैट्रिक नहीं बनाने दिया। साल 2००4 के चुनाव में एक बार फिर से बीजेपी ने वापसी की और भानु प्रताप सिह जीते। 2००9 में यहां पहली बार सपा ने खाता खोला और घनश्याम अनुरागी चुनाव जीते। 2०14 में फिर से ये सीट बीजेपी के खाते में गई और भानु प्रताप सांसद चुने गए। भानु प्रताप वर्मा ने बसपा के प्रत्याशी ब्रजलाल खाबरी को 2 लाख 87 हजार 2०2 वोटों से हराकर इस सीट पर कब्जा किया था।
पांचवीं बार सांसद बने भानु प्रताप वर्मा
2०14 के लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक चला और बीजेपी के भानु प्रताप वर्मा ने एक बार फिर बंपर वोटों से जीत हासिल की। दूसरे नंबर पर सपा से कांग्रेस में आ चुके बृजलाल खाबरी रहे। तीसरे स्थान पर समाजवादी पार्टी के घनश्याम अनुरागी रहे। 2०19 में फिर बीजेपी सरकार रिपीट हुई और भानु प्रताप वर्मा पांचवीं बार चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। उन्होंने अपने प्रतिद्बंद्बी बीएसपी प्रत्याशी अजय पंकज को 1 लाख 57 हजार 377 वोटों से मात दी। जालौन सीट पर अनुसूचित जाति का फैक्टर काफी मायने रखता है। यहां 45 फीसदी एससी वोटर्स हैं। इसके बाद ओबीसी वोटर्स की संख्या 35 और सामान्य 2० फीसदी हैं। वहीं डेढ़ लाख कुर्मी है तो सवा लाख की संख्या में मुसलमान आते है। अनुसूचित बाहुल्य होने की वजह से इस सीट को आरक्षित की श्रेणी में रखा गया है।
कभी डकैतों का खौफ था, दस्यु सुंदरी फूलनदेवी के जिले में अब वोटरों का ‘राज’
सेंट्रल यूपी से यमुना पार करते ही बुंदेलखंड शुरू होता है। बुंदेलखंड का एक अहम जिला है जालौन। जालौन को दो तरह से समझिए। यमुना पार बेहमई में 1981 में नरसंहार करने वाली दस्यु सुंदरी फूलनदेवी जालौन के ही शेखपुरा गुढ़ा गांव की रहने वाली थीं। कभी यहां डकैतों का दबदबा था। अब डकैत बचे और न उनका वर्चस्व। लेकिन बदलते दौर में जालौन से बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे शुरू होता है। पांचवें चरण के चुनाव वाली जालौन (रिजर्व) लोकसभा सीट में धीरे-धीरे माहौल बनने लगा है। जानकार कहते हैं कि गेहूं की कटाई और शादियों के सीजन के चलते गांवों के लोग अब तक राजनीतिक बातों से दूर थे।
कानपुर के झकरकटी बस अड्डे से गुरुवार सुबह झांसी जाने वाली बस चली तो बस में काफी सीटें खाली थीं। बगल में बैठे यात्री से जब राजनीति की बात शुरू की तो उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। एक अन्य यात्री जोगेंद्र गुप्ता गोरखपुर के रहने वाले हैं और कानपुर से झांसी जा रहे थे। चुनाव की बात पर बोले, ‘बीजेपी ठीक है, कहीं कोई समस्या नहीं है, हमारे यहां तो बीजेपी ही आगे चल रही है।’ उरई में कपड़े की दुकान करने वाले सुनील गुप्ता भी कहते हैं कि बीजेपी सरकार ठीक है। आराम से काम कर पाते हैं, अब गुंडई नहीं होती।
पुखरायां, भोगनीपुर और कालपी होते हुए करीब 3 घंटे में बस उरई पहुंच गई। उरई एक छोटा शहर है, जो बुंदेलखंड में झांसी के बाद सबसे विकसित शहर माना जाता है। जालौन चुंगी में एक छप्पर के नीचे खड़े मिले वीर सिह भोजीपुरा के निवासी हैं। वह कहते हैं, ‘हम एससी हैं, पढ़े-लिखे हैं पर मजदूरी करते हैं। सब ठीक है, राशन भी मिलता है, गुंडई नहीं है पर भइया रोजगार कम है। देखते हैं, वोट किसे देते हैं, सपा भी ठीक है।’ सामने एक दुकान में पान मसाला बेचने वाले संतोष कुमार वर्मा चुनाव की बात पर पहले तो कुछ नहीं बोलते। कुरेदने पर बोले, ‘अभी चुनाव का माहौल नहीं बना, हम ड्राइवर हैं, ड्राइवर वाला नियम आ गया तो दिक्कत हो जाएगी। ये पूंजीपतियों की सरकार है।’ यहां बैठे सेना के एक जवान ने अपना नाम नहीं बताया, लेकिन सेना के प्रति केंद्र सरकार के रवैये और प्रधानमंत्री मोदी की जमकर तारीफ की।
उरई में कालपी स्टैंड के पास बब्बू राजा पाल की लस्सी की दुकान है। लस्सी इतनी स्वादिष्ट कि कई गिलास पीने के बाद भी मन अतृप्त ही रहता है। आलू के पराठे खिलाने के बाद चुनाव की बात पर बब्बू बोले, ‘मोदी से हम खुश हैं पर रोजगार कम हैं। देश इतना आगे नहीं बढ़ गया है कि सारा काम प्राइवेट से चले, टैलंट भरा पड़ा है, सरकारी नौकरी खोलनी चाहिए।’ बब्बू बोले, ‘हमारे समाज का आधा वोट सपा को जाएगा।’ यहां से लस्सी पीकर उठे एक अन्य शख्स केंद्र सरकार से काफी नाराज दिखे। चर्चा सुन वहां आए आरके विश्वकर्मा ने बीजेपी की जमकर आलोचना की। बोले, ‘मंगलसूत्र वाली बात ठीक नहीं है। यूपी में बताइए कितनी इंडस्ट्री है, ऊपर से सेना की नौकरी 4 साल की कर दी। आदमी कहां नौकरी करे और कहां से बच्चे पाले।’
जालौन कस्बे में 12 साल से प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे अशोक राजपूत ने कहा कि रोजगार बड़ा मुद्दा है। कारोबारी प्रमोद ने कहा कि जीएसटी से व्यापारियों को क्या फायदा, अब तो हर कोई टैक्स कलेक्टर बन गया। एक अन्य व्यक्ति कहते हैं कि खनन के ट्रकों ने उरईवालों का जीवन दुश्वार कर दिया।