- स्थानीय प्रत्याशी का विकल्प शून्यः बस्ती के जगदम्बिका पाल के सामने है गोरखपुर के कुशल तिवारी
- दिग्गजों की पसंदीदा सीट रही है डुमरियागंज, यहां से देश की कद्दावर महिलाएं भी लड़ चुकी हैं चुनाव
सिद्धार्थनगर से लौटकर उमेश चन्द्र त्रिपाठी
उत्तर प्रदेश की डुमरियागंज लोकसभा सीट शुरू से ही दिग्गजों की पसंदीदा रही है। यहां बाहरी प्रत्याशियों का बोलबाला शुरू से रहा है। मोहसिना किदवई, केशव देव मालवीय से लेकर जगदम्बिका पाल तक सभी बाहरी प्रत्याशी यहां से संसद की यात्रा पर पहुंचे। इसी सीट से कई बड़े नेताओं ने भाग्य आजमाया। पहले यह लोकसभा सीट गोंडा पूर्व एवं बस्ती पश्चिम के नाम से जानी जाती थी। अब यह सिद्धार्थनगर जिले की एकमात्र लोकसभा सीट है, जिसे डुमरियागंज के नाम से जाना जा रहा है। यहां से देश की कई कद्दावर महिलाओं ने चुनाव लड़ा है और संसद तक पहुंची भी हैं।
बताते चलें कि सूबे के पूर्वी छोर पर भारत-नेपाल सीमा के सटा यह जिला शाक्य जिले के खंडहरों के लिए मशहूर है। यह जिला शाक्य राजाओं की राजधानी रहा है। भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बनी के लिए भारत होकर जाने वाले ज्यादातर पर्यटक इसी लोकसभा क्षेत्र से जाते हैं। करीब तीन दशक पहले यह बस्ती जिले से अलग होकर सिद्धार्थनगर के नाम से अस्तित्व में आया। गौतमबुद्ध की क्रीड़ास्थली कपिलवस्तु इसी जिले का हिस्सा है। कहा जाता है कि दुनिया के पहले गणतंत्र की शुरुआत भी यहीं कपिलवस्तु में हुई थी।
वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी जगदम्बिका पाल तीन बार से सांसद हैं। लेकिन पहली बार वो कांग्रेस के ‘हाथ’ के साथ थे। बाद में पाला बदलकर पाल भगवा खेमे में आए और दो बार सांसद बन गए। डुमरियागंज से जीत की हैट्रिक मार चुके पाल बीजेपी के कमल निशान पर हैट्रिक की फिराक में हैं। लेकिन उनके सामने इस बार गठबंधन ने बड़ा ही मजबूत प्रत्याशी खड़ा कर दिया है। साल 2009 में पाल ने हाजी मुकीम को हराया था। उस चुनाव में जगदम्बिका पाल को करीब 32 फीसदी वोट मिले थे। उन्हें कुल 2 लाख 98 हजार 845 वोट मिले थे। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के मोहम्मद मुकीम को एक लाख 95 हजार 257 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे। उस चुनाव में कुल 17 उम्मीदवार मैदान में थे।
संतकबीरनगर लोकसभा के पूर्व सांसद भीष्मशंकर तिवारी उर्फ कुशल यहां से इंडी गठबंधन के प्रत्याशी हैं। सूत्रों का दावा है कि साल 2024 के इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी पाल और सपा-कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशी कुशल तिवारी के बीच सीधी टक्कर बताई जा रही है। परिणाम क्या होगा यह तो चार जून को मतगणना के बाद पता चलेगा। हां इस बीच बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का प्रत्याशी लड़ाई से बाहर हो गया है। गौरतलब है कि डुमरियागंज सीट शुरू से ही दिग्गजों की पसंदीदा कांस्टीचुएंसी रही है। संसद तक पहुंचने के लिए दिग्गज नेताओं ने यहां से भाग्य आजमाया था। यहां से कांग्रेस के केशवदेव मालवीय ने आजादी के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की थी। तब यह सीट गोंडा पूर्व एवं बस्ती पश्चिम के रूप में जानी जाती थी।
आखिर क्या है विधानसभा सीटों का समीकरण…
इस क्षेत्र में कुल पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिसमें डुमरियागंज, शोहरतगढ़, कपिलवस्तु, बांसी और इटवा का नाम शामिल है। साल 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में डुमरियागंज से सपा की सईदा खातून ने भाजपा के राघवेंद्र प्रताप सिंह को 771 वोटों से हरा दिया। शोहरतगढ़ से बीजेपी की सहयोगी अपना दल के उम्मीदवार विनय वर्मा ने जीत दर्ज की। कपिलवस्तु विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के श्यामधनी राही, बांसी सीट से बीजेपी के जयप्रताप सिंह और इटवा क्षेत्र से सपा के माता प्रसाद पांडेय ने जीत हासिल की थी। बात डुमरियागंज के जातीय समीकरण की करें तो यहां मुसलमान वोटरों की अच्छी-खासी तादाद है। करीब 54 फीसदी आबादी हिंदुओं की और 43 मुस्लिम मुस्लिमों की है। साल 2019 के चुनाव में यहां कुल 9,85,269 (52.28%) मतदाताओं ने वोट किया था।
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केंद्रीय काबीना मंत्री की सीट रही है डुमरियागंज
यहां से शानदार जीत के बाद केशव देव मालवीय को कांग्रेस आलाकमान ने केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री बना दिया। आगे चलकर वो भारतीय पेट्रोलियम उद्योग के जनक के रूप में चर्चित हुए। देश की कद्दावर महिला नेता मोहसिना किदवई यहां से दो बार भाग्य आजमा चुकी हैं, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल सकी थी। वह यहां से जीती भले नहीं लेकिन केंद्र सरकार में लंबे समय तक मंत्री रही थीं। वहीं कांग्रेस के काजी जलील अब्बासी यहां से दो बार सांसद रहे। समाजवादी पार्टी के बृजभूषण तिवारी दो बार सांसद चुने गए। वह समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे हैं। डुमरियागंज के नाम से लोकसभा सीट का गठन दूसरी लोकसभा यानी 1957 में हुआ। केडी मालवीय यहां से दो बार सांसद हुए। पहला चुनाव उन्होंने 1952 में तो दूसरा चुनाव उन्होंने वर्ष 1971 में जीता था। केशव देव मालवीय ने HBTI कानपुर (अब HBTU) से तेल प्रौद्योगिकी में अपनी डिग्री प्राप्त की। साल 1970 के दशक में वह भारत के पेट्रोलियम मंत्री रहे। उनके सम्मान में डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय असम ने 1991 में आयल इंडिया लिमिटेड दुलियाजान के सहयोग से एप्लाइड जियोलाजी विभाग में अनुसंधान उद्देश्य के लिए एक ‘कुर्सी’ (चेयर) स्थापित की गई है।
नारायण स्वरूप शर्माः यह भारतीय जनसंघ के पहले नेता थे, जिन्होंने वर्ष 1967 में डुमरियागंज लोकसभा सीट पर कांग्रेस के जीत की राह रोकी थी। उन्हें एक लाख 28 हजार 569 मत मिले थे। उन्होंने कांग्रेस के केशव देव मालवीय को शिकस्त दी थी। नारायण स्वरूप शर्मा लंदन के आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सदस्य थे। लंदन में बैरिस्टर थे। वर्ष 1943 में भारतीय जनसंघ के सक्रिय सदस्य हुए और जनसंघ ने उन्हें 1967 में लोकसभा का चुनाव लड़ा दिया। उस चुनाव में वह सफल भी हुए। 1971 में वह कांग्रेस के केशव देव मालवीय से चुनाव हार गए थे।
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माधव प्रसाद त्रिपाठीः माधव प्रसाद त्रिपाठी 1977 में डुमरियागंज लोकसभा से भारतीय लोकदल के टिकट पर सांसद चुने गए थे। भारतीय जनता पार्टी के स्थापना में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र जैसे कई वरिष्ठ नेताओं के वह गुरु रहे हैं। वह वर्ष 1937 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र थे और वर्ष 1942 से वह आरएसएस से जुड़ गए। 1977 के चुनाव में उन्होंने डुमरियागंज सीट से कांग्रेस के केशव देव मालवीय को चुनाव हरा दिया था। वर्ष 1980 में वह चुनाव हार गए थे।
सीमा मुस्तफाः एशियन एज की राजनीतिक संपादक रह चुकी पत्रकार सीमा मुस्तफा भी डुमरियागंज लोकसभा से चुनाव लड़ चुकी है। वर्ष 1991 के राम लहर में यहां उनकी जमानत जब्त हो गई थी। 1991 में सीमा मुस्तफा को सिर्फ 49 हजार 553 मत मिले थे। सीमा मुस्तफा यहां से वर्ष 1996 में भी चुनाव लड़ी। उस समय भी वह अपनी जमानत नहीं बचा सकी थीं।
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काजी जलील अब्बासीः वह एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। डुमरियागंज लोकसभा सीट से वह वर्ष 1980 व वर्ष 1984 में सांसद चुने गए। राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने के कारण वर्ष 1937 में उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया था। इनकी गणना देश के शीर्ष विद्वानों में होती थी।
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बृजभूषण त्रिपाठीः बृज भूषण त्रिपाठी सपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे। वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में इन्होंने कांग्रेस के जलील अब्बासी को हरा दिया था। उस समय वह जनता दल (JD) के उम्मीदवार थे। वह सपा से दो बार राज्यसभा सदस्य भी रहे हैं। तीन बार यह लोकसभा सदस्य रहे हैं।
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मोहसिना किदवईः पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री रही हैं। वह मेरठ से तीन बार सांसद रही हैं। वर्ष 1991 में वह डुमरियागंज लोकसभा से चुनाव लड़ी थीं और हार गई थीं। साल 1996 में भी मोहसिना किदवई इसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ीं और उनकी जमानत जब्त हो गई थी।
माता प्रसाद पांडेयः समाजवादी पार्टी की सरकार में दो बार विधानसभा अध्यक्ष रह चुके माता प्रसाद पांडेय भी यहां से समाजवादी पार्टी के टिकट से वर्ष 2009 व वर्ष 2014 का चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन दोनों ही चुनावों में उन्हें पराजय मिली थी। साल 2014 में डुमरियागंज लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए जगदंबिका पाल पर अपना भरोसा जताया और उन्हें 2,98,845 वोट मिले थे। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी बसपा के मोहम्मद मुकीम को 1,03588 वोटों से हरा दिया था। 2014 कुल 53.08 प्रतिशत वोट पड़े थे।
जगदम्बिका पालः वर्ष 2019 में जगदंबिका पाल दोबारा डुमरियागंज से भाजपा प्रत्याशी बनाए गए और 4,92,253 वोट पाकर दूसरी बार जीत हासिल की। यह से बसपा के आफताब आलम 3,88,932 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस के चंद्रेश 60,549 वोट पाकर तीसरे स्थान चले गए। लेकिन सूत्रों का कहना है कि इस बार डुमरियागंज लोकसभा क्षेत्र का परिणाम कुछ चौंकाने वाला ही आएगा क्योंकि वहां इस बार जनता बदलाव चाहती है। सूत्र बताते हैं कि इस बार भाजपा प्रत्याशी जगदंबिका पाल और सपा-कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशी भीष्म शंकर तिवारी उर्फ कुशल तिवारी के बीच कड़ा मुकाबला होने जा रहा है।