- हैट्रिक की फिराक में BJP, जनता भी तैयार, चुनने को सरकार
- इंडी गठबंधन में कांग्रेस के पास है झांसी लोकसभा की सीट
भौमेंद्र शुक्ल
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक हलचल अपने चरम पर पहुंचता जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) जहां एक ओर उत्तर प्रदेश में 75 प्लस का नारा लगा रही है। वहीं पर विपक्षी दलों की कोशिश BJP के विजय अभियान को रोकने पर लगी है। समाजवादी पार्टी (SP) और कांग्रेस के बीच चुनावी तालमेल भी हो चुका है, ऐसे में BJP को जीत के लिए ज्यादा संघर्ष करना होगा। खैर, बुंदेलखंड क्षेत्र की चर्चित सीटों में से एक झांसी सीट पर सियासी समीकरण सेट किए जा रहे हैं। यह सीट भी अभी भाजपा के कब्जे में है जबकि सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन के बाद झांसी सीट कांग्रेस के पास आ गई है। BSP अकेले ही चुनाव लड़ने की बात कह रही है।
वर्तमान में चल रही विकास परियोजनाओं की बात करें तो झांसी में डिफेंस कॉरिडोर का काम चल रहा है। झांसी नगर निगम को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किया जा रहा है। हर घर नल से जल पहुंचाने की परियोजना पूर्ण होने की अवस्था में है। माता टीला डैम से शहर को जल्द ही शुद्ध जल अगले महीने से मिलना शुरू हो जाएगा। रेल कोच नवीनीकरण कारखाना बनकर तैयार है। ललितपुर जिले में मेडिकल कॉलेज का निर्माण पूरा होने के करीब है। झांसी-ग्वालियर रोड पर रेलवे लाइन पर ओवरब्रिज बनाने का काम चल रहा है और उसे भी जल्द पूरा कर लिए जाने का अनुमान है। दूसरी ओर किसानों की खुदकुशी, रोजगार के लिए पलायन, अब तक पानी का संकट और आवारा जानवरों की समस्या अभी भी यहां की राजनीति के मुख्य मुद्दे हैं।
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अपनी विरासत के लिए मशहूर है झांसी
रानी लक्ष्मीबाई की वजह से झांसी की अलग ही पहचान है। वीरता और साहस के प्रतीक माना जाने वाला यह शहर, पहुंज और बेतवा नदी के बीच पड़ता है। बताते हैं कि प्राचीन काल में झांसी, छेदी राष्ट्र, जेजक भुकिट, झझोती और बुंदेलखंड क्षेत्र में से एक हुआ करता था। झांसी कभी चंदेल राजाओं का गढ़ हुआ करता था। ब्रिटिश राज में राजा गंगाधर राव एक बहुत अच्छे प्रशासक हुआ करते थे। वह उदार और सहानुभूतिपूर्ण राजा थे। 1842 में राजा गंगाधर राव की मणिकर्णिका से शादी हुई। शादी के बाद मणिकर्णिका को नया नाम लक्ष्मीबाई दिया गया। लक्ष्मी बाई ने 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ अपनी सेना का कुशल नेतृत्व किया। लेकिन 1858 में संघर्ष के दौरान अपना जीवन बलिदान कर दिया।
विधानसभा चुनाव में भाजपा का दबदबा
साल 1861 में ब्रिटिश सरकार का ओर झांसी किला और झांसी शहर को जीवाजी राव सिधिया को दे दिया गया। तब झांसी, ग्वालियर राज्य का एक हिस्सा बन गया। लेकिन 1886 में अंग्रेजों ने ग्वालियर से झांसी को वापस ले लिया। आजादी के बाद झांसी को उत्तर प्रदेश में शामिल कर लिया गया। वर्तमान में झांसी डिवीजनल कमिश्नर का मुख्यालय है, और इस मंडल में झांसी, ललितपुर और जालौन जिले शामिल हैं। यह धरती रानी लक्ष्मीबाई ही नहीं बल्कि हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की कर्मस्थली के रूप में जानी जाती है। साथ ही राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और महान साहित्यकार वृंदावन लाल वर्मा जैसे धुरंधर साहित्यकारों की जन्मस्थली भी रही है। झांसी संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें आती हैं जो झांसी और ललितपुर जिलों में स्थित है। इस संसदीय सीट में झांसी की चार में से तीन विधानसभा सीटें (झांसी सदर, बबीना और मऊरानीपुर) और ललितपुर की दोनों विधानसभा सीटें (ललितपुर और महरौनी) शामिल हैं। इसमें से मऊरानीपुर और महरौनी सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सीट है। 2022 के विधानसभा चुनाव में झांसी सीट की पांच में से चार विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है जबकि एक पर बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) का कब्जा है।
साल 2019 के चुनाव में क्या रहा परिणाम
वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव में झांसी लोकसभा सीट के चुनाव परिणाम की बात करें तो यहां पर बीजेपी को जीत मिली थी। बीजेपी के अनुराग शर्मा और सपा के श्याम सुंदर सिह यादव के बीच मुकाबला था। चुनाव से पहले सपा और बसपा के बीच चुनावी गठबंधन था, जिसमें यह सीट सपा के खाते में आई थी। अनुराग शर्मा को चुनाव में 809,272 वोट मिले तो श्याम सुंदर सिह यादव को 443,589 वोट मिले। तीसरे नंबर पर कांग्रेस रही और उसके प्रत्याशी शिवशरण कुशवाहा को 86,139 वोट ही मिले। शिवशरण जन अधिकार पार्टी के नेता बाबू सिह के भाई हैं। चुनाव से पहले कांग्रेस और जन अधिकार पार्टी समझौता हुआ था और शिवचरण कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर झांसी सीट चुनाव लड़े थे। एकतरफा मुकाबले में बीजेपी के अनुराग शर्मा ने 365,683 मतों के अंतर से बड़ी जीत अपने नाम की। तब के चुनाव में झांसी सीट पर कुल वोटर्स की संख्या 23,85,972 थी जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 12,67,119 थी तो महिला वोटर्स की संख्या 11,18,771 थी, यहां पर 58 फीसदी से अधिक यानी 13,80,890 वोट पड़े। नोटा के पक्ष में चुनाव में 18,239 (0.8%) वोट पड़े थे।
झांसी सीट का राजनीतिक इतिहास
झांसी संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो यहां सीट भी बुंदेलखंड क्षेत्र के लिहाज से बेहद अहम सीट है। शुरुआती दौर में यह सीट कांग्रेस के कब्जे में ही रही है। शुरुआत में यह झांसी-ललितपुर लोकसभा सीट हुआ करती थी। 1952 से लेकर 1971 तक के पांच आम चुनावों में कांग्रेस को यहां पर जीत मिली थी। 1952 में कांग्रेस के रघुनाथ विनायक धुलेकर सांसद चुने गए। फिर यहां से 1957 से लेकर 1967 तक लगातार 3 चुनाव में सुशीला नैयर को जीत मिली। सुशीला नैयर महात्मा गांधी की निजी चिकित्सक रही हैं और वह उनके करीबी लोगों में शुमार रहीं। सुशीला के भाई प्यारेलाल नैयर महात्मा गांधी के निजी सहायक रहे। 1971 में कांग्रेस के गोविददास रिछारिया को जीत मिली। हालांकि इस दौरान देश में इंदिरा गांधी की ओर से इमरजेंसी लगा दी गई जिस वजह से सुशीला नैयर भारतीय लोकदल में आ गईं और 1977 के आम चुनाव में उन्हें जीत मिली और यह उनकी चौथी जीत रही। पहली बार इस सीट पर किसी गैर कांग्रेसी प्रत्याशी को जीत मिली थी। हालांकि इस चुनाव के बाद कांग्रेस ने फिर वापसी की और 1980 तथा 1984 के चुनाव में जीत दर्ज कराई। लेकिन, इसके बाद झांसी संसदीय सीट बीजेपी के खाते में आ गई।
बीजेपी के राजेंद्र अग्निहोत्री 1989 में पहली बार जीत दर्ज कराते हुए अपनी पार्टी का खाता खोला। फिर वह इस सीट पर 1991, 1996 और 1998 के चुनाव में भी विजयी हुए। राजेंद्र अग्निहोत्री ने लगातार 4 बार चुनाव में जीत हासिल की। 1999 में कांग्रेस के सुजान सिह बुंदेला ने जीत हासिल करते हुए बीजेपी की जीत का सिलसिला रोक दिया। फिर 2004 के चुनाव में समाजवादी पार्टी को पहली बार यहां पर जीत मिली। तब चंद्रपाल सिह यादव विजयी हुए। 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने सभी को चौंकाते हुए यह सीट फिर से हथिया ली। तब प्रदीप जैन आदित्य सांसद चुने गए। वह मनमोहन सिह सरकार में ग्रामीण विकास राज्यमंत्री बनाए गए।
त्रिकोणीय मुकाबले के आसार
साल 2014 के चुनाव में देश में मोदी लहर का असर दिखा और यहां से मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती बीजेपी के टिकट पर मैदान में उतरीं और 1,90,467 मतों के अंतर से सपा के चंद्रपाल सिह यादव को हरा दिया। 2019 में बीजेपी ने अनुराग शर्मा को मैदान में उतारा और उन्होंने जीत का दायरा बढ़ाते हुए 3,65,683 मतों के अंतर से जीत हासिल की। बुंदेलखंड की चर्चित सीट झांसी लोकसभा क्षेत्र में जातिगत समीकरण खास मायने नहीं रखता है। 1990 के बाद यहां पर हुए आठ लोकसभा चुनाव में भाजपा का दबदबा दिखा है। बीजेपी को आठ में से पांच बार जीत मिली है जबकि एक सपा को दो बार कांग्रेस ने भी जीत का स्वाद चखा है। वैसे यहां पर हिदू वोटर्स की संख्या काफी अधिक है। यहां पर बड़ी संख्या में रहते कुशवाहा, जैन, ब्राह्मण, कोरी और साहू बिरादरी के लोग हैं, ऐसे में ये चुनाव में अहम भूमिका निभाते हैं।
झांसी संसदीय सीट पर भाजपा को एक बार फिर जीत की हैट्रिक लगाने के लिए खासा संघर्ष करना पड़ेगा। SP और कांग्रेस के बीच यूपी में चुनाव से पहले करार हो गया है और इसके तहत झांसी सीट कांग्रेस के खाते में आई है। BSP अकेले चुनाव लड़ने की बात कह रही है, ऐसे में मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार दिख रहे हैं। उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण लोकसभा सीट है झांसी जो बुंदेलखंड की राजनीति के प्रमुख केंद्र के रूप में पहचान रखती है। झांसी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत पांच विधानसभा सीटें शामिल हैं जो झांसी और ललितपुर जिलों में स्थित हैं। इस सीट में झांसी की चार में से तीन विधानसभा सीटें और ललितपुर की दोनों विधानसभा सीटें शामिल हैं। झांसी सदर, मऊरानीपुर, बबीना, ललितपुर और महरौनी विधानसभा सीटें झांसी लोकसभा सीट का हिस्सा हैं। इन पांच में से चार विधानसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है जबकि एक पर भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल एस काबिज है। झांसी में हुए 17 लोकसभा चुनाव में नौ बार कांग्रेस, पांच बार भाजपा, एक-एक बार भारतीय लोकदल, बसपा और सपा ने अपना परचम लहराया है।
वर्तमान समय में इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के अनुराग शर्मा सांसद हैं। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार होकर प्रचंड वोटों से जीत दर्ज की। अनुराग वैद्यनाथ ग्रुप के मालिक हैं। इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की कद्दावर नेता उमा भारती ने इस सीट से चुनाव लड़ा था। जीत दर्ज कर उन्?होंने केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में जिम्मेदारी संभाली थी। वर्ष 2009 में झांसी लोकसभा सीट पर कांग्रेस के नेता प्रदीप जैन आदित्य ने जीत दर्ज की थी। उन्हें मनमोहन सिह सरकार में ग्रामीण विकास राज्यमंत्री के रूप में जिम्मेदारी दी गई थी। इससे पहले 2004 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर सपा के प्रभावशाली नेता डॉ चंद्रपाल सिह यादव को जीत मिली थी। डॉ चंद्रपाल सिह यादव वर्तमान में कृभको के अध्यक्ष हैं।
…जब सपा और बसपा ने मिलकर लड़ा था चुनाव
2019 के नतीजों की बात करें तो इस सीट पर हुए मतदान में भाजपा प्रत्याशी अनुराग शर्मा को 8 लाख 9 हजार 272 वोट, सपा उम्?मीदवार श्याम सुन्दर सिह यादव को 4 लाख 43 हजार 589 वोट, कांग्रेस के शिव शरण कुशवाहा को 86 हजार 139 वोट और नोटा को 18 हजार 239 वोट मिले थे। बसपा ने प्रत्याशी नहीं उतारा था क्योंकि समाजवादी पार्टी से गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में चली गई थी। शिव शरण कुशवाहा जन अधिकार पार्टी के नेता बाबू सिह कुशवाहा के भाई हैं। कांग्रेस और जन अधिकार पार्टी में इस चुनाव में समझौता हुआ था और शिव चरण इस सीट पर कांग्रेस के सिबल पर चुनाव मैदान में उतरे थे।
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1996 में बसपा का सांसद चुना गया
झांसी-ललितपुर सीट से 1952 से 1971 तक लगातार कांग्रेस विजयी रही है। 1977 में भारतीय लोकदल इस सीट पर कब्जा जमाने में कामयाब रही। अगले ही चुनाव में फिर से कांग्रेस का कब्जा हो गया। 1980 और 1984 में इस सीट पर कांग्रेस जीती। 1989 में बीजेपी ने अपना खाता खोला। 1991 चुनाव में बीजेपी इस सीट को बचाने में कामयाब रही लेकिन अगले चुनाव 1996 में इस सीट पर बसपा का कब्जा हो गया। 1998 में बीजेपी ने फिर वापसी की, लेकिन 1999 में कांग्रेस के हाथों उसे हार का मुंह देखना पड़ा। जहां 2004 में सपा ने यहां विजय पताका फहराया वहीं 2009 में कांग्रेस ने जीत हासिल की। 2014 और 2019 के चुनाव से यहां बीजेपी का कब्जा चला आ रहा है।
सियासी गतिविधियों का केंद्र रहा है झांसी
सियासी रूप से झांसी उत्तर प्रदेश का प्रमुख केंद्र रहा है। झांसी लोकसभा सीट बुंदेलखंड की एक महत्वपूर्ण लोकसभा सीट के रूप में अपनी पहचान रखती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती सहित सभी प्रमुख नेताओं की इस क्षेत्र में समय-समय पर सक्रियता देखने को मिलती रही है। पृथक बुंदेलखंड राज्य आंदोलन, बुंदेलखंड से श्रमिकों का पलायन, किसानों की ख़ुदकुशी, पीने और सिचाई के पानी की किल्लत जैसे मुद्दों को केंद्र में रखकर इस क्षेत्र के राजनीतिक और सामाजिक संगठन अक्सर आंदोलनरत दिखाई देते हैं।
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ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से रही है पहचान
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से देखें तो झांसी 1857 की क्रांति का एक प्रमुख स्थल रहा है। वीरांगना लक्ष्मीबाई के कारण इस शहर की पहचान पूरी दुनिया में है। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की कर्मस्थली, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और उपन्यास सम्राट वृन्दावन लाल वर्मा जैसे साहित्यकारों की यह जन्मस्थली रही है। रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय,बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, बुंदेलखंड इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिग एंड टेक्नोलॉजी, महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज जैसे प्रमुख शिक्षण संस्थान यहां स्थित है। रेल परिवहन का झांसी एक प्रमुख केंद्र है और यहां मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय भी स्थित है। झांसी कैंट और बबीना कैंट सेना की महत्वपूर्ण छावनियां हैं।