कैसरगंज लोकसभाः कायम रहेगा या खत्म होगा ब्रजभूषण का दबदबा!

  • यौन उत्पीड़न केस में फंसे पहलवान की नाक बचाने मैदान में उतरा बेटा
  • अयोध्या में दिव्य-भव्य राम मंदिर की चमक

चंद्र प्रकाश मिश्र

कैसरगंज का राजनीतिक दंगल बड़ा रोचक है। भाजपा ने पहलवानों से विवाद के बाद बृजभूषण शरण सिंह के बेटे करणभूषण को मैदान में उतारा है। मैदान में भले ही करण हों लेकिन प्रतिष्ठा तो बृजभूषण की ही दांव पर लगी है। सपा ने श्रावस्ती से भाजपा के पूर्व सांसद दद्दन मिश्र के भाई भगतराम और बसपा ने नरेन्द्र पांडेय को मैदान में उतारा है। यह संसदीय सीट में गोंडा की तीन व बहराइच जिले की दो विधानसभा सीटें आती हैं। पांच में से चार सीटों पर भाजपा का कब्जा है। बीजेपी के प्रत्याशी और उप्र कुश्ती संघ के अध्यक्ष करण कुश्ती के बाद राजनीति के अखाड़े में भी पिता बृजभूषण की छत्रछाया में जोर आजमाइश कर रहे हैं।

पिता को लेकर विवाद और पुत्र की दावेदारी को लोग अपनी-अपनी तरह से देखते हैं। बेलसर कस्बे में शिक्षक रज्जन बाबा तो स्पष्ट कहते हैं कि सांसदजी (बृजभूषण) का बड़ा बेटा प्रतीक भूषण गोंडा सदर से विधायक है और अब छोटा बेटा करण यहां से सांसद बनने जा रहा है। बृजभूषण के गोंडा, कैसरगंज में तमाम कालेज हैं। बच्चों को खेल व पढ़ाई में सांसदजी खूब प्रोत्साहित करते हैं। गरीब परिवार के बच्चों की फीस भी माफ कर देते हैं। राजनीति में बृजभूषण पहले भी विवादों में घिर चुके हैं, मगर हर बार वह विवादों की धूल झाड़-पोछकर मजबूती से खड़े भी हो जाते हैं। बेलसर ब्लाक के आजाद नगर बाजार में चाय पर चर्चा छिड़ी हुई थी। किसान सुरेश कुमार अयोध्या में दिव्य-भव्य राम मंदिर का बखान करते नहीं अघा रहे हैं। बोले ‘500 वर्षों की तपस्या पूरी हुई है, हम तो फूल वाली पार्टी को ही वोट देंगे।’ श्रीराम मंदिर की दिव्यता का वर्णन कर उन्होंने आंख खोली तो सामने चाय की प्याली थी।

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चुस्कियां लेकर बोले, रामू तुम्हारा क्या मत है। रामू कुछ बोले तो नहीं, लेकिन सिर हिलाकर सुरेश की बात का समर्थन किया। तब तक यहां पहले से बैठे युवा दीपू चाय पी चुके थे, दुकानदार को नकद देने के बजाए आनलाइन पैसे ट्रांसफर कर वह बोले ‘और दादा बेरोजगारी व महंगाई का क्या?’ अबकी जवाब सुरेश की बजाए रामू ने दिया। बोले ‘किस सरकार में महंगाई नहीं रहती बच्चा। रोजी-रोजगार भी मिल ही रहा है। युवा हो राष्ट्र को सशक्त बनाने की सोचो।’ यहां पिछले दो चुनावों से कमल का फूल ही खिल रहा है। छह बार के सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने वर्ष 2014 के मुकाबले वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव बड़े अंतर से जीता। 2014 में सपा प्रत्याशी व पूर्व मंत्री विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह से वह 78 हजार से अधिक वोट से ही जीते थे, तब बसपा प्रत्याशी कृष्ण कुमार ओझा को 1.46 लाख वोट मिले थे और कांग्रेस के मुकेश श्रीवास्तव को 57 हजार मत मिले थे। 2019 में सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी चंद्र देव राम यादव को भाजपा के बृजभूषण ने 2.61 लाख वोटों के लंबे अंतर से पराजित किया था।

अबकी सपा व बसपा अलग-अलग हैं और आइएनडीआइए के चलते सपा व कांग्रेस साथ हैं। कांग्रेस को वर्ष 2014 में छह प्रतिशत और वर्ष 2019 के चुनाव में मात्र 3.78 प्रतिशत वोट ही मिले थे। सपा प्रत्याशी भगत राम मिश्र को ब्राह्मणों के साथ ही मुस्लिम व यादवों के वोट से भी बड़ी आस है। वह वर्ष 2004 में बहराइच से बसपा से चुनाव लड़े थे और सपा प्रत्याशी रुबाब सईदा से 26 हजार वोटों से हार गए थे। कांग्रेस व भाजपा में भी रहे चुके हैं और यहां इन्हें टिकट मिलने पर यहां सपाई खुलकर विरोध भी जता चुके हैं। तभी यहां सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने रोड-शो किया था और उसके बाद चीजें सही होने का दावा किया जा रहा है। अब डिम्पल यादव भी प्रचार करने आने वाली हैं।

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कैसरगंज पर कड़े मुकाबले की आस, सपा और कांग्रेस रोक पाएंगे भाजपा की राह

उत्तर प्रदेश की सियासत में कैसरगंज बेहद अहम है क्योंकि पिछले साल यहां के सांसद लगातार सुर्खियों में रहे। देश की कई नामचीन महिला पहलवानों ने सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण का आरोप लगाया। ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले कैसरगंज संसदीय सीट पर राजनीतिक हलचल तेज होती जा रही है। भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है कि वह बृजभूषण सिंह को फिर से यहां से मैदान में उतारे या नहीं। वहीं विपक्षी दल सांसद पर लगे यौन शोषण के आरोप को न सिर्फ कैसरगंज में बल्कि पूरे प्रदेश में मुद्दा बना सकती है। फिलहाल यहां पर इस बार पिछली बार की तुलना में ज्यादा कड़ा मुकाबला होने के आसार हैं। कैसरगंज संसदीय सीट यूपी के दो जिलों में गोंडा और बहराइच जिले में पड़ती है। यह सीट सामान्य वर्ग के तहत आती है। इस संसदीय सीट में पयागपुर, कैसरगंज, कटरा बाजार, करनैलगंज और तरबगंज पांच विधानसभा सीटें हैं। गोंडा में कटरा, करनैलगंज और तरबगंज विधानसभा सीट आती हैं तो बहराइच जिले में पयागपुर और कैसरगंज विधानसभा सीट हैं। साल 2022 में उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पांच में से चार सीटों पर जीत मिली थी। एक सीट (कैसरगंज) समाजवादी पार्टी के खाते में गई थी।

साल 2019 के चुनाव में किसे मिली जीत

वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव में कैसरगंज लोकसभा सीट के चुनावी परिणाम की बात करें तो यहां पर एकतरफा चुनाव हुआ था। चुनाव में बीजेपी की ओर से बृजभूषण शरण सिंह मैदान में थे। जबकि बसपा ने चंद्रदेव राम यादव को मैदान में उतारा। चुनाव में सपा और बसपा के बीच चुनावी गठबंधन था। बृजभूषण शरण सिंह को 581,358 वोट मिले तो चंद्रदेव राम यादव के खाते में 319,757 वोट आए थे। कांग्रेस की स्थिति यहां पर भी काफी कमजोर रही और विनय कुमार पांडे को महज 37,132 वोट मिले थे। चुनाव में बृजभूषण शरण सिंह ने 261,601 मतों के अंतर से बड़ी जीत हासिल की थी। तब के चुनाव में कैसरगंज लोकसभा सीट पर कुल वोटर्स की संख्या 17,79,143 थी। पुरुष वोटर्स की संख्या 9,56,176 थी तो महिला वोटर्स की संख्या 8,22,895 थी। इसमें से कुल 9,81,400 (55।9%) वोटर्स ने वोट डाले। चुनाव में नोटा के पक्ष में 13,168 वोट पड़े थे।

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कैसरगंज सीट का इतिहास

कैसरगंज लोकसभा सीट के संसदीय इतिहास को देखें तो यहां पर पहला चुनाव 1952 में हुआ था। यहां पर कभी समाजवादी पार्टी का दबदबा हुआ करता था। सपा को लगातार 4 बार यहां पर जीत मिली थी। बाद में यह सीट बृजभूषण सिंह के नाम से पहचाने जाने लगा। वह लगातार 3 बार से यहां पर सांसद है। कांग्रेस को भी अब तक 3 बार जीत मिली है। साल 1952 में हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनसंघ के टिकट पर शकुंतला नैय्यर चुनाव जीतने में कामयाब रही थीं। फिर 1957 में भगवानदीन मिश्रा को जीत मिली तो 1962 में स्वतंत्र पार्टी की बसंत कुमारी सांसद चुनी गई थीं। 1967 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर भारतीय जनसंघ को जीत मिली और शकुंतला नैय्यर दूसरी बार यहां से सांसद चुनी गईं। वह 1971 के चुनाव में भी जनसंघ के टिकट पर विजयी हुई थीं। हालांकि इमरजेंसी के बाद 1977 में कराए गए आम चुनाव में कांग्रेस को यहां से फिर हार मिली। जनता पार्टी के उम्मीदवार रुद्रसेन चौधरी सांसद चुने गए। 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत के साथ वापसी की। उसके उम्मीदवार राना वीर सिंह सांसद चुने गए। राना वीर सिंह ने 1984 और 1989 के चुनाव में भी जीत हासिल की थी। 1991 के चुनाव से पहले देश में राम लहर का असर दिखने लगा था। इस वजह से बीजेपी ने इस सीट अपनी पहली जीत का स्वाद भी चखा। लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी सांसद चुने गए। इसके बाद बेनी प्रसाद वर्मा ने यहां से चुनाव में जीत का सिलसिला अगले कई चुनाव तक बनाए रखने में कामयाब रहे। बेनी प्रसाद वर्मा 1996 में सांसद चुने गए।

बेनी प्रसाद को मिली लगातार जीत

कभी सपा के कद्दावर नेता रहे और मुलायम सिंह यादव के करीबी नेताओं में रहे बेनी प्रसाद वर्मा ने कैसरगंज सीट से 1996 के बाद 1998, 1999 और 2004 के चुनाव में लगातार चार बार जीत दर्ज की। इस बीच बेनी प्रसाद वर्मा और मुलायम सिंह यादव के रिश्ते खराब होते चले गए और दोनों में दूरियां बढ़ गई। फिर 2008 में बेनी प्रसाद वर्मा ने सपा छोड़ दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए। 2009 के चुनाव में बेनी प्रसाद गोंडा सीट से जीत गए। और केंद्र में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार में इस्पात मंत्री बने। 2008 में परिसीमन के बाद यह सीट भी बदल गई और 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले कैसरगंज सीट से बाराबंकी वाले हिस्से को अलग कर दिया गया और गोंडा जिले के कुछ इलाके शामिल कर लिए गए। इस बीच 2008 में बीजेपी छोड़कर सपा में आए बृजभूषण शरण सिंह ने 2009 के चुनाव में कैसरगंज से जीत हासिल की। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले वह सपा छोड़कर एक बार फिर बीजेपी में शामिल हो गए।

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कैसरगंज सीट पर किसका दबदबा

साल 2014 के चुनाव में देश में मोदी लहर का असर दिखा। सपा छोड़कर बीजेपी में आए बृजभूषण शरण सिंह यहां से मैदान में उतरे और 3,81,500 वोट हासिल किया। उन्होंने सपा के विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह को 78,218 मतों के अंतर से हरा दिया। बसपा उम्मीदवार कृष्ण कुमार ओझा को 1,46,726 वोट मिले और वह तीसरे स्थान पर रहे। 2019 के चुनाव में बृजभूषण शरण सिंह ने अपनी जीत का दायरा बढ़ाते हुए 2,61,601 मतों के अंतर से जीत हासिल की। बृजभूषण को चुनाव में 5,81,358 वोट मिले तो उनके करीबी प्रतिद्बंद्बी बसपा के चंद्रदेव राम यादव को 3,19,757 वोट ही मिले थे। कैसरगंज संसदीय सीट पर बृजभूषण शरण सिंह का खासा दबदबा माना जाता है और उनकी स्थानीय लोगों के बीच उनकी छवि काफी अच्छी बताई जाती है। हालांकि महिला पहलवानों की ओर से उन पर यौन शोषण के आरोप लगाए जाने के बाद वह लगातार सुर्खियों में बने रहे। यहां के जातिगत समीकरण को देखें तो कैसरगंज एक क्षत्रिय बहुल इलाका है तो गोंडा में कुछ इलाकों में ब्राह्मण वोटर्स का दबदबा है। यहां पर मुस्लिम वोटर्स की भी भूमिका अहम मानी जाती है।

नंदिनी नगर स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स में दर्जनों पहलवान विपक्षी के साथ रोज-आजमाइश में जुटे हैं। रेफरी की सीटी बजते ही पहलवान श्रद्धा बाहर आकर पसीना पोछने लगती हैं। चुनाव में क्या मुद्दे हैं? सवाल सुनते ही श्रृद्धा बोलती हैं, मजबूत राष्ट्र और सुरक्षा व्यवस्था। महिला पहलवानों के आरोपों पर आपका क्या कहना है? श्रृद्धा के बोलने के पहले ही प्रतापगढ़ की पहलवान आरती कहती हैं कि जब ब्रजभूषण शरण खुद कह रहे हैं कि आरोप सत्य पाए गए तो वह फांसी लगा लेंगे तो बाकी का काम कानून को करने देना चाहिए। इस अखाड़े में करीब 50 पहलवान कुश्ती के दांवपेच सीख रहे हैं, इनमें महिला व पुरुष पहलवान भी शामिल हैं। यह प्रकरण अभी आरोपों तक ही ही सीमित है, हम यहां अभ्यास कर रहे हैं और ऐसा नहीं है कि आरोपों के बाद यहां से कोई चला गया हो, या पहलवानों की संख्या कम हुई हो। बातचीत से तो यही प्रतीत होता है कि महिला पहलवानों के जिन आरोपों के कारण कैसरगंज सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह का टिकट कटा, उनका असर यहां राजनीतिक माहौल पर नहीं है। उनके बेटे करन भूषण सिंह मैदान में हैं, यह उनका पहला चुनाव है, जाहिर सी बात है कि मैदान में करन हैं, लेकिन प्रतिष्ठा ब्रजभूषण की ही दांव पर लगी है।

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विपक्ष इसे जरूर मुद्दा बनाने का प्रयास कर रहा है, लेकिन यहां कुश्ती अखाड़े में पसीना बहा रहे पहलवान इसे कानूनी और राजनीतिक बता रहे हैं। उनका कहना है कि उधर पहलवानों का धरना चला रहा था और इधर निकाय चुनाव में भाजपा ने शानदार जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में ब्रजभूषण ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। विश्नोहरपुर के लोगों ने कहा कि बृजभूषण शरण सिंह पर धरनाजीवी पहलवानों द्बारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोप बेबुनियाद हैं, इससे चुनाव में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। श्रद्धा सिंह जूनियर कैडेट और अंडर 15 में कुश्ती प्रतियोगिता में भाग ले चुकी हैं। वह पांच वर्ष से नंदिनीनगर महाविद्यालय में कुश्ती का प्रशिक्षण ले रही हैं और इस बार के चुनाव में पहली बार मतदान करेंगी।

बिजनौर की पहलवान श्रद्धा चौधरी ने कहा कि सांसद ने कुश्ती को आगे बढ़ाया है। आगरा की पहलवान सुधा बघेल ने कहा कि प्रशिक्षण केंद्र में जितनी सुविधाएं कैसरगंज सांसद ने उपलब्ध कराई है, अन्य किसी केंद्र में नही है। कैसरगंज के पहलवान प्रखर ने कहा कि हम सरकार के कामकाज से संतुष्ट हैं। जरवल रोड के पहलवान इरफान कहते हैं प्रत्याशी कोई भी हो, लेकिन कैसरगंज का चुनावी माहौल राममय है। कैसरगंज लोकसभा सीट का चुनावी पारा यूं तो सांसद बृजभूषण की उम्मीदवारी को लेकर गहराए रहस्य के साथ ही गर्म था। अब जबकि उनके बेटे करण भूषण को भाजपा से टिकट मिल गया है तो बहुत कुछ साफ हो गया है। राजनीतिक के जानकार कह रहे हैं- भले ही बेटा मैदान में है, मगर लड़ तो बृजभूषण ही रहे हैं। चुनावी तैयारी में वह पहले ही कितने आगे निकल चुके हैं, इससे अंदाज लगा लीजिए कि टिकट फाइनल होने से पहले तक बृजभूषण 165 सभाएं कर चुके थे। दूसरी ओर अन्य दल भाजपा के फैसले का इंतजार करते रह गए। बहरहाल, अब यहां चुनावी मैदान सज चुका है। सपा से भगतराम मिश्र मैदान में हैं। वह जातीय समीकरण और सत्ता के विरोध के सहारे मुकाबले को रोचक बनाने की कोशिश में हैं तो कैडर वोट के सहारे बसपा के नरेंद्र पांडेय भी लड़ाई में आने की आस लगाए हैं।

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कइसन चुनाव भइया?

बालपुर बाजार में सब्जी की दुकान पर महिलाएं खड़ी हैं। चुनाव का माहौल पूछने पर जवाब मिला- कइसन चुनाव भइया?, कोई वोटवा मांगय आवय तब कुछ जान मिलय, वैसे अयोध्या जी मा मंदिर बन गवा ई बहुत अच्छा भवा।’ बीच में ही बात काटते हुए माथे पर टीका लगाए बुजुर्ग बोले- ‘चुनाव कउनव नाही हय, अबकी तव मैदान साफ हय।’ उनका इशारा शायद टिकट वितरण में देरी और भाजपा के उम्मीदवार को लेकर था।

बेसहारा पशुओं की टीस

संवाद आगे बढ़ा तो बेसहारा पशुओं को लेकर टीस उभरी जरूर, लेकिन कानून व्यवस्था व राम मंदिर निर्माण के चर्चे में सब गुम हो जाता है। यह इलाका कटराबाजार विधानसभा क्षेत्र में आता है, जहां से भाजपा के बावन सिंह लगातार तीन बार से विधायक हैं।

रोजगार भी है मुद्दा

आगे बढ़ने पर तिराहे पर टैक्सी वाहनों का जमावड़ा है। चुनावी सवालों पर लोग खुलकर बोलने में संकोच करते हैं। निशुल्क राशन, किसान सम्मान निधि, उज्ज्वला गैस योजना से संतुष्ट हैं, लेकिन रोजगार की व्यवस्था न होने से लोग व्यथित हैं।

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क्या भाजपा-सपा में है लड़ाई?

भैरमपुर में छात्र सत्यम का सधा सा जवाब है-रोजगार की व्यवस्था करने वाली सरकार को ही मतदान करूंगा। पहाड़ापुर में भैंस चरा रहे रामकुमार बोले- यहां भाजपा की लड़ाई सपा से है। बसपा से कौन चुनाव लड़ रहा है, इसकी जानकारी नहीं है। बुजुर्ग राम जियावन हों या फिर युवा मनीष, सतीश व शिवम, सभी का मानना है कि सपा व बसपा का संगठन कमजोर है, जिससे भाजपा को मजबूती मिली है। 1952 से 2019 तक कुल 17 चुनावों में कैसरगंज सीट ने बसपा को छोड़ हर दल को मौका दिया है। समाजवादी झंडा यहां पर सर्वाधिक पांच बार लहरा चुका है। सपा के टिकट पर चार बार पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा और एक बार बृजभूषण शरण सिंह ने जीत दर्ज की थी। साल 2014 से बृजभूषण यहां कमल खिलाए हुए हैं। इससे पहले 1989 में रुद्रसेन चौधरी और 1991 में लक्ष्मी नारायण मणि त्रिपाठी यहां भाजपा को जीत दिला चुके हैं। कांग्रेस तीन बार ही जीत सकी है।

खत्म होगा दबदबा

कांग्रेस जिलाध्यक्ष प्रमोद मिश्र का कहना है कि पहलवानों के गंभीर आरोपों के चलते ही भाजपा ने ब्रजभूषण शरण सिंह का टिकट काटा है, लेकिन उनके बेटे को भी यहां से हार का सामना करना पड़ेगा, जो दबदबा होने का दावा कर रहे थे इस बार चुनाव में वह खत्म हो जाएगा।

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