- प्रधानमंत्री मोदी के कारण यहां की फिजा भी काशी की तरह भगवामय
यूपी का चंदौली लोकसभा सीट पीएम नरेंद्र मोदी के वाराणसी लोकसभा का पड़ोसी लोकसभा क्षेत्र है. कहा जाता है कि वाराणसी और चंदौली का फ्लेवर एक ही है. काशी के बगल में बसे चंदौली के बारे में कहा जाता है कि यहां की राजनीतिक सोच भी काशी से मिलती जुलती है. वाराणसी की तरह ही यहां पिछले दो बार से बीजेपी के सांसद हैं. और अब बीजेपी ने यहां जीत की हैट्रिक लगाने के लिए एकबार फिर अपने पुराने सिपाही महेंद्रनाथ पांडेय पर ही दाव लगाया है. चंदौली में आज भगवा परचम लहरा रहा है लेकिन कभी यह कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था. तब कांग्रेस को समाजवाद के पुरोधा कहे जाने वाले डॉ. राम मनोहर लोहिया भी शिकस्त नहीं दे पाए थे. शरुआती चार चुनाव में यहां कांग्रेस पार्टी जीती थी लेकिन आज यहां कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है.
चंदौली लोकसभा सीट अपने राजनैतिक इतिहास कि वजह से हमेशा सुîखयों में रहा है. यहां करीब-करीब सभी राजनीति दल जिसमें कांग्रेस पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी, जनता दल, भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी सबने जीत दर्ज की है. चंदौली लोकसभा में कांग्रेस चार और बीजेपी सबसे ज्यादा पांच बार जीत दर्ज करने में कामयाब रही है.
2०19 में बीजेपी ने दोबारा की जीत दर्ज
चंदौली में लोकसभा चुनाव 2०19 में डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने दूसरी बार जीत दर्ज की थी. चूकि 2०19 में सपा-बसपा साथ चुनाव लड़ रही थी तो डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय को जबरदस्त टक्कर मिली. 2०14 में एक लाख 56 हजार 756 वोट से बसपा प्रत्याशी अनिल कुमार मौर्या को हराने वाले महेंद्र नाथ पांडेय ने 2०19 में सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी संजय सिह चौहान को करीब 14 हजार वोटों से हराया था. डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय को 5 लाख 1० हजार 733 वोट मिला था जो 2०14 से करीब एक लाख वोट ज्यादा है. इसके बाद भी उनके जीत का अंतर घट कर 13 हजार 959 वोट रह गया था. अब पांच साल बाद सपा बसपा अलग है.
राजनीतिक इतिहास
1952 में हुए पहले चुनाव में यहां कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की थी. 1962 तक यहां कांग्रेस अजेय रही. 1952 और 57 में समाजवाद के पुरोध डॉ. राम मनोहर लोहिया को भी यहां हार का सामना करना पड़ा था. 1957 में उन्हें कांग्रेस पार्टी के त्रिभुवन नारायण सिह ने शिकस्त दी थी. त्रिभुवन नारायण सिह बाद में यूपी के सीएम भी बने. 1967 में चंदौली में सोशलिस्ट पार्टी के निहाल सिह सांसद बने. 1971 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और सुधाकर पांडेय ने यहां से जीत दर्ज की. 1977 में हुए बदलाव का असर यहां भी दिखा और जनता पार्टी के नरसिह यादव सांसद बने. 198० में एकबार फिर निहाल जीत दर्ज करने में कामयाब हुए. इसबार उन्होंने जनता दल से चुनाव जीता. 1984 में फिर कांग्रेस की वापसी हुई और चंद्रा त्रिपाठी सांसद बने जबकि 1989 में जनता दल के कैलाशनाथ सिह सांसद बने थे.
1991 में खुला बीजेपी का खाता
इसके बाद 1991 में बीजेपी ने यहां खाता खोला और लगातार तीन बार 91, 96 और 98 में भारतीय जनता पार्टी के भारतर‘ मौर्य सांसद बने. 1999 में सपा के जवाहरलाल जायसवाल, 2००4 में बसपा के कैलाशनाथ, 2००9 में सपा के रामकिशुन यादव और 2०14 और 19 में बीजेपी के महेंद्रनाथ पांडेय ने जीत दर्ज की है. चंदौली लोकसभा क्षेत्र में पाच विधानसभा क्षेत्र है. इसमें वर्तमान में चार पर बीजेपी के विधायक हैं.
एक नजर जातीय गणित पर
18 लाख से ज्यादा मतदाता वाले चंदौली लोकसभा सीट में सबस ज्यादा यादव जाति के मतदाता हैं. यहां यादव मतदाताओं की संख्या करीब दो लाख 75 हजार है. वहीं दलितों का वोट भी ढाई लाख पार है. पिछड़ी जाति में आने वाले मोर्या की आबादी 1 लाख 75 हजार है. जबकि राजपूत, ब्राह्मण, राजभर और मुस्लिम भी करीब एक लाख हैं. बीजेपी ने जहां महेंद्र नाथ पांडेय को टिकट दिया है वहीं अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने वीरेंद्र सिह पर दाव लगाया है.
चुनावी माहौल पर बात छिड़ते ही मुगलसराय के कारोबारी रजनीश सिह कहते हैं, इस बार भी मोदी का असर है, इससे प्रत्याशी को सफलता भी मिल सकती है। पर, लगातार तीसरी बार एक ही चेहरे को उतारे जाने से लोगों में थोड़ी नाराजगी भी है। श्रमिक ठेकेदार मनोज चौहान कहते हैं, यहां भाजपा-सपा में सीधी टक्कर है, ऐसे में परिणाम कुछ भी हो सकता है।
सकलडीहा विधानसभा क्षेत्र के दानपुरा निवासी मिठाई लाल यादव का मानना है कि भले ही विकास कार्य कुछ कम दिखते हों, मगर मोदी के नाम का फायदा भाजपा प्रत्याशी को मिल सकता है। मुगलसराय विधानसभा क्षेत्र के मधुपुर गांव के पंकज सिह भी कुछ ऐसी ही दलीलें देते हैं। वह कहते हैं भले ही प्रत्याशी से कुछ नाराजगी हो, पर लोग मोदी को नहीं छोड़ना चाहते।
चंदौली के भुआल सिह कहते हैं, लोकसभा क्षेत्र में शामिल वाराणसी जिले के अजगरा और शिवपुर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को अच्छा खासा वोट मिला था। पर, इस बार सपा और बसपा के प्रत्याशी शिवपुर से हैं। लिहाजा टक्कर कड़ी है। वैसे इंडी गठबंधन में सपा से टिकट के दावेदार रहे दो नेता अभी तक खामोश हैं, जिसे भाजपा अपने लाभ के तौर पर देख रही है।
माधोपुर के मनोज श्रीवास्तव कहते हैं, यहां जातीय समीकरण भी हावी रहता है। मोदी-योगी का असर भी है। क्षत्रिय मतदाता निर्णायक रह सकते हैं। मंगल सराय के एडवोकेट नारद केसरी बताते हैं कि पिछले चुनाव में चौहान समुदाय के प्रत्याशी ने टक्कर दी थी। शायद चौहान समाज को साधने के लिए ही भाजपा ने इस समाज के नेता दारा सिह चौहान को कुछ दिन पहले ही एमएलसी बनाया है। सैयदराजा विधानसभा के नौबतपुर गांव की चित्रा का मानना है कि राशन, गैस सिलिडर, आवास मिलने जैसी योजनाओं का भी लाभ भाजपा प्रत्याशी को मिल सकता है। सकलडीहा विधानसभा क्षेत्र के तारा जीवन निवासी राजन के अनुसार बहुत से लोग मोदी-योगी को देखकर ही मतदान करते हैं। चौरहट ग्राम पंचायत के ग्राम प्रधान वसीम खान कहते हैं, यहां यादव-मुस्लिम फैक्टर है, जो सपा के ही साथ है। मोदी-योगी फैक्टर का यहां मिलाजुला असर ही दिख रहा है।
चार दशक से नहीं खुला कांग्रेस का खाता
चंदौली सीट पर कांग्रेस को 1984 के बाद जीत नसीब नहीं हो पाई। भाजपा ने 1991 में यहां अपना खाता खोला था। 1996 और 1998 में भी कब्जा बरकरार रखते हुए हैट्रिक बनाई। वर्ष 1999 में साइकिल पर सवार होकर आए जवाहर लाल जायसवाल सांसद बने। वहीं, 2००4 में बसपा जीती और कैलाश नाथ यादव सांसद चुने गए। वर्ष 2००9 में सपा ने दोबारा सीट पर कब्जा किया। इस बार रामकिशुन यादव ने जीत दर्ज की। वर्ष 2०14 में मोदी लहर का जबरदस्त असर इस सीट पर दिखा और भाजपा ने 16 साल बाद वापसी की। डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने 2०14 में 42.23 प्रतिशत, तो 2०19 में 47.०7 प्रतिशत वोट शेयर के साथ जीत दर्ज की।
वाराणसी से सटी चंदौली लोकसभा सीट का मिजाज अलग है। पिछले दो चुनावों में पीएम नरेंद्र मोदी का इस सीट पर जबरदस्त असर दिखा था। इस बार भी वादों, दावों और मुद्दों से इतर इस सीट पर भाजपा को जीत के लिए मोदी का ही सहारा है।
भाजपा प्रत्याशी डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय अपनी तीसरी जीत के प्रति आश्वस्त दिख रहे हैं, जबकि सपा प्रत्याशी वीरेंद्र सिह उनको कड़ी टक्कर दे रहे हैं। बसपा ने सतेंद्र मौर्य को मैदान में उतारकर समीकरणों को दिलचस्प बनाने की कोशिश की है। बहरहाल यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच ही है।
वर्ष 2०19 में यहां से भाजपा के सांसद एवं मंत्री डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय कड़े मुकाबले में महज 13,959 वोटों के अंतर से जीते थे। सपा के संजय सिह चौहान दूसरे स्थान पर रहे थे। पांडेय हैट्रिक लगाने और इतिहास दोहराने को बेताब हैं। भाजपा 1991, 1996 व 1998 में लगातार जीत हासिल कर एक हैट्रिक बना चुकी है।
चंदौली क्षेत्र का विकास ही यहां बड़ा चुनावी मुद्दा है। विपक्षी दलों के नेता वाराणसी से सटे होने के बावजूद चंदौली में अपेक्षाकृत कम विकास होने पर लगातार सवाल उठा रहे हैं। बेरोजगारी भी इस बार बड़े मुद्दों में शामिल है। चंदौली जिला मुख्यालय का अपेक्षित विकास नहीं हो पाने, भारी उद्योग मंत्री होने के बावजूद कोई बड़ा उद्योग स्थापित नहीं होने, चंदौली पॉलीटेक्निक की बदहाली आदि को लेकर सवाल भी यहां की फिजा में तैर रहे हैं। समीकरणों की बात की जाए तो लोकसभा क्षेत्र की पांच विधानसभा सीटों में से मुगलसराय, सैयद राजा, अजगरा और शिवपुर पर भाजपा का कब्जा है। सिर्फ सकलडीहा में सपा का विधायक है।
जातीय घमासन में दौड़ेगा ‘मोदी का करिश्माई घोड़ा’
यहां के चुनाव में मतदाताओं के बीच मोदी कुछ इस तरह रच बस गए है, उन्हें दुसरा कुछ सूझता ही नहीं। घनघोर विचारधारा वालों की अपनी मजबूरी है, लेकिन सच सभी जानते हैं। चंदौली में लड़ाई भाजपा से है, मुकाबले में सपा-कांग्रेस ही दिखती है। यहां से सूबे के पूर्व भाजपा अध्यक्ष एवं सांसद और केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री डॉ महेंद्रनाथ पांडेय जीत की हैट्रिक लगाने के लिए बेताब है। उनकी इस हैट्रिक को रोकने के लिए इंडी गठंधन के कांग्रेस-सपा प्रत्याशी एवं पूर्व मंत्री वीरेन्द्र सिह ने पूरी ताकत झोक रखी है। वे मुस्लिम, दलित, यादव समेत अन्य जातियों के अलावा महंगाई, बेरोजगारी सहित क्षेत्र के पिछड़ेपन को मुद्दा बनाते हुए उम्मीद लगाएं बैठे है कि यही उनका बेड़ापार करेंगे। लेकिन सच यह है कि चंदौली में भी श्रीराम मंदिर, 37०, राष्ट्रवाद, विकास व मोदी लहर की बहती बयार में जात-पात गौढ़ हो चला है। बाजी किसके हाथ लगेगी, ये तो चुनाव परिणाम बतायेंगे, लेकिन लड़ाई कांटे की होगी, इसमें कोई संशय नहीं। मुगलसराय के राजेश यादव कहते है बड़ी उम्मीद से 2०14 एवं 2०19 में महेन्द्र को जीताया गया था पर हुआ कुछ नहीं। विकास तो दूर वे मौके पर पहुंचते ही नहीं। क्षेत्र की जनता तो उनका नाम ही रख दिया है ‘लेटलतीफा गुरु’। जबकि उन्हीं के बगल में खड़े रामप्रवेश जायसवाल कहते है कुछ भी हो वोट इस बार भी मोदी के नाम पर ही पड़ेगा, प्रत्याशी कौन है, मायने नहीं रखता। कहते है चंदौली का क्षत्रिय मतदाता जिस और रुख कर देता है, उसी पार्टी के उम्मीदवार की जीत होती है. 2०19 में बीजेपी ने अंतिम समय में बसपा के पूर्व एमएलसी विनीत सिह को बीजेपी में शामिल कर इन वोटों में अपनी सेंध लगाने का मास्टरस्ट्रोक खेला था। इस बार भी पार्टी से नाराज चल रही मुगलसराय से 2०17 में विधायक रही साधना सिह को राज्यसभा सांसद बनाकर ठाकुर मतों को मैनेज करने के लिए भाजपा द्बारा बड़ा दांव चला गया है। यहां जिक्र करना जरुरी है कि 2०17 में साधना सिह का टिकट काटकर रमेश जायसवाल को लड़ाया गया था। इसके अलावा सपा के पूर्व सांसद रामकिशुन की जगह वीरेन्द्र सिह को लड़ाया जाने से यादव वोटों की नाराजगी का भी फायदा बीजेपी को मिल सकता है ।
सुरेश गांधी
‘धान का कटोरा’ के नाम से विख्यात चंदौली पहले वाराणसी का ही हिस्सा था। इसे तहसील का दर्ज़ा प्राप्त था। यहां विश्वप्रसिद्ध पश्चिम वाहिनी मेला लगता था। मान्यता है कि केवल दो ही जगह गंगा पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। पहला इलाहाबाद दूसरा बलुआ है, जो चंदौली में मौजूद है। सत्ताइस बरस पहले 1997 में मुख्यमंत्री रही मायावती ने इसे जिले का दर्ज़ा यहकर प्रदान किया था कि जल्द ही अन्य बड़े शहरों की तरह चंदौली में भी विकास की गंगा बहेगी। उनके कार्यकाल में विकास की गंगा तो नहीं बही, लेकिन योगीकाल में जरुर बहती दिखने लगी है। भव्य जिला कलेक्ट्रेट में प्रशासनिक अमला लोगांं की सुनवाई करने लगा है। यह अलग बात है कि न्यायालय आज भी तहसील परिसर में ही चलता है और डीएम एसपी आवास उधार के पालिटेक्निक गेस्ट हाउस में ही बैठकर जनता की समस्याओ को सुलझाने के लिए विवश है। 65 फीसदी कार्यालय अभी भी निजी भवनों में किराए पर चल रहे हैं। जिले में पांच तहसीले हैं। नौगढ़, सकलडीहा, चंदौली, चकिया और मुगलसराय। जिस चंदौली तहसील को लेकर जिला बनाया गया, वहां जिला मुख्यालय पर तो रोडवेज का बस डिपो तक नहीं है। मतलब साफ है चंदौली आज भी पिछड़ेपन से उबरा नहीं है। यहां के ज्यादातर निवासी खेती पर निर्भर हैं, लेकिन सिचाई के पर्याप्त साधन नहीं है। बुनियादी सुविधाओं का हाल भी बद्दतर है इसलिए क्षेत्रवासियों की नाराजगी जनप्रतिनिधियों के प्रति देखने को मिलती है। हालांकि, सिचाई के साधन से लेकर पिछड़ेपन को दूर करने को चुनाव में विकास के मुद्दे पर जातीय समीकरण कहीं ज्यादा हावी है। तकरीबन 25 प्रतिशत वंचित समाज के साथ ही क्षेत्र में पिछड़े वर्ग से यादव, राजभर, निषाद-बिद, पटेल-कुर्मी, मौर्य-कुशवाहा बिरादरी का दबदबा है। ब्राह्मण और क्षत्रियों के भी ठीक-ठाक वोट हैं। मुस्लिम आबादी 1० प्रतिशत से भी कम है।
फिलहाल, भाजपा प्रत्याशी डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय अपनी तीसरी जीत के प्रति आश्वस्त दिख रहे हैं, जबकि सपा प्रत्याशी वीरेंद्र सिह उनको कड़ी टक्कर दे रहे हैं। बसपा ने सतेंद्र मौर्य को मैदान में उतारकर समीकरणों को दिलचस्प बनाने की कोशिश की है। बहरहाल यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच ही है। डॉ महेंद्रनाथ पांडेय 2०14 और 2०19 में चंदौली लोकसभा सीट पर जीत हासिल कर चुके है। कयास लगाया जा रहा है कि भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए सपा ने क्षत्रिय जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। हालांकि डॉ महेंद्र नाथ पांडेय का दावा है कि उनके सामने कोई भी प्रत्याशी चुनौती नहीं दे रहा है. जनता की अपेक्षाओं पर संपूर्ण समाज का आशीर्वाद है। कहते है चंदौली का क्षत्रिय मतदाता जिस और रुख कर देता है, उसी पार्टी के उम्मीदवार की जीत होती है. 2०19 में बीजेपी ने अंतिम समय में बसपा के पूर्व एमएलसी विनीत सिह को बीजेपी में शामिल कर इन वोटों में अपनी सेंध लगाने का मास्टरस्ट्रोक खेला था। इस बार भी पार्टी से नाराज चल रही मुगलसराय से 2०17 में विधायक रही साधना सिह को राज्यसभा सांसद बनाकर ठाकुर मतों को मैनेज करने के लिए भाजपा द्बारा बड़ा दांव चला गया है। यहां जिक्र करना जरुरी है कि 2०17 में साधना सिह का टिकट काटकर रमेश जायसवाल को लड़ाया गया था। इसके अलावा सपा के पूर्व सांसद रामकिशुन की जगह वीरेन्द्र सिह को लड़ाया जाने से यादव वोटों की नाराजगी का भी फायदा बीजेपी को मिल सकता है।
चंदौली लोकसभा सीट की पांच विधानसभाओं में मुगलसराय, सकलडीहा, सैयदराजा के साथ ही वाराणसी जिले की शिवपुर और सुरक्षित सीट अजगरा है। वर्तमान में चार विधानसभा सीटों पर भाजपा और सकलडीहा पर सपा का कब्जा है। खास यह है कि अपना दल (एस) के साथ ही सुभासपा, निषाद पार्टी के भी एनडीए में शामिल होने और जनवादी पार्टी के संजय चौहान का समर्थन मिलने से इस बार जहां भाजपा जातीय समीकरण साधने में कामयाब दिख रही है, वहीं मोदी-योगी सरकार द्बारा बड़े पैमाने पर कराए गए विकास कार्यों का प्रभाव खासतौर से शिवपुर व अजगरा सीट पर है। राम मंदिर का निर्माण व मुफ्त अनाज जैसी योजनाओं का असर तो पूरे संसदीय क्षेत्र में है। बात विकास की करें तो जिले में बनने वाला गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज राजीनीतिक खींचातानी में मिर्ज़ापुर चला गया. चंदौली में ट्रॉमा सेंटर की आधारशिला तो काफी पहले रखी जा चुकी है लेकिन उसका निर्माण कार्य कब शुरू होगा इसकी कोई तारीख अब तक तय नहीं हो सकी.
यह अलग बात है कि पड़ाव में गन्ना शोध संस्थान की जमीन पर पंडित दीनदयाल म्यूजियम उंची मूर्ति लोकों के आकषर्ण का केन्द्र है और उन्हीं के नाम मुगलसराय का नाम बदला गया। चंदौली को धान का कटोरा भी कहा जाता है क्योंकि यहां अच्छी गुणवत्ता वाला चावल प्रचुर मात्रा में पैदा होता है। वाराणसी से नजदीक होने के कारण चंदौली सीट वीआईपी सीट मानी जाती है. चुनाव हों या न हों, यहां का सियासी पारा पूरे साल गर्म रहता है।देखा जाएं तो चंदौली लोकसभा सीट भले ही वाराणसी लोकसभा के पड़ोस में है लेकिन विकास के मामले में दोनों सीटों में काफी अंतर है. पिछले कुछ वर्षों से यहां विकास की गति तो तेज दिख रही है लेकिन बुनियादी ढांचा इतना कमजोर है कि हर क्षेत्र में समान रूप से विकास नहीं दिख रहा है। सभी विधानसभाओं में विकास का पैमाना भी अलग-अलग दिखता है.
इस लोकसभा सीट की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यहां विकास होने से पहले ही राजनीति होने लगती है. सिर्फ चुनाव के दौरान ही नहीं बल्कि पूरे साल मतदाता जातिगत भेदभाव में फंसे रहते हैं। राजनीतिक दल भी जानते हैं कि यहां विकास से ज्यादा जातीय समीकरण साधने से जीत पक्की है। और इसके कारण इस क्षेत्र में विकास उस गति से नहीं हो सका, जिसकी आवश्यकता थी। वैसे, कई सालों से केंद्रीय योजनाओं के जरिए इस इलाके की तस्वीर बदलने की कोशिश की जा रही है. चंदौली में जातिवाद और क्षेत्रवाद के आगे विकास के मुद्दे फीके पड़ गए हैं. इस संसदीय क्षेत्र में अगड़े-पिछड़े के नाम पर कई पार्टियां राजनीतिक रोटियां सेकती रही हैं. लेकिन इस क्षेत्र की समस्याओं पर ध्यान देना जन प्रतिनिधियों के लिए सार्थक नहीं है. यहां से जीतने वाले सांसद का सम्मान इस बात पर नहीं होता कि वह कितना काम करता है, बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि वह जाति कार्ड में कितना फिट बैठता है। इसीलिए यहां कई समस्याएं हैं जिन पर वर्षों से ध्यान देने की जरूरत है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि सांसद का काम फिलहाल क्षेत्र में औसत ही है. सांसद का फोकस हमेशा क्षेत्र में विकास पर रहता है, लेकिन और अधिक फोकस की जरूरत है. मतलब साफ है कि इस लोकसभा की जनता सांसद के काम से न तो खुश है और न ही नाराज. वहीं इस लोकसभा सीट के लोग अपने सांसद को क्षेत्र में और अधिक सक्रिय देखना चाहते हैं. क्योंकि यहां के लोगों को अपने सांसद से काफी उम्मीदें हैं.
जीतेन्द्र मिश्रा का कहते है मोदी सरकार ने काम किया है। सड़के लहक दहक रही है। सांसद निधि से शत प्रतिशत काम हुआ है। लोगों को मकान शौचालय, उज्जवला योजना के तहत गैसे कनेक्शन सबकुछ तो मिला है। विरोधी कुछ भी कहें लेकिन जीतेगे महेन्द्रनाथ पांडेय ही। सैयदराजा के जमाल अंसारी व सकलडीहा के दलजीत यादव कहते है बरसो से यहां फलाईओवर की मांग है, अगर पूरी हो तो कम से कम इस चिलखती धूप में पसीना तो न बहाना पड़े। लेकिन वोट तो वहीं के मिलेगा जो हमरे देश के जवानों के लिए कुछ कर रहा है। वैसे भी चुनाव में राष्ट्रीय नेताओं और मुद्दों पर ही वोट डाले जायेंगे। चौबेपुर के लालजी मौर्या कहते है खेती के खाद व बीज जैसी हर छोटी-छोटी जरूरत के लिए तो बनारस जाना पड़ता है। बेरोजगारी की समस्या यहां का एक अहम मुद्दा है। औद्योगिक क्षेत्र के रुप में रामनगर तो है लेकिन एक भी बड़ा उद्योग नहीं है, जहां स्थानीय युवाओं को रोजगार मिल सके। जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है तो उसे इस गठबंधन के दौर में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मदन चौरसिया कहते है वोटिग के समय विकास जैसे मुद्दे गौण हो जाते है। लोग अपनी जाति का ताना बाना बुनने लगते है। जो जिस जाति का होता है माना जाता है उसे उसकी सहयोगी जातियां सपोर्ट करती है। लेकिन यहां की मुख्य समस्या सिचाई के लिए पानी, जाम को देखते हुए ओवरब्रिज स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट बड़ा मुद्दा है। चंदौली की रेंगती यातायात, अवैध कब्जे यानी कच्ची बस्तियां और पानी का बिगड़ा सिस्टम याद दिलाता है कि यदि स्मार्ट सीटी में चयन होता तो करोड़ों का बजट कुछ सुधार कर सकता था।
जावेद अख्तर बताते है कि चुनाव में हर बार उन्हें यही झुनझुना पकड़ा दिया जाता है कि सरकार बनते ही चंदौली को भी स्मार्ट सीटी में शामिल किया जायेगा। लेकिन हालात फिर वही रह जाते है। ”सबका साथ, सबका विकास’’ एक समावेशी विकास है, जो सभी क्षेत्रों और सभी लोगों तक पहुंचा है। यह उनका करिश्मा ही है कि स्वच्छ भारत अभियान जैसे उनके विभिन्न पहलों में लोग जुड़ते चले जाते हैं। देश की संस्कृति को वह बदल रहे हैं। राष्ट्र निर्माण के विमर्श में कभी किसी ने स्वच्छता, साफ-सफाई और बुनियादी चीजों को सरकार के कार्यक्रम के रूप में नहीं देखा था। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में ये दस वर्ष देश में विकास और सांस्कृतिक क्रांति से कम नहीं रहे हैं और वर्ष 2०14 के बाद प्रगति के लगातारा नए आयाम लिखे जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले दस वर्ष भारतीय इतिहास में यानी आजादी के पहले भी और आजादी के बाद भी सबसे सुदृढ़, परिवर्तनकारी और सकारात्मक रहे हैं। हम सब इतिहास का स्वर्णिम काल बनने के गवाह बन रहे हैं। अजगरा के मुर्दहाबाजार निवासी कौशलेन्द्र तिवारी कहते है कि महेन्द्र पाण्डेय को तो नहीं चाहते हैं, लेकन मोदी-योगी की मजबूरी में वह ‘कमल’ के साथ हैं।
कहते हैं कि भाजपा ने प्रत्याशी बदल दिया होता तो उसे कोई दिक्कत ही नहीं थी। जबकि नम्रता पटेल का कहना है कि न सांसद न विधायक, कोई यहां कुछ नहीं करते हैं फिर भी मोदी-योगी सरकार के काम को देखते हुए उन्हें ही जनता वोट देगी। कार सेवकों पर गोली चलवाने के लिए सपा को कोसते हुए रामअवध यादव कहते हैं कि चंदौली न सही, लेकिन राष्ट्र का भला तो है। सिद्धांत नहीं स्वार्थ में वीरेंद्र पार्टी बदलते रहे, जबकि बेदाग छवि के डॉ. पाण्डेय भाजपा के ही सिद्धांतों पर चलते रहे हैं। ऐसे में मुझे जाति देखनी होती तो योगी की देखेंगे।सकलडीहा के विक्रमादित्य दुबे कहते हैं कि न अस्पताल खुला है और न ही स्टेडियम यहां बना है। वर्षों से चंदौली-गाजीपुर हाईवे का काम भी लटका है। मुगलसराय राजेश जायसवाल का कहना है कि राशन, गैस सिलिडर, आवास मिलने जैसी योजनाओं का भी लाभ भाजपा प्रत्याशी को मिल सकता है। बहुत से लोग मोदी-योगी को देखकर ही मतदान करते हैं।