उत्तर प्रदेश के सातवें चरण की वाराणसी लोकसभा का हाल काशी में पीएम मोदी की लगेगी जीत की हैट्रिक,चुनौती बस जीत के अंतर की

1991 में देशभर में चले राम मंदिर आंदोलन के बाद काशी भी भगवा रंग में रग गया. 1991 के बाद हुए यहां पर हुए चुनाव में महज एक बार 2००4 में कांग्रेस पार्टी जीत दर्ज कर सकी है. जबकि 2००9 से 2०19 तक बीजेपी यहां हैट्रिक लगा चुकी है. अब जीत का चौका मारने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी तीसरी बार मैदान में हैं.
शिव की नगरी वाराणसी. बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस को काशी भी कहा जाता है. ये दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है. वाराणसी के बारे में अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने लिखा है’ वाराणसी इतिहास से भी अधिक प्राचीन है, परंपराओं से पुराना है और किवदंतियों से भी प्राचीन है और जब इन सबको मिला दें तो उस संग्रह से भी यह दोगुना प्राचीन हो जाता है. शिव-शक्ति के दम-दम और बाबा के बम-बम वाले शहर वाराणसी में हिन्दुओं के बाबा विश्वनाथ विराजमान हैं तो वहीं यह शहर मुस्लिम कारीगरों के हुनर के लिए विश्वविख्यात है. इसे दीपों का शहर, ज्ञान नगरी, बौद्ध और जैन धर्म को लेकर भी इसे पवित्र स्थल माना जाता है.
बात राजनीति की करें तो यह पिछले 1० सालों से भारत की राजनीति का केंद्र बिदु बन गया है. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह संसदीय क्षेत्र है. वाराणसी की राजनीति से न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि इससे पूरा देश प्रभावित होता है.
तीसरी बार मैदान में मोदी
नरेंद्र दामोदर दास मोदी वाराणसी लोकसभा सीट के सांसद हैं. वो यहां से लगातार दो बार जीतकर संसद पहुंचे. वो संसद जहां पहली बार साल 2०14 में जीत दर्ज कर पहुंचने के बाद उसी की सीढ़ियों पर मोदी ने मत्था टेका था. नरेंद्र मोदी ने साल 2०14 में आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविद केजरीवाल को 371,784 वोटों के भारी अंतर से हराया था. तब नरेंद्र मोदी ने को 581,०22 वोट मिले थे जबकि अरविद केजरीवाल को 2०9,238 वोट. तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के उम्मीदवार अजय राय को महज 75,614 वोट ही मिले थे.
2०19 में नरेंद्र मोदी दूसरी बार सांसद बने. इस बार उन्होंने 2०14 के मुकाबले और बड़ी जीत दर्ज की. पीएम मोदी ने सपा की शालिनी यादव को 479,5०5 वोटों हराया था. नरेंद्र मोदी को 674,664 जबकि सपा उम्मीदवार को 195,159 वोट मिले थे जबकि तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय को 152,548 वोट मिले.
राजनीतिक इतिहास
वाराणसी का पहला सांसद बनने का गौरव हासिल किया था ठाकुर रघुनाथ सिह ने. रघुनाथ सिह ने 1952 में हुए पहले चुनाव में यहां से जीत की थी. इसके बाद वह 1957 और 1962 में भी यहां से लोकसभा के लिए चुने गए. वह लगातार तीन बार यहां से सांसद रहे हैं. फिर 1967 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सत्यनारायण सिह जीते. 1971 के चुनाव में कांग्रेस के राजाराम शास्त्री, 1977 में जनता पार्टी के चंद्रशेखर, 198० और 1984 में कांग्रेस पार्टी के कमलापति त्रिपाठी. 1989 में जनता दल के अनिल शास्त्री यहां के सांसद बने.
भगवा रंग में रंगी काशी
इसके बाद 1991, 1996, 1998 और 1999 में यहां लगातार चार बार बीजेपी ने जीत दर्ज की. 2००4 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और राजेश कुमार मिश्र वाराणसी के सांसद बने. इसके बाद 2००9 से 2०19 तक बीजेपी लगातार जीत दर्ज कर रही है. 2००9 में यहां से मुरली मनोहर जोशी सांसद बने थे. इसके बाद 2०14 और 2०19 में नरेद्र दामोदर दास मोदी.
काशी का वोट गणित
वाराणसी संसदीय क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र- वाराणसी उत्तर, वाराणसी दक्षिण, वाराणसी कैंट, सेवापुरी और रोहनिया शामिल है. वाराणसी में कुल 18,56,791 मतदाता है. इनमें पुरुष मतदाता 8,29,56० जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 1०,27,113 है, वहीं थर्ड जेंडर वोटर्स 118 हैं. वाराणसी सीट ब्राह्मण-भूमिहार बहुल है. यहां तीन लाख ब्राह्मण, डेढ़ लाख भूमिहार, 2 लाख से ज्यादा कुर्मी, 2 लाख से ज्यादा वैश्य, 3 लाख से ज्यादा गैर यादव ओबीसी, एक लाख से ज्यादा अनुसूचित जाति, तीन लाख मुस्लिम और एक लाख यादव वोटर्स हैं.
तेजी से बदल रहा शहर
वाराणसी देश के सबसे तेजी से विकसित हो रहे शहरों में से एक है. 2०14 के बाद इस शहर में तेजी से विकास हो रहा है. ज्यादातर काशी वासी इस विकास से खुश नजर आते हैं वहीं कुछ लोग काशी की पुरानी पहचान को समाप्त करने की बात करते हैं. ज्ञानवापी भी एक बड़ा मुद्दा है. बीजेपी ने नरेंद्र मोदी की जीत की हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में उतारा है तो वहीं बीजेपी विरोधी दलों ने अभी अपने उम्मीदवार तय नहीं किए हैं.
कलाकारों-साहित्यकारों की ठौर है काशी
काशी कलाकारों-साहित्यकारों का ठौर है. फक्कड़ लोगों का ठिकाना रहा है. कबीर, रविदास, मुंशी प्रेमचंद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, जयशंकर प्रसाद, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया और उस्ताद बिस्मिल्लाह खां काशी के ही तो थे. ये काशी के तो काशी इनकी पहचान है. इसके साथ ही वाराणसी का असी घाट, मणिकर्णिका घाट, दशाश्वमेध घाट, ललिता घाट, गंगा घाट, सारनाथ और श्री काशी विश्वनाथ मंदिर यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं. वाराणसी साड़ियों को देश को यहां के बुनकरों का उपहार कहा जाता है.
हार की हैट्रिक लगा चुके अजय राय के काशी में इस बार ‘अच्छे नंबर’ की उम्मीद
वाराणसी सीट पर हार की हैट्रिक लगा चुके कांग्रेस के अजय राय चौथी बार किस्मत आजमा रहे हैं. पीएम मोदी के खिलाफ दो बार और वाराणसी लोकसभा सीट पर तीन बार चुनाव लड़ चुके अजय राय हर बार तीसरे नंबर पर रहे थे, लेकिन इस बार उनके ‘नंबर अच्छे’ आ सकते हैं. इसकी वजह है कि सपा-कांग्रेस का गठबंधन और इंडिया गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार हैं. ऐसे में इस बार अजय राय का सीधा मुकाबला पीएम मोदी से है.
अजय राय ने अपना सियासी सफर बीजेपी से शुरू किया था. एबीवीपी से लेकर संघ तक से जुड़े रहे और 9० के दशक में राम मंदिर आंदोलन का हिस्सा रहे. बीजेपी में रहते हुए अजय राय तीन बार विधायक रहे. इसके बाद 2००9 में बीजेपी छोड़कर सपा का दामन थाम लिया और 2०12 में कांग्रेस में शामिल हो गए. सपा से लेकर कांग्रेस में रहते हुए वाराणसी लोकसभा सीट से किस्मत आजमा रहे हैं. अजय राय इन दिनों उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं और पीएम मोदी के खिलाफ वाराणसी से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं, लेकिन पहली बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. 2००9 से लगातार वाराणसी सीट से अजय राय किस्मत आजमा रहे हैं, लेकिन जीत तो दूर की बात है, तीसरे से नंबर दो पर भी नहीं आ सके.
2००9 में अजय राय पहली बार उतरे : साल 2००9 के लोकसभा चुनाव में अजय राय बीजेपी से टिकट मांग रहे थे, लेकिन डॉ मुरली मनोहर जोशी के उम्मीदवार बनाए जाने के चलते उन्होंने पार्टी को छोड़ दिया. बीजेपी से अलग होकर समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया और वारसाणी से चुनावी मैदान में उतर गए. 2००9 में वाराणसी सीट पर बीजेपी से मुरली मनोहर जोशी, सपा से अजय राय और बसपा से मुख्तार अंसारी के बीच मुकाबला हुआ था. मुरली मनोहर जोशी को 2०3122 वोट मिले थे तो मुख्तार अंसारी को 18,591 वोट हासिल हुआ था. अजय राय 123874 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे थे. यह चुनाव मुरली मनोहर जोशी ने करीब 18 हजार से मुख्तार अंसारी को हराया था.
2०14 में अजय राय की जमानत जब्त : अजय राय दूसरी वाराणसी के 2०14 के लोकसभा चुनाव में उतरे. इस बार अजय राय कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में थे और उनका मुकाबला बीजेपी के वरिष्ठ नेता और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री अरविद केजरीवाल से था. यह चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल बन गया था. नरेंद्र मोदी को 581,०22 वोट मिले थे तो अरविद केजरीवाल को 2०9,238 वोट मिले जबकि अजय राय 75,614 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे. नरेंद्र मोदी ने 371784 वोट से जीत हासिल की थी और अजय राय अपनी जमानत तक नहीं बचा सके थे.
अजय राय ने लगाई हार की हैट्रिक : 2०19 में अजय राय एक बार फिर से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर वाराणसी लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे. इस बार भी उनका मुकाबला पीएम मोदी और सपा-बसपा की संयुक्त प्रत्याशी शालिनी यादव से हुआ. पीएम मोदी को 674,664 वोट मिले थे तो सपा की शालिनी यादव को 195,159 वोट मिले और कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय को 152,548 वोट हासिल हुए थे. पीएम मोदी ने 479,5०5 वोट से जीत दर्ज किया था जबकि अजय राय डेढ़ लाख वोट पाने के बाद भी तीसरे नंबर पर रहे थे. तीसरी बार भी अजय राय तीसरे नंबर से आगे नहीं बढ़ सके. इस चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ उन्हें 5,22,116 वोट से करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी.
अजय राय चौथी बार चुनावी मैदान में : वाराणसी लोकसभा सीट पर हार की हैट्रिक लगा चुके अजय राय चौथी बार चुनावी मैदान में है. अजय राय पिछले तीन लोकसभा चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे थे, लेकिन इस बार की स्थिति 2००9, 2०14 और 2०19 के चुनाव से अलग है. पिछले तीन चुनाव में वाराणसी सीट पर अजय राय मुख्य मुकाबले में नहीं थे, लेकिन इस बार मामला अलग है. 2०24 के चुनाव में वाराणसी सीट पर बीजेपी से नरेंद्र मोदी, कांग्रेस से अजय राय और बसपा से अतहर लारी मैदान में है, लेकिन चुनाव पीएम मोदी बनाम अजय राय के बीच होता दिख रहा है. अजय राय इंडिया गठबंधन से हैं, जिसके चलते सपा से लेकर आम आदमी पार्टी का तक समर्थन है.
अजय राय का वाराणसी सीट पर अपना एक वोटबैंक है, जो पिछले तीन चुनाव से साफ दिख रहा है. इस बार इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी होने के चलते अजय राय को सपा भी पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ा रही है. प्रिंयका गांधी के साथ सपा सांसद डिपल यादव ने अजय राय के समर्थन में रोड शो किया तो राहुल गांधी के साथ सपा प्रमुख अखिलेश यादव मंगलवार को जनसभा करने पहुंच रहे हैं. इस तरह कांग्रेस, सपा सहित इंडिया गठबंधन के सभी दल वाराणसी सीट पर अजय राय के समर्थन में वोट मांग रहे हैं. इंडिया गठबंधन प्रत्याशी अजय राय का मानना है कि वाराणसी की जनता उनके साथ मजबूती से खड़ी है और इस लोकसभा चुनाव में भी अजय राय का समर्थन करेगी. वह स्थानीय चेहरे के तौर पर जनता के बीच रहते हैं.
इस बार लोकसभा चुनाव का समीकरण बदला हुआ है. बसपा प्रत्याशी अपना असर नहीं छोड़ पा रहे हैं. अजय राय का वाराणसी में अपना सियासी आधार है. ऐसे में विपक्ष का वोट अगर अजय राय के पक्ष में एकजुट हो जाता हैं तो फिर उनकी स्थिति बेहतर हो जाएगी. 2० साल में पहली बार अजय राय वाराणसी में मुख्य मुकाबले में खड़े नजर आ रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि अजय राय को अच्छे वोट मिल सकते हैं.
पीएम मोदी से पहले ये मुख्यमंत्री भी रहे यहां से सांसद, ऐसा है वाराणसी सीट का सियासी इतिहास
न मुझे किसे ने भेजा है, न मैं यहां आया हूं, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया३2०14 के लोकसभा चुनाव के दौरान वाराणसी लोकसभा सीट पर नामांकन करने करने पहुंचे भारतीय जनता पार्टी उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ये बातें कही थीं। यहां से जीतकर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। पीएम मोदी लगातार दो बार वाराणसी सीट से जीत दर्ज कर चुके हैं। वाराणसी लोकसभा सीट भी कई मायनों में खास है।
कभी कांग्रेस का गढ़ रही यह सीट लंबे समय ये भाजपा के पास है। वाराणसी सीट का सियासी गणित कैसा है? इस सीट का इतिहास क्या कहता है? अब तक जितने लोकसभा चुनाव हुए उसमें यहां कब क्या हुआ? कैसे वाराणसी कांग्रेस के गढ़ से भाजपा के गढ़ में बदल गई। कभी लेफ्ट जहां जीतता था वहां राइट ने कब दस्तक दी। आइये इन सभी सवाल के जवाब जानने की कोशिश करते हैं। पौराणिक रूप से वाराणसी संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक है। हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में इसकी गिनती होती है। वारणसी को ‘बनारस’ और ‘काशी’ भी कहते हैं। वाराणसी की संस्कृति का श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर और गंगा नदी से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है।
वापस वाराणसी लोकसभा सीट के सियासी इतिहास की ओर लौटते हैं। साल 1957 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी लोकसभा सीट अस्तित्व में आई। 1951-52 में जब पहले आम चुनाव हुए थे तब वाराणसी जिले में बनारस पूर्व, बनारस पश्चिम और बनारस मध्य नाम से तीन लोकसभा सीटें थीं। 1957 में वाराणसी सीट अस्तित्व में आई।
यहां हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली। कांग्रेस की तरफ से उतरे रघुनाथ सिह ने निर्दलीय उम्मीदवार शिवमंगल राम को 71,926 वोट से शिकस्त दी थी। 1962 के चुनाव में भी कांग्रेस के रघुनाथ सिह फिर से जीतने में सफल रहे। उन्होंने इस बार जनसंघ उम्मीदवार रघुवीर को 45,9०7 वोटों से हराया।
1967 का लोकसभा चुनाव वो पहला लोकसभा चुनाव था जब वाराणसी सीट पर गैर कांग्रेस उम्मीदवार को जीत मिली। उस चुनाव में यहां से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने जीत दर्ज की। भाकपा उम्मीदवार एसएन सिह ने कांग्रेस के आर. सिह को 18,167 मतों से हरा दिया। हालांकि, 1971 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने वाराणसी सीट पर जीत दर्ज की। पार्टी की तरफ से उतरे जाने-माने शिक्षाविद राजा राम शास्त्री ने यहां पार्टी को जीत दिलाई। शास्त्री ने भारतीय जनसंघ के कमला प्रसाद सिह को 52,941 वोट से हराया।
आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस ने गंवाई सीट
1971 के चुनाव के बाद और अगले चुनाव से पहले देश ने आपातकाल का दौर देखा। आपातकाल खत्म हुआ तो 1977 में फिर से चुनाव हुए। जनता लहर में कांग्रेस बुरी तरह हारी। वाराणसी सीट भी पार्टी ने गंवा दी। यहां कांग्रेस के राजा राम को भारतीय लोक दल के चंद्रशेखर ने 1,71,854 वोट से करारी हार झेलनी पड़ी।
198० के लोकसभा चुनाव एक बार फिर कांग्रेस ने वाराणसी सीट पर वापसी की। यहां कांग्रेस की तरफ से उतरे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने पार्टी को जीत दिलाई। उन्होंने जनता पार्टी (सेक्युलर) के प्रत्याशी राज नारायण के खिलाफ 24,735 मतों से जीत दर्ज की। 1984 में भी कांग्रेस इस सीट को बरकरार रखने में कामयाब रही। इस चुनाव में पार्टी के श्याम लाल यादव भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी प्रत्याशी ऊदल के मुकाबले 94,43० वोटों से जीते। 1989 के लोकसभा चुनाव भी कांग्रेस के हाथ से यह सीट निकल गई। इस बार जनता दल के अनिल शास्त्री ने कांग्रेस उम्मीदवार श्याम लाल यादव को 1,71,6०3 वोटों से हरा दिया।
भाजपा ने दी दस्तक और लगा दी जीत की हैट्रिक
साल 1991 के लोकसभा चुनाव में पहली बार वाराणसी सीट पर भाजपा को जीत मिली। भाजपा के शीश चंद्र दीक्षित ने माकपा के राजकिशोर को 4०,439 मतों से शिकस्त दी। तब से यह सीट भाजपा का गढ़ रही है। 1991 के बाद 1996 में भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल ने जीत दर्ज की। जायसवाल ने माकपा के राजकिशोर को 1,००,692 वोटों से हराया। 1998 में लोकसभा चुनाव में भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल ने लगातार दूसरी बार वाराणसी लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की। जायसवाल के खिलाफ माकपा से उतरे दीनानाथ सिह यादव को 1,51,946 वोटों से करारी हार मिली। 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल ने जीत की हैट्रिक लगाई। उन्होंने इस बार कांग्रेस के राजेश कुमार मिश्रा को 52,859 मतों से हराया।
कांग्रेस के लिए राजेश कुमार मिश्रा ने कराई वापसी
2००4 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी लोकसभा सीट पर 15 साल बाद कांग्रेस ने वापसी की। पिछले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर हारने वाले राजेश कुमार मिश्रा ने अबकी बार यहां जीत दर्ज की और भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल को जीत के सिलसिले को भी थाम दिया। राजेश मिश्रा यह चुनाव 57,44० मतों से जीते।
जब मुरली मनोहर जोशी ने मुख्तार अंसारी को हराया
साल 2००9 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी सीट एक बार फिर से देश की वीवीआईपी सीटों में शामिल हो गई। उस चुनाव में भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी यहां से मैदान में थे। उनके मुकाबले बसपा ने बाहुबली मुख्तार अंसारी को उतार दिया था। जब नतीजे आए तो करीबी मुकाबले में जोशी जीत दर्ज करने में सफल रहे। भाजपा इस चुनाव में 17,211 वोटों से जीत गई।
2०14 में वाराणसी से जीत के बाद प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी
अब बारी थी 2०14 के लोकसभा चुनाव की। चुनावों से पहले ही गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया। वहीं, जब चुनाव लड़ने की बारी आई तो नरेंद्र मोदी ने वडोदरा के साथ-साथ वाराणसी सीट से भी नामांकन किया। उधर मोदी के खिलाफ आम आदमी पार्टी से अरविद केजरीवाल तो कांग्रेस से अजय राय मैदान में थे। उस चुनाव में वाराणसी देश की सबसे चर्चित सीट बन गई।
इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के तौर पर नरेंद्र मोदी को 5,81,०22 वोट मिले। वहीं दूसरे स्थान पर रहे केजरीवाल के पक्ष में 2,०9,238 लोगों ने वोट किया। इस तरह से नरेंद्र मोदी 3,71,784 वोटों से चुनाव जीतने में सफल रहे। इसी जीत के साथ नरेंद्र मोदी संसद पहुंचे और देश के प्रधानमंत्री भी बने। प्रधानमंत्री मोदी को वडोदरा सीट पर भी जीत मिली, उन्होंने प्रतिनिधित्व के लिए वाराणसी को चुना।
वाराणसी से दूसरी बार नरेंद्र मोदी जीते और बने पीएम
अब बात करते हैं पिछले लोकसभा चुनाव की। 2०19 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उतरे। उनके सामने कांग्रेस ने अजय राय और सपा ने शालिनी यादव को उतारा। नतीजे एक बार फिर भाजपा के पक्ष में रहे और यहां प्रधानमंत्री ने सपा की शालिनी यादव को 4,79,5०5 मतों से बड़े अंतर से शिकस्त दी। इस चुनाव में नरेंद्र मोदी को 6,74,664 वोट, सपा उम्मीदवार शालिनी को 1,95,159 और कांग्रेस के अजय राय को 1,52,548 वोट मिले।
इस तरह से बतौर वाराणसी के सांसद नरेंद्र मोदी एक बार फिर संसद पहुंचे। वहीं भाजपा ने लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। वाराणसी सांसद नरेंद्र मोदी ने 3० मई 2०19 को लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इस बार यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या तीसरी बार यहां से उम्मीदवार बनेंगे।

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