दो टूक…अगर एग्जिट पोल सहीं साबित हुए तो उसके मायने

राजेश श्रीवास्तव

शनिवार शाम छह बजते ही सारे चैनलों में एग्जिट पोल को परोसने की मानो होड़ मच गयी। जैसा कि उम्मीद थी कि सभी ने भाजपा को मनमुताबिक सीटें भी परोसीं। लगभग सभी सर्वे में भाजपा का पिछली बार से अधिक सीटें मिलती हुई दिखायी गयी हैं। अगर यह सारे एग्जिट पोल के सर्वे सही साबित होते हैं तो इसका मतलब है कि दस साल के शासन काल के बावजूद पीएम मोदी की छवि में कोई डेंट नहीं लगा है। सारे मुद्दे गौण हैं। बेरोजगार खुश है उसे नौकरी नहीं चाहिए। किसान को उसकी फसल का दाम भी नहीं चाहिए। महिलाओं को उनका अपमान भी अब सालता नहीं है। रेवन्ना और बृजभूषण जैसे लोग भी जनता को पसंद हैं और दुराचारी भी अब किसी को बुरे नहीं लगते। संसद के सामने अपनी अस्मत बचाने को गुहार लगाती देश की महिला पहलवान देश की जनता को नाटक करती प्रतीत होती हैं। महंगाई कहीं नहीं हैं सिर्फ सोशल मीडिया पर है। जनता को कारखाने, फैक्टिàयां नहीं चाहिए।
उधर उत्तर प्रदेश को लेकर लोकसभा चुनाव के एग्जिट पोल रुझान सामने आ गए हैं। तमाम एग्जिट पोल एजेंसियों के परिणाम को देखकर एक बात का सहज अंदाजा लगाया जा रहा है कि पार्टी भारतीय जनता पार्टी को प्रदेश में बड़ी बढ़त मिल रही है। लोकसभा चुनाव के एग्जिट पोल परिणाम पर गौर करें तो पाएंगे कि भाजपा लोकसभा चुनाव 2०19 के परिणाम को पार करती दिख रही है। वहीं, कुछ एजेंसियां लोकसभा चुनाव 2०14 के परिणाम के पार भारी एनडीए को पहुंचाते दिख रही हैं। इस प्रकार के आंकड़े साफ करते हैं कि पार्टी को प्रदेश में पकड़ कमजोर नहीं हुई है। अगर एर्ग्जिट पोल सर्वे के आंकड़े चुनाव परिणाम में बदलते हैं तो इससे साफ होगा कि यूपी में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार के प्रति लोगों का भरोसा अभी भी बना हुआ है। यूपी चुनाव 2०22 में लगातार दूसरी बार जीत दर्ज करने के बाद सीएम योगी ने जिस प्रकार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यों को जमीन पर उतरने की रणनीति पर काम किया, उसने लोगों के भरोसे को बढ़ाया है। लोकसभा चुनाव के बाद आ रहे एक्जिट पोल के रिजल्ट्स इस पर मुहर लगा रही है।
सीएम योगी के नेतृत्व में एक बार फिर पार्टी को बड़ी सफलता मिलती दिख रही है। अनुमान के मुताबिक, भाजपा 65 से 75 और विपक्षी गठबंधन इंडिया 5 से 15 सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है। भारतीय जनता पार्टी की सफलता के पीछे की सबसे बड़ी वजह बेजोड़ रणनीति रही। प्रदेश की सीटों को ग्रुप में बांटकर जीत की रणनीति तैयार की। यूपी को विभिन्न भागों में बांटा गया। इसके लिए जीत की रणनीति तैयार की गई। इस रणनीति को जमीन पर उतारने में कामयाबी मिली। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए जहां भारतीय जनता पार्टी ने जाट समीकरण को साधने पर जोर दिया। राष्ट्रीय लोक दल को साधने के लिए कई प्रयास किए गए। किसानों के सबसे बड़े नेता चौधरी चरण सिह को भारत र‘ दिया गया। इसके बाद राष्ट्रीय लोक दल को साथ लाने में भाजपा सफल रही। साथ ही, राष्ट्रीय लोक दल को महज दो सीटों पर मनाने में भी कामयाब रही। इसका फायदा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तमाम सीटों पर एनडीए को मिलता दिखा।
भाजपा एक बार फिर लोकसभा चुनाव 2०14 की दर्ज पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश को साधने में कामयाब होती दिख रही है। वहीं, जैसे ही चुनाव अवध क्षेत्र में आया, यहां यादवलैंड को साधने की जिम्मेदारी बड़े यादव नेताओं के हाथों में थमा दी गई। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव से लेकर तमाम प्रदेश के यादव नेताओं ने चुनाव में कमान संभाली। इसका असर भी दिख रहा है। वहीं, पूर्वांचल में चुनाव आने के बाद ओबीसी नेताओं का प्रभाव खूब दिखा। ओम प्रकाश राजभर से लेकर डॉ. संजय निषाद तक पूरे चुनाव अभियान के दौरान लोकसभा क्षेत्रों की खाक छानते रहे। दूसरी तरफ, इंडिया गठबंधन सेलेक्टिव रैलियों के जरिए अपनी राजनीति को चमकाने की कोशिश की। दो चरण के चुनाव के बाद बड़े स्तर पर प्रयास दिखा।
यूपी की 8० लोकसभा सीटों को दिल्ली की गद्दी का एंट्री प्वाइंट माना जाता है। लोकसभा चुनाव को लेकर रशुरुआती चरण से ही एनडीए ने बड़ी बढ़त बनानी शुरू की। तीन चरण में 26 सीटों पर हुए चुनाव में एनडीए को 22 से 25 सीटें मिलने का अनुमान है। वहीं, इंडिया 3 से 6 सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है। अन्य का खाता खुलता नहीं दिख रहा है। पहले तीन चरण के चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वोटिग हुई थी। भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश को साधने के लिए राष्ट्रीय लोक दल का साथ लिया। राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी भाजपा के साथ दिखे। उन्होंने पार्टी को एक बड़ा बूस्ट दिया। न्यूज 18 के एग्जिट पोल के मुताबिक, पहले तीन चरण के चुनाव में 26 सीटों पर बीजेपी आगे जाती दिख रही है।
उधर विपक्षी दल पांच साल मेहनत न करता हुआ दिखा। सिर्फ चुनाव के चंद महिने पहले ही निकलकर महज कुछ क्ष्ोत्रों में गिनती की जाने वाली सभाएं करके उसने यह मान लिया कि जो लोग पीएम मोदी से नाराज हैं वह उसे वोट दे देंगे। प्रचंड बहुमत से उसे जीत मिल जायेगी। पीएम मोदी की क्योटो सीट भी हराने का दावा करने वाले प्रमुख विपक्षी दल के नेता अखिलेश यादव की जमीन अब खिसकती दिख रही है। उनका हर प्रयोग अब तक असफल ही दिखा है। दूसरी बार कांग्रेस के साथ उनकी युगलबंदी भी फेल होती दिख रही है। इससे साफ है कि उनको सियासी तजुर्बा अपने पिता से नहीं मिला, सिर्फ विरासत में कुर्सी ही मिली। जबकि कांग्रेस से दो सीटों को छोड़ कोई उम्मीद भी नहीं थी।

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