- अब नहीं चलेगा कहीं की मिट्टी कहीं का रोड़ा, भानुमती का कुनबा जोड़ा…
- छोटे-मझोले दलों की मिट्टी पलीत कर दी जनता ने, केवल दो दलों को पड़े हैं वोट
विजय पांडेय
लखनऊ। जाति को जाति से लड़वाकर सत्ता की सवारी करने वाले सियासदां अब हो जाओ सावधान! वरना हश्र वहीं होगा जो इस चुनाव में अनुप्रिया पटेल, ओमप्रकाश राजभर, संजय निषाद एवं बड़े फलक पर यूपी के एक बड़े नेता का हुआ है। वैसे कहां भी जाता है कि जाति-जाति का शोर मचाते केवल कायर क्रूर…राजनेता भी वहीं कहेगा अगर सत्ता का हो सुरूर। उत्तर प्रदेश की राजनीति में कुछ दिनों से छोटे-छोटे दलों का जबरदस्त उभार दिख रहा था। एक जाति, एक समुदाय या एक वर्ग, बस राजनीति चमकाने के लिए पर्याप्त सामान हो गया। कुछ इसी तरह की राजनीति यूपी में चल रही थी। लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में जनता ने छोटे, मझोले दलों को जबरदस्त पटखनी थी। इस बार कहीं की मिट्टी कहीं का रोड़ा लेकर भानुमती का कुनबा जोड़ने वाले औंधे मुंह गिरे हैं।
इसकी ताजी मिसाल हैं अपना दल की मुखिया यानी अनुप्रिया पटेल। इस बार वह अपनी सीट भी नहीं बचा पा रही हैं। उनकी पार्टी के दूसरे उम्मीदवार भी हारते हुए नजर आ रहे हैं। वहीं निषाद पार्टी के महाराज संजय निषाद के पुत्र इं. प्रवीण निषाद को भी संतकबीर नगर की जनता ने जोर का झटका दिया है। साथ ही पीला गमछा ओढ़कर कभी सपा, कभी भाजपा का खेल करने वाले सुहेलदेव समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के सुपुत्र अरविंद राजभर भी पीछे चल रहे हैं। 18वीं लोकसभा के आखिरी दो चरणों में इन्हीं सहयोगी दलों की परीक्षा थी। अनुप्रिया पटेल जहां वाराणसी के क्षेत्र में बीजेपी को मजबूत करने का दावा कर रही थीं। वहीं गाजीपुर, मऊ क्षेत्र में ओम प्रकाश राजभर बीजेपी के लिए कई सीट जीत लेने का दम भर रहे थे। साथ ही निषादों के ‘स्वनामधन्य’ भगवान संजय निषाद भी बीजेपी के लिए पूर्वांचल जीत लेने का खम ठोंक रहे थे। लेकिन वोटरों ने इस बार इन तीनों की हवा निकाल दी।
निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद इस बार अपनी इकलौती सीट संतकबीरनगर हार रहे हैं, जहां केवट, मल्लाह यानी निषादों की ठीक-ठाक संख्या है। वहीं अपने गृह जनपद की घोसी लोकसभा सीट पर ओपी राजभर के बेटे अरविंद राजभर की हवा भी खराब चल रही है। वो भी समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी से हारते नजर आ रहे हैं। बात अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल की करें तो वो भी अपनी तथा सहयोगी की सीट बचाती नजर नहीं आ रही हैं। साथ ही यूपी के बड़े नेता जो सवर्णों की एक खास बिरादरी रहनमाई डीएम पोस्टिंग से लेकर थानेदार तैनाती तक कर रहे थे, उन्हें भी जाति के लोगों ने तगड़ा झटका दिया है और वो भी सकते में हैं।
इस बार कुर्मी वोटर किसी एक पार्टी के साथ नहीं रहा, वो अपने हिसाब से वोट दिया। वहीं राजभर बिरादरी ने भी दोनों पार्टियों का साथ दिया। बात निषादों की करें तो संतकबीर नगर लोकसभा के अंदर आने वाली पांच विधानसभा सीटों (मेंहदावल, खलीलाबाद, धनघटा, खजनी और आलापुर) के निषादों ने संजय निषाद को अपना रहनुमा नहीं माना। जबकि एक बार संजय निषाद खुद भगवान की तरह अपनी आरती करवाते हुए वायरल भी हुए थे।
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