- योगी आदित्यनाथ की बात न मानना आज पड़ गया महंगा
- विधानसभा चुनाव के पहले एक बार फिर से साथ आए संगठन और सरकार
भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने उत्तर प्रदेश (UP) में 10 साल का सबसे खराब प्रदर्शन किया है। यहां न केवल सीटों में गिरावट आई, बल्कि वोट प्रतिशत भी पार्टी के पक्ष में कम हुए हैं। संगठन के बड़े-बड़े सूरमा से लेकर यूपी सरकार के अधिकांश मंत्रियों के गृह जनपद में बीजेपी चुनाव हार गई। कई केंद्रीय मंत्री चुनाव हारे। लोकसभा चुनाव में योगी ने कानून व्यवस्था, विकास और आक्रामक हिंदुत्व को भाजपा ने अपने अभियान का अहम हिस्सा बनाया था। पूरे चुनाव में भाजपा के कैंपेनिंग में इसी की गूंज सुनाई देती रही थी लेकिन योगी यूपी में भाजपा के लिए उपयोगी साबित नहीं हो सके। लेकिन जिसे योगी की हार दिखाई जा रही है, वह वास्तव में योगी की हार नहीं है। संगठन, सरकार और ऊपरी आदेश-निर्देश के चलते उत्तर प्रदेश में बीजेपी का बुरा हाल हुआ है। कैसे बीजेपी हारी चुनाव, विश्लेषण करती एक रिपोर्ट…।
भाजपा प्रतापगढ़ हार गई। बीजेपी अयोध्या भी हार गई। भाजपा लखनऊ की दूसरी सीट यानी मोहनलालगंज में परास्त हो गई। पूर्वांचल में इतनी बुरी हार किसी ने भी सोची नहीं थी। लेकिन जो हुआ, वो तो होना तय था। अगर भाजपा रायशुमारी की जगह अपनी मर्जी चुनाव में थोपती रहेगी तो परिणाम इसी तरह का होगा। झारखंड विधानसभा का चुनाव आनेवाला है, अगर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व संगठन की बातों की अनदेखी कर चुनाव लड़ने की कोशिश की तो झारखंड में और दुर्दशा होगी। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) की उपेक्षा भी महंगी पड़ रही हैं। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आगे भी काम करें, लेकिन राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, वसुंधरा राजे, नरेंद्र सिंह तोमर, राजीव प्रताप रूड़ी, योगी आदित्यनाथ,संजय सिंह जैसे नेताओं की सलाह और राय की अनदेखी न करें।
अमेठी में संजय सिंह जैसे कद्दावर नेता चुनाव प्रक्रिया से दूर रहें। बलिया में वीरेंद्र सिंह मस्त का टिकट तो काट दिया गया, लेकिन उन्हें चुनाव में भी सक्रिय जिम्मेदारी नहीं दी गई। जिस तरह बीजेपी ने मध्यप्रदेश में शिवराज को तो हटाया, लेकिन उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देकर। इसी तरह विधानसभा चुनाव में सुरेन्द्र सिंह का टिकट काट दिया गया था। वीरेंद्र मस्त का टिकट कहा, जिम्मेदारी से दूर रखे गए तो परिणाम यह हुआ कि चंद्रशेखर वाली सीट बलिया भी बीजेपी हार गयी। भारत की जनता को आज भी नरेंद्र मोदी का नेतृत्व पसंद हैं, लेकिन उनकी आड़ में अगर दूसरे लोग हस्तक्षेप करेंगे या भाजपा संगठन पर कब्जा करने का कार्य करेंगे तो जनता स्वीकार नहीं करेगी। अमित शाह को भी पार्टी हित में, संगठन की भलाई के लिए बीजेपी के कार्यकर्ताओं को महत्व देना चाहिए, इनकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। कार्यकर्ता पार्टी का रीढ़ होता हैं। राम की नगरी अयोध्यावासी को कोसना बंद कीजिए।
त्वरित टिप्पणी :अयोध्या की दर्दनाक पराजय, उत्तर प्रदेश में खिसकती जमीन और भाजपा
अब आंकड़े पर गौर कीजिए और जानिए उतरप्रदेश में क्या हुआ
अयोध्या वालों को कोस-कोसकर पेट भर गया हो तो एक बार आंकड़े देख लीजिये। पिछली बार (2019 में) फैजाबाद में कुल 1087121 वोट पड़े थे जिसमें से 49 प्रतिशत भाजपा के पक्ष में गए थे। इस बार वहाँ 1140661 वोट पड़े हैं इसलिए ये मत कहिये कि गर्मी बहुत थी इसलिए वोटर घर से निकला ही नहीं। पिछली बार से ज्यादा लोग वोट डालने गए थे ! हाँ ये जरूर ही कि पिछली बार BJP को जो 529021 मत मिले थे, उसके मुकाबले इस बार सिर्फ 499772 वोट मिले मतलब करीब तीस हजार वोट कम हो गए। इतने से अंतर पर ये माना जा सकता है कि कोई नाराजगी थी जिसकी वजह से वोट छिटके हैं।
क्या नाराजगी रही होगी?
मुलायम सिंह सरकार के समय प्रिंसिपल सेक्रेट्री थे नृपेन्द्र मिश्रा और कारसेवकों पर गोलियां चलाने का आदेश उन्होंने ही दिया था। इन्हीं के सुपुत्र को पड़ोस के ही श्रावस्ती से भाजपा ने उम्मीदवार बनाकर उतारा था। खुद तो हारे ही, कुछ और वोट भी निश्चित रूप से ले गए होंगे। नृपेन्द्र मिश्रा को भाजपा ने राम जन्मभूमि ट्रस्ट वाले बोर्ड का हिस्सा बनाया हुआ है। जब 14 की जगह चार सौ कार सेवकों को मारना पड़ता तो मारता कहने वाले मुलायम सिंह को 2021 में भाजपा ने पद्म विभूषण दिया था, तो नृपेन्द्र मिश्रा को पद्मभूषण दिया गया था।
ब्रांड मोदी हुआ खत्म : प्रधान सेवक से अवतरित होने तक का तिलस्म टूटा
आम चुनावों के बाद योगी को बदल दिया जाएगा। कोई और मुख्यमंत्री बनेगा यह बात पूरे उत्तर प्रदेश में फैलाई गई। टिकट बंटवारे में योगी को नजरंदाज किया गया। बिना योगी की सहमति से 30 से 35 उम्मीदवार ऊपर से थोपे गए। अब राम जन्मभूमि निर्माण में नृपेन्द्र मिश्रा की मुख्य भूमिका बिना मोदी-शाह की मर्जी के तो संभव नहीं था। अब आप अपनी हार के लिए जनता को ही कोसने में जुटे हैं जबकि अपने कोर वोटर को नैतिकता का झुनझुना थमाकर “मोदी नाम केवलम” पर चुनाव जीतने के सपने देखते रहे। चुनावों में RSS के कार्यकर्त्ता घर-घर नहीं घूम रहे थे। RSS और भाजपा के संबंध को लेकर पूछे गये मीडिया के एक सवाल के जवाब में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का वह बयान कहीं से जायज नहीं था कि अटल जी के समय BJP को RSS के सहारे की जरूरत थी अब बीजेपी खुद सक्षम है।
कभी बड़े थे सूरमा, आज करारी हार: खुद की सीट भी नही बचा पाए ये स्टार प्रचारक
अगर योगी फ्री-हैंड होते तो नजीते कुछ और होते
जानकारों का कहना है कि यूपी में कई फैसले ऐसे होते हैं, जहां योगी को फ्री हैंड नहीं दिया जाता है। वहां फैसले के लिए ऊपर की राह निहारनी पड़ती है। इसका भी एक कारण रहा कि बीजेपी के कार्यकर्ता पार्टी और सरकार से गुस्सा गए और बूथ तक अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सके। भगवाधारी योगी पर भरोसा न करके केंद्रीय नेतृत्व मोदी के चेहरे पर पूरा चुनाव लड़ता नजर आया। हां, ये अलग बात है कि राजकोट के सांसद और केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला से नाराज राजपूतों को योगी और राजनाथ साध नहीं पाए। अगर ऐसा होता तो राजधानी लखनऊ से सटी मोहनलालगंज सीट बीजेपी कभी न हारती।