- बड़ा मंगल मनाने के पीछे क्या है असल कहानी, जानें पं. उमाशंकर की जुबानी
- अब लखनऊ सीमा पार कर पूरे उत्तर प्रदेश में पसर गया है बड़े मंगल का भंडारा
ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा
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जेठ के सभी मंगलवार को लखनऊ के लोग बड़ा मंगल के रूप में मनाते हैं। अब यह पर्व यानी भंडारा लखनऊ की दहलीज पार करके उत्तर प्रदेश के तकरीबन सभी शहरों में पसर चुका है। भंडारा खाने वाले, भंडारा में जाने वाले और भंडारा करने वाले सभी इस तथ्य से परिचित हैं। लेकिन हम आपको बता रहे हैं बड़ा मंगल पर भंडारा करने की असल वजह…
मान्यता है कि बड़ा मंगल की इस परंपरा की शुरुआत लगभग 400 वर्ष पूर्व मुगल शासक ने की थी। नवाब मोहमद अली शाह का बेटा एक बार गंभीर रूप से बीमार हुआ। उनकी बेगम रूबिया ने उसका कई जगह इलाज कराया लेकिन वह ठीक नहीं हुआ। बेटे की सलामती की मन्नत मांगने वह अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर आईं। पुजारी ने बेटे को मंदिर में ही छोड़ देने कहा। रूबिया रात में बेटे को मंदिर में ही छोड गईं। दूसरे दिन रूबिया को बेटा पूरी तरह स्वस्थ मिला।उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था कि एक ही रात में बीमार बेटा पूरी तरह से चंगा कैसे हो सकता है। तब रूबिया ने इस पुराने हनुमान मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। जीर्णोद्धार के समय लगाया गया प्रतीक चांद तारा का चिह्न आज भी मंदिर के गुंबद पर चमक रहा है।
मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ ही मुगल शासक ने उस समय ज्येष्ठ माह में पड़ने वाले मंगल को पूरे नगर में गुड़-धनिया, भूने हुए गेहूं में गुड़ मिलाकर बनाया जाने वाला प्रसाद.. बंटवाया और प्याऊ लगवाए थे। तभी से इस बडे़ मंगल की परंपरा की नींव पडी़। बडा मंगल मनाने के पीछे एक और कहानी है।
नवाब सुजा-उद-दौला की दूसरी पत्नी जनाब-ए-आलिया को स्वप्न आया कि उसे हनुमान मंदिर का निर्माण कराना है। सपने में मिले आदेश को पूरा करने के लिए आलिया ने हनुमानजी की मूर्ति मंगवाई। हनुमानजी की मूर्ति हाथी पर लाई जा रही थी। मूर्ति को लेकर आता हुआ हाथी अलीगंज के एक स्थान पर बैठ गया और फिर उस स्थान से नहीं उठा। आलिया ने उसी स्थान पर मंदिर बनवाना शुरू कर दिया जो आज नया हनुमान मंदिर कहा जाता है। मंदिर का निर्माण ज्येष्ठ महीने में पूरा हुआ।
मंदिर बनने पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कराई गई और बडा़ भंडारा हुआ। तभी से जेष्ठ के महीने का हर मंगलवार बड़ा मंगल के रूप में मनाने की परंपरा चल पडी़। बड़ा मंगल की चार सौ साल पुरानी इस परंपरा ने इतना बृहद रूप ले लिया है कि अब पूरे लखनऊ के हर चौराहे, हर गली और हर नुक्कड पर भंडारा चलता है। पूरे दिन शहर बजरंगबली की आराधना से गूंजता रहता है।