एकेश्वरवादी नहीं, एकपंथवादी हैं इस्लाम तथा ईसाइयत

प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज

सुविख्यात समाजशास्त्री तथा दार्शनिक

इस्लाम या ईसाइयत को एकेश्वरवादी कहना परम मूर्खता है और भीषण अज्ञान है और उनके प्रोपेगेंडा का शिकार होना है। क्योंकि वे लोग एकेश्वरवादी तो बिल्कुल भी नहीं है और उनकी अपनी भाषा में स्वयं के लिए एकेश्वरवाद जैसा कोई शब्द भी नहीं है। वह कभी स्वयं को एकेश्वरवादी नहीं कहते।

मूल रूप से यह Monotheism ईसाइयों की अवधारणा है और वह अपने ईसाइयत को एकपंथवादी कहते हैं। मोनो+थे+ईस्ट। मोनो याने एक, थे याने पंथ। ईस्ट यानी मानने वाला। मोनोथेस्ट यानी केवल एक ही पंथ को सत्य मानने वाला एकपंथवादी।

थे का अर्थ God नहीं होता, God के पास जाने का रास्ता होता है। तो इस्लाम और ईसाइयत एकपंथवादी है अथवा एकमात्र देववादी हैं अथवा ममेश्वरवादी हैं और यह बात 40 वर्षों से तो मैं लिख ही रहा हूं और पुस्तकों में भी है ।इस शब्द का पुस्तकों में भरपूर प्रयोग मैंने किया है।

वह भारत में हिंदुओं को धोखा देने के लिए अपने बारे में एकेश्वरवाद को माननेवाला होने जैसा भ्रम फैलाते रहे और फैलने में सहायक रहे और हिंदुओं में जो मंदबुद्धि हैं और जो धन आदि के लोग में उनके चेले बन गए अथवा जो कुछ भी नहीं जानते इस विषय में, वह ही उनको एकेश्वरवादी कहते हैं।

एकेश्वरवादी तो केवल हिंदू है जो जानते हैं कि जड़ चेतन सब में एक ही परमात्मा हैं। हिंदुओं के सिवाय इस विश्व में कोई एकेश्वरवादी नहीं है। परम सत्ता एक। देव ज्योतियां अनेक। देवता चिन्मय ज्योतिपुंज हैं। एक ही परम सत्ता के।

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अगर इस्लाम और ईसाइयत एकईश्वर वादी होते तो संसार कितना सुखी होता। कोई झगड़ा ही नहीं होता। तुम जिसे अल्लाह कहते हो, तुम जिसे God कहते हो, हिंदू उसे राम या कृष्ण या विष्णु शिव या ब्रह्म कहते हैं, ऐसा मान लें तो, तब इस प्रश्न पर कभी कोई टकराव हो ही नहीं सकता।

झगड़े की जड़ उनका यह दावा है कि उनका अल्लाह या उनका God ही सच्चा और बाकी सभी के आराध्य झूठे हैं। मेरे द्वारा पूजित और प्रतिपादित ईश्वर ही ईश्वर है। तुम्हारे द्वारा प्रतिपादित और पूजित देवसत्ता देवता भी नहीं है ।

सारे झगड़े की जड़ यह है। यह सदा रहेगी क्योंकि वे केवल बौध्दिकवाद नहीं करते, मार काट भी करते हैं। इसलिए यह एक भीषण समस्या है, जिसका समाधान आवश्यक है। मोनोथेइस्ट भयावह और त्रासदायक है, एकेश्वरवाद नहीं।दूसरों के आध्यात्मिक मानवाधिकारों का हनन करने वाले ऐसे लोगों के साथ सहअस्तित्व संभव ही नहीं है।

शायद इसी कारण इंग्लैंड, अमेरिका पर हक जमाने का इनका दावा शुरू हो गया। ये जहां जाते हैं शरीयत लागू कराने की बात करते हैं। ये अपने सहधर्मी देशों में पनाह नहीं लेते। ये वहां जाते हैं, जहां इनका अस्तित्व न हो। फिर वहां ये अपनी आबादी बढ़ाते हैं और सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं। ठीक उसी तरह ईसाइयत भी कार्य करता है। पूरा पूर्वोत्तर भारत ये बदल चुके हैं। वहां भारत की आत्मा यानी राम नहीं पूजे जाते। वहां उस GOD की पूजा होती है जो यूरोप में याद किए जाते हैं। इसी कारण इन जगहों पर फॉर्मेसी से ज्यादा शराब की दुकानें दिखती हैं।

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