उत्तराखंड और नेपाल सीमा विवाद के पीछे चीन तो नहीं

उत्तराखंड और नेपाल सीमा विवाद के पीछे चीन तो नहीं

यशोदा श्रीवास्तव
:ओली और प्रचंड के एक साथ आने का असर दिखने लगा है। भारत को चिढ़ाने के लिए एक पुराना मुद्दा जो लगभग समाप्त हो चुका था,उसे उभार कर भारत से तनाव की स्थिति पैदा की जा रही है। इसके पीछे काठमांडू में चीनी दूतावास है ताकि वह नेपाल को भारत से नाराज कर उसे अपने पाले में खुलकर ले सके।
यह मामला है नेपाल सीमा पर स्थित उत्तराखंड के लिपुलेख,लिंपियाधुरा और काला पानी का। भारत ने पिथौरागढ़ जिले के नेपाल सीमा पर स्थित इस क्षेत्र के करीब 19 किमी पहाड़ी को काट कर मानसरोवर मार्ग को सुगम बनाया है जिसका उद्घाटन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा तीन साल पहले किया चुका है। नेपाल इस हिस्से को अपना बताते हुए नाराज़गी जताई थी। उस वक्त प्रचंड के समर्थन से नेपाल में केपी शर्मा ओली की सरकार थी। उत्तराखंड के इस हिस्से को अपना बताकर ओली ने काफी बवाल काटा था। उस वक्त एक नया नक़्शा जारी कर इस हिस्से को उसमें दर्शाते हुए ओली सरकार ने भारत पर विस्तारवादी नीति के तहत नेपाल की जमीनों को कब्जा करने का आरोप लगाया था। हालांकि तब प्रचंड और नेपाली कांग्रेस के नेताओं ने ओली को ही आड़े हाथों लेते हुए इस मसले को बात चीत से हल करने की जरूरत बताई थी। इस मामले को हवा देने के पीछे तब भी चीन ही था। ओली चीन के बेहद करीब हैं,यह सच दुनिया से छिपा नहीं है।

जम्मू और लद्दाख के केंद्र शासित राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के बाद लिपुलेख,लिंपियाधुरा और काला पानी का मामला सामने आया है। यह भू क्षेत्र भारत के नक्शे में मौजूद हैं जबकि नेपाल ने नया नक़्शा जारी कर इस भू-क्षेत्र को उसमें शामिल किया है। इस नक्शे को तत्कालीन राष्टपति विद्दा देवी भंडारी ने भारी ताम झाम से जारी किया था।
इधर नेपाल भी भारत के उस नक्शे को सही नहीं माना रहा जिसमें पिथौरागढ़ के ये तीनों क्षेत्र शामिल हैं। नेपाल के तत्कालीन विदेश मंत्री ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए भारत से असली नक्शा और दस्तावेज के साथ बात चीत की पेशकश थी। नेपाल का आरोप है भारत ने इसे नजर अंदाज कर दिया था‌। फिलहाल नक्शा और कब्जा विवाद का समाधान दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय बैठक में तय किए जाने की बात पर स्थगित हो गया था। हालांकि इसे हल करने के लिए दोनों देशों के बीच कोई बैठक हुई नहीं।
करीब 1800 किमी लंबी भारत और नेपाल सीमा पर कई जगह ऐसा है जहां दोनों देशों के बीच सीमा पर अतिक्रमण को लेकर विवाद है। कई जगह तो सीमा स्तंभ ही गायब है। दोनों देशों के बीच सीमा एक ऐसा मुद्दा है जिसे लेकर विवाद और तनाव होता रहता है लेकिन इसे दोनों देशों के उच्च स्तरीय बैठकों में हर भी कर लिया जाता था। ऐसी बैठकों का नेतृत्व कभी,भारत के पूर्व राष्टर पति स्व.ज्ञानी जेल सिंह और प्रणब मुखर्जी तक करने काठमांडू पंहुचते थे। इधर केई सालों से दोनों देशों के बीच ऐसी उच्च स्तरीय बैठक शायद ही हुई है। दर असल दोनों देशों के बीच संवाद हीनता भी तनाव की एक वजह है। नेपाल ने अपनी सीमा की सुरक्षा के लिए भारत सीमा से सटे अपने भू क्षेत्र में पुलिस चौकियां स्थापित करनी शुरू कर दी है। बताते हैं कि संपूर्ण नेपाल सीमा पर उसने पुलिस चौकियों का बड़ा नेटवर्क खड़ा कर दिया हैं आधुनिक असलहों से भारी संख्या में पुलिस की तैनाती की गई है।

उत्तराखंड और नेपाल सीमा के बीच का यह मुद्दा नेपाली कांग्रेस का साथ छोड़कर प्रचंड ओली के साथ सरकार बनाए हैं तब अचानकन सामने आया है। हाल ही नेपाल सरकार के मंत्रिमंडल की हुई बैठक में निर्णय लिया गया है कि वह अपने सौ रूपये के नोट पर उस नए नक्शे को छापकर दुनिया को बताएगा कि भारत ने हमारे जमीन पर किस तरह कब्जा कर लिया है।
हैरत है कि नेपाल के मौजूदा सरकार ने इस मुद्दे को तब उठाया है जब भारत और नेपाल के बीच संबंधों में मिठास आनी शुरू हुई थी। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर का कहना है कि करेंसी पर नक्शा छापने से जमीनी हकीकत नहीं बदल जाती। वहीं काठमांडू स्थिति भारतीय दूतावास करेंसी पर नक्शा छापने के नेपाल सरकार के फैसले के बाद सक्रिय हो गया है। दूतावास के एक प्रवक्ता ने बताया की उसकी कोशिश है कि यदि कहीं सीमा विवाद है तो उसे बात चीत से सुलझाया जाय। ऐसे विवादों को करेंसी पर छापने से नहीं हल किया जा सकता।

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